श्रीकृष्ण कृपा सेवा समिति एवं जीओ गीता परिवार के तत्वाधान में पांच दिवसीय दिव्य गीता ज्ञान सत्संग समारोह का आयोजन किया जा रहा है। महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज की ओर से इस सत्संग समारोह में गीता दिव्य ज्ञान की वर्षा की जा रही है, वहीं पांच दिवसीय गीता सत्संग समारोह के दूसरे दिन का शुभारंभ सिटी विधायक असीम गोयल, प्रदीप मित्तल एवं समाज सेवी हरीश ग्रोवर ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित करके किया। श्रीमद्भगवद् गीता का पूजन सुरेश गर्ग, विजय पाल, जगमोहन लाल कुमार व पंडित तिलक राज शर्मा की ओर से किया गया। सत्संग समारोह में मंच संचालन गोपिका वालिया ने बड़ी कुशलता पूर्वक किया। सत्संग समारोह में गीता दिव्य ज्ञान का वर्णन करते हुए गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि सत्संग में मन से बैठना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि शरीर नहीं सुनता सत्संग मन सुनता है। श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश किन परिस्थितियों में दिया गया। यह ध्यान देने योग्य है। श्रीमद्भगवद् गीता साकारात्मक सोच का ग्रंथ है। एक आशा उत्साह से जीवन को जीएं। श्रीमद्भगवद् गीता की सोच को जीवन में ढालना। महाराज ने कहा कि मानव की वास्तव में पहचान उसके अंदर के भावों से होती है। जैसी जिसकी श्रद्धा होगी वो वैसा ही होगा। मनुष्य का वास्तविक चित्त उसका अंदर का चिंतन है। मन कोई अंग नहीं है। मन तो विचारों का नाम है। डॉक्टर शरीर का इलाज कर सकता है, परंतु मन का इलाज नहीं। डॉक्टर की पहुंच केवल शरीर तक है। अंदर मन तक उसके उपकरण नहीं जा सकते, लेकिन ये तो भारत के ऋषियों की देन है कि मन तक कैसे पहुंचा जाए। शरीर तो मुर्दा है अगर ये बोल रहा है तो केवल चेतना के कारण। स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि मन एक महत्वपूर्ण अंग है। काम, क्रोध, लोभ, मोह ये सब मन के विचारों में हैं। ये एक सोच है। गीता इस सोच को सकारात्मक रूप देती है। भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी इतनी सटीक है कि जिसका जैसा विचार है, वो वैसा ही दिखाई देता है। शरूप नखा को कभी बड़प्पन नहीं मिला, क्योंकि उसकी केवल अपने सुख की व राजघराने की सोच थी। दूसरी ओर शबरी की सोच में क्या था कि गुरुदेव ने एक बार कहा था कि शबरी तेरे द्वार पर एक दिन भगवान श्रीराम आएंगे। बस इसी विश्वास पर गुरु वचनों पर विश्वास हो गया वो अपने विश्वास में जीती रही। सुदामा को देखो कितने विश्वास व उत्साह से जीया। उनके पास कुछ भी नहीं, परंतु रोम-रोम में श्री भागवद् के भाव ने किसी भी स्थिति में उसे विचलित नहीं होने दिया। गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि तू ये मत समझ कि तू अकेला है। मैं तेरे साथ हूं, मैं तेरे पास हूं, जो कर रहा है, वह भगवान कर रहा है। यही अध्यात्म है। इसलिए सभी जीवों को अच्छे नेक कर्मो के साथ ही भगवान का सिमरन करते हुए अपना जीवन बिताना चाहिए, जोकि एक सुखमयी जीवन की प्राप्ति प्रदान करेगा। सत्संग समारोह में सिटी विधायक असीम गोयल व जीओ गीता परिवार के महामंत्री प्रदीप मित्तल ने भी अपने अपने संबोधन में भगवान श्रीकृष्ण के बारे में सदविचार रखते हुए संतों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। सत्संग समारोह के समापन पर सभी भक्तों ने श्रद्धापूर्वक भगवान श्रीकृष्ण जी की विशेष आरती में भाग लिया।