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World Cancer Day 2023: पित्त की थैली में पथरी है तो न करें अनदेखा, हो सकता है कैंसर

अमर उजाला ब्यूरो, गोरखपुर। Published by: vivek shukla Updated Sat, 04 Feb 2023 03:20 PM IST
सार

एम्स की निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर ने बताया कि पूर्वांचल सहित बिहार से मरीज इलाज के लिए एम्स में आ रहे हैं। गाल ब्लैडर कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस पर एम्स ने शोध का फैसला लिया है। इसके लिए मरीजों की जानकारी जुटाई जा रही है। टीम काम कर रही है। गाल ब्लैडर होने का कारण क्या है? इसका पता लगाया जाएगा।

कैंसर।
कैंसर। - फोटो : istock

विस्तार

अगर पित्त की थैली (गाल ब्लैडर) में पथरी है तो इसे नजरअंदाज न करें। यह गाल ब्लैडर का कैंसर भी हो सकता है। पूर्वांचल में पिछले दो साल के अंदर गाल ब्लैंडर कैंसर के मामले ज्यादा तेजी से बढ़े हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेकर एम्स और हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर हॉस्पिटