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स्कूल ट्रांसपोर्ट पॉलिसी की पिछले कई सालों से जिले में धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ट्रांसपोर्ट सुविधा के नाम पर शहर के कई निजी स्कूलों ने मैक्सी कैब और ऑटो हायर कर रखे हैं जिनमें नियमों के विरुद्घ बच्चों को बैठाया जाता है। स्कूलों द्वारा हायर किए गए वाहनों पर न तो रंग पीला है और न ही चालक वर्दी में होते हैं। इसके अलावा कई ऑटो और कैब तो कंडम हैं और इनमें भी बच्चों को घर से स्कूल तक का सफर कराया जा रहा है। इस तरफ न तो आरटीए विभाग ध्यान दे रहा है और न ही ट्रैफिक पुलिस। गत दिनों लोंगवाल में हुए स्कूली वाहन हादसे में चार बच्चों की मौत हो गई थी। इससे पहले भी नियमों को ताक पर रखने से कई स्कूली वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं जिनमें कई बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ा।
निजी स्कूलों द्वारा ट्रांसपोर्ट सुविधा के नाम पर हायर किए गए वाहनों में सफर करना बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है। अमर उजाला टीम ने सोमवार को स्कूलों द्वारा हायर किए वाहनों की पड़ताल की तो चौंकाने वाले स्थिति सामने आई। ऑटो में 18 से 20 बच्चे सवार मिले और कई बच्चों के शरीर का हिस्सा भी ऑटो से बाहर आया हुआ मिला। सड़कों पर सुबह और दोपहर के समय नियमों को ताक पर रखकर ऑटो और मैक्सी कैब दौड़ रही हैं लेकिन नियमित कार्रवाई नहीं हो पा रही। आरटीए विभाग कभी-कभार सड़क सुरक्षा अभियान के तहत स्कूली वाहनों की चेकिंग करता है। यह अभियान एक या दो दिन ही चलाया जाता है। उस दौरान भी सड़कों पर नियमों को ताक पर रखकर दौड़ने वाले ऑटो और मैक्सी चालकों पर कार्रवाई नहीं होती। अभियान के नाम पर कुछेक स्कूली बसों की जांच की जाती है। शहर के डेढ़ दर्जन से अधिक स्कूलों के बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर छोड़ने का काम ऑटो और मैक्सी कैब संचालक कर रहे हैं। सुबह और दोपहर के अलावा ये वाहन चालक सवारियां ढोते हैं।
अगली सीट पर बैठाते हैं तीन बच्चे, कैमरे भी नहीं
स्कूलों के बाहर खड़े वाहनों की जांच करने पर अमर उजाला टीम को किसी भी वाहन में सीसीटीवी लगे नहीं मिले। मैक्सी कैब की अगली सीट पर तीन बच्चे बैठे मिले। वहीं, ऑटो में 18 से 20 बच्चे तक बैठे मिले। नियमों की अगर बात करें तो जिस वाहन में स्कूली बच्चे सवार होते हैं उनमें महिला सहायक का होना अनिवार्य है और प्रत्येक वाहन में सीसीटीवी होना जरूरी है। निजी स्कूलों द्वारा हायर किया गया कोई प्राइवेट वाहन इन नियमों को पूरा नहीं करता। प्रशासन भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
स्कूली वाहनों के कई हो चुके हादसे
जिले में स्कूली वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने के कई मामले पिछले कुछ सालों में सामने आ चुके हैं। इमलोटा के समीप करीब दो साल पहले हुए हादसे में तीन स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे। इससे पहले अचीना ताल के समीप हुए स्कूली बस और डंपर की भिंड़त हो गई थी जिनमें काफी बच्चों को चोटें आई थीं। इसके अलावा झोझूकलां क्षेत्र में भी स्कूली वाहन पेड़ से टकराने पर आठ बच्चे घायल हुए थे। इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं।
ट्रैफिक नियमों की उल्लंघना करने वालों पर कार्रवाई के साथ पुलिस उन्हें जागरूक भी कर रही है अगर ऑटो चालक नियमों से अधिक बच्चों को बैठा रहे हैं तो इसकी जांच की जाएगी। -राजबीर सिंह, ट्रैफिक एसएचओ।
