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अगर पित्त की थैली (गाल ब्लैडर) में पथरी है तो इसे नजरअंदाज न करें। यह गाल ब्लैडर का कैंसर भी हो सकता है। पूर्वांचल में पिछले दो साल के अंदर गाल ब्लैंडर कैंसर के मामले ज्यादा तेजी से बढ़े हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेकर एम्स और हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर हॉस्पिटल अस्पताल में हर साल 30 से 40 फीसदी मरीज गाल ब्लैडर कैंसर के आ रहे हैं।
चिंता की बात यह है कि इनमें 85 फीसदी मरीजों को इसकी जानकारी अंतिम चरण में हो रही है। इसकी वजह से मरीजों की जान जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि गाल ब्लैडर के मरीजों का जीवन केवल एक साल होता है। इस दौरान मरीजों की मौत हो जाती है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर हॉस्पिटल के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. एचबी सिंह ने बताया कि अब तक पूर्वांचल में सबसे अधिक मरीज पुरुषों में मुंह के कैंसर के मिल रहे थे। वहीं, महिलाओं में बच्चेदानी और स्तन कैंसर के मामले आ रहे थे। लेकिन, पिछले दो साल के अंदर गाल ब्लैडर कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। हर 10 में चार से पांच मरीज गाल ब्लैडर कैंसर के आ रहे हैं।
इन मरीजों को कैंसर की जानकारी भी अंतिम चरण में हो रही है। इसका असर गाल ब्लैडर के साथ किडनी और अन्य अंगों पर हो रहा है। इसकी वजह से मरीजों की जल्द ही मौत हो जा रही है। चिंता की बात यह है कि अगर समय पर इस कैंसर की जानकारी मरीजों को नहीं होती है तो उनकी जिदंगी केवल एक साल होती है। पूर्वांचल में ऐसे मरीज ज्यादा मिल रहे हैं।
यही वजह है कि इन्हें बचाना मुश्किल हो रहा है। यह कैंसर एक से डेढ़ साल के अंदर शरीर पर असर कर रहा है। जबकि, अन्य अंगों पर कैंसर का असर आठ से 10 साल लग जाता है। इसलिए गाल ब्लैडर कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक होना होगा। बताया कि पूर्वांचल में 50 से 60 फीसदी मरीज बच्चे दानी के मुंह के कैंसर के आ रहे हैं। 45 से 50 फीसदी मरीज स्तन कैंसर के मिल रहे हैं। जबकि, पुरुषों में 60 से 70 प्रतिशत केस मुंह के कैंसर के आ रहे हैं।
बताया कि बच्चेदानी के मुंह के कैंसर को ही सर्वाइकल कैंसर भी कहते हैं। इस संक्रमण को कैंसर बनने में लगभग आठ से 10 साल का समय लग जाता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कैंसर रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश रावत ने बताया कि मेडिकल कॉलेज में में आने वाले रोगियों में सबसे अधिक मुंह व गले के कैंसर से पीड़ित हैं। दूसरे नंबर पर अब गाल ब्लैडर कैंसर के मरीज हैं।