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Ambala News: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी से ग्रस्त बच्चों ने मार्च निकाल बांटे पर्चे, नम हो गई लोगों की आंखे

Amar Ujala Bureau अमर उजाला ब्यूरो
Updated Tue, 07 Feb 2023 05:30 AM IST
Children suffering from muscular dystrophy took out a march and distributed leaflets
फोटो नंबर - 36 से 40

सबहेड
जागरूकता के लिए बांटे पर्चे, बीमारी जान नम हो गईं आंखें
नंबर गेम
15 से 20 हजार रुपये की सहायता मांगी
02 करोड़ का इंजेक्शन है बीमारी का इलाज
02 दिन गृहमंत्री से मिलने का मिला आश्वासन
गृहमंत्री के निवास पर पीए से की मुलाकात
दो दिन बाद आने का मिला आश्वासन
छावनी के मुख्य बाजारों के बाद सुभाष पार्क पर किया लोगों को बीमारी के पर्च बांटकर जागरूक
परिजन बोले कि दो करोड़ का टीका सरकार निशुल्क लगवाएं, ताकि बच जाए जान
संवाद न्यूज एजेंसी
अंबाला। जानलेवा बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से ग्रस्त बच्चों को बचाने के लिए प्रदेशभर के स्वजन सोमवार को छावनी की सड़कों पर उतरे। बच्चों के हाथ में पकड़े पर्चे पढ़कर उनकी बीमारी के बारे में जान उनकी आंखें नम हो गईं। इसके बाद वे गृह और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के निवास स्थान पर पहुंचे, उनके नहीं मिलने पर पीए से मुलाकात की।
उन्हें दो दिन बाद मुलाकात का आश्वासन दिया। परिजनों की मांग थी कि आखिर कब जब इस बीमारी के महंगे उपचार के अभाव के ये मासूम मरते रहेंगे। सरकार इस बीमारी से बचाव के लिए करीब दो करोड़ रुपये की लागत से लगने वाले इंजेक्शन निशुल्क उपलब्ध कराए, जिससे उनके बच्चों की जान बच सके। यह बच्चे और परिजन छावनी के वार हीरोज स्टेडियम में इकट्ठे हुए।

यहां से हाथों में बैनर और बीमारी से जुड़े जागरूकता पर्चे लेकर रेलवे रोड, विजय रत्न चौक से होते हुए सदर बाजार चौक पर पहुंचे। जहां खड़े होकर परिजनों ने राहगीरों को इस जानलेवा बीमारी के बारे में जागरूक किया। आखिर में छावनी के नेताजी सुभाष चंद्र बोस पार्क के बाहर भी जागरूक किया।
उन्होंने कहा कि शुरुआत में बच्चा नॉर्मल होता है। करीब चार साल के बाद बच्चे में इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। धीरे-धीरे बच्चा चलना-फिरना तक बंद हो जाता है। बता दें कि प्रदेशभर में करीब 300 लोग इस बीमारी से ग्रस्त है।
परिजनों की ये थी मांगें
विदेशों से दवा मंगाकर पीड़ित मरीजों को निशुल्क दिलाए या अपने देश में साइंटिस्ट से मिलकर दवा बनाए।
उपचार निशुल्क हो और मरीज को प्रतिमाह 15 से 20 हजार की सहायता दी जाए, जब तक इलाज चल रहा है
जेनेटिक और अन्य टेस्ट भी निशुल्क हो
इलेक्ट्रानिक व्हील चेयर मिले
साइड स्टोरी...
फोटो नंबर - 38 से 40
दृष्टिहीन पिता ने बेची जमीन तो मजदूर हो गया कर्जदार
बच्चों का जीवन सुरक्षित करने के लिए पांच तो कोई परिवार छह साल से कर रहा संघर्ष
बोले- कोर्ट केस जीतने वालों को मिला उपचार, जिनके पास पैसे नहीं वो लाचार
संवाद न्यूज एजेंसी
अंबाला। जानलेवा बीमारी से अपने बच्चों की जान दांव पर लगी देख परिजन तिल-तिल बिलखने को मजबूर हैं। चाहत को बच्चों के लिए आसमान तोड़ने की है, लेकिन आर्थिक स्थिति के चलते महंगा उपचार तक नहीं करा पा रहे हैं।
इन परिजनों में चार कोई पांच साल से सरकारी कार्यालयों के लिए चक्कर काट चुका है। किसी द़ृष्टिहीन पिता ने अपनी खानदानी जमीन दांव पर लगा दी तो कोई बच्चे की बीमारी का खर्च उठाते-उठाते दूसरों से उधार लेकर कर्जदार बन गया। उनका कहना है कि कभी सोचा नहीं था कि यह दिन आएगा कि बच्चे का उपचार ही नहीं करा सकेंगे। अब इन परिजनों की आखिरी उम्मीद केवल सरकार से है, जिससे कि उन्हें निशुल्क उपचार मिल सके।
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करवट तक नहीं ले सकता युवराज
पलवल के गांव पृथला निवासी दृष्टिहीन कलविंद्र सिंह ने बताया कि उसके पास एक बेटा और आठ माह की बेटी है। बेटे युवराज सिंह के लिए तीन साल से संघर्ष कर रहा है। पत्नी गृहिणी है और वह खुद भी काम नहीं कर रहा। बेटे के उपचार में अभी तक दो किल्ले बेच चुका है। बावजूद इसके कोई सुधार नहीं। बेटे से खुद करवट तक नहीं ली जा रही और गंभीर हालत है। दो साल तक महंगा उपचार नहीं मिला तो बचाना मुश्किल हैं।बावजूद हिम्मत नहीं हारी है और आखिर सांस तक सरकार से उपचार के लिए संघर्ष करूंगा।
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पिता कर्जदार, बेटा चलने से लाचार
अंबाला के गांव चंदपुरा निवासी अमित कुमार ने बताया कि उसके पास एक 17 वर्षीय बेटा और 15 वर्षीय बेटी है। बेटे अनुराग की बीमारी का सात साल में पता लगा था जब वो चलते-चलते स्कूल में गिरने लगा था। पढ़ाई भी छूट गई थी। दिहाड़ी मजदूरी में परिवार का गुजर बसर करना मुश्किल है। ऐसे में उपचार के लिए कभी कहीं से उधार ले तो कभी कहीं से। सरकार की तरफ से एक रुपये की मदद नहीं मिल रही। उपचार मिले तो बच्चे को बचा सकेंगे।
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बीमारी पता लगने तक खत्म हो चुकी थी बचत
पिंजौर निवासी कल्पना ने बताया कि 8 वर्षीय बेटा एकांश इस बीमारी से ग्रस्त है। पहले तो उन्हें पता नहीं था कि आखिर क्या हुआ है। काफी जगह भटकने व पैसे लगने के बाद इस बीमारी का पता चला। तब तक सेविंग भी खत्म हो चुकी थी। पति प्राइवेट जॉब करते हैं। बच्चे की जान सुरक्षित करने के लिए वह बेबस है। अब तो सरकार से ही उम्मीद है कि जब बच्चे को निशुल्क उपचार मिल सके और उसका जीवन बच सके।
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