स्कूल ट्रांसपोर्ट पॉलिसी की पिछले कई सालों से जिले में धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ट्रांसपोर्ट सुविधा के नाम पर शहर के कई निजी स्कूलों ने मैक्सी कैब और ऑटो हायर कर रखे हैं जिनमें नियमों के विरुद्घ बच्चों को बैठाया जाता है। स्कूलों द्वारा हायर किए गए वाहनों पर न तो रंग पीला है और न ही चालक वर्दी में होते हैं। इसके अलावा कई ऑटो और कैब तो कंडम हैं और इनमें भी बच्चों को घर से स्कूल तक का सफर कराया जा रहा है। इस तरफ न तो आरटीए विभाग ध्यान दे रहा है और न ही ट्रैफिक पुलिस। गत दिनों लोंगवाल में हुए स्कूली वाहन हादसे में चार बच्चों की मौत हो गई थी। इससे पहले भी नियमों को ताक पर रखने से कई स्कूली वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं जिनमें कई बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ा।
निजी स्कूलों द्वारा ट्रांसपोर्ट सुविधा के नाम पर हायर किए गए वाहनों में सफर करना बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है। अमर उजाला टीम ने सोमवार को स्कूलों द्वारा हायर किए वाहनों की पड़ताल की तो चौंकाने वाले स्थिति सामने आई। ऑटो में 18 से 20 बच्चे सवार मिले और कई बच्चों के शरीर का हिस्सा भी ऑटो से बाहर आया हुआ मिला। सड़कों पर सुबह और दोपहर के समय नियमों को ताक पर रखकर ऑटो और मैक्सी कैब दौड़ रही हैं लेकिन नियमित कार्रवाई नहीं हो पा रही। आरटीए विभाग कभी-कभार सड़क सुरक्षा अभियान के तहत स्कूली वाहनों की चेकिंग करता है। यह अभियान एक या दो दिन ही चलाया जाता है। उस दौरान भी सड़कों पर नियमों को ताक पर रखकर दौड़ने वाले ऑटो और मैक्सी चालकों पर कार्रवाई नहीं होती। अभियान के नाम पर कुछेक स्कूली बसों की जांच की जाती है। शहर के डेढ़ दर्जन से अधिक स्कूलों के बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर छोड़ने का काम ऑटो और मैक्सी कैब संचालक कर रहे हैं। सुबह और दोपहर के अलावा ये वाहन चालक सवारियां ढोते हैं।
अगली सीट पर बैठाते हैं तीन बच्चे, कैमरे भी नहीं
स्कूलों के बाहर खड़े वाहनों की जांच करने पर अमर उजाला टीम को किसी भी वाहन में सीसीटीवी लगे नहीं मिले। मैक्सी कैब की अगली सीट पर तीन बच्चे बैठे मिले। वहीं, ऑटो में 18 से 20 बच्चे तक बैठे मिले। नियमों की अगर बात करें तो जिस वाहन में स्कूली बच्चे सवार होते हैं उनमें महिला सहायक का होना अनिवार्य है और प्रत्येक वाहन में सीसीटीवी होना जरूरी है। निजी स्कूलों द्वारा हायर किया गया कोई प्राइवेट वाहन इन नियमों को पूरा नहीं करता। प्रशासन भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
स्कूली वाहनों के कई हो चुके हादसे
जिले में स्कूली वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने के कई मामले पिछले कुछ सालों में सामने आ चुके हैं। इमलोटा के समीप करीब दो साल पहले हुए हादसे में तीन स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे। इससे पहले अचीना ताल के समीप हुए स्कूली बस और डंपर की भिंड़त हो गई थी जिनमें काफी बच्चों को चोटें आई थीं। इसके अलावा झोझूकलां क्षेत्र में भी स्कूली वाहन पेड़ से टकराने पर आठ बच्चे घायल हुए थे। इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं।
ट्रैफिक नियमों की उल्लंघना करने वालों पर कार्रवाई के साथ पुलिस उन्हें जागरूक भी कर रही है अगर ऑटो चालक नियमों से अधिक बच्चों को बैठा रहे हैं तो इसकी जांच की जाएगी। -राजबीर सिंह, ट्रैफिक एसएचओ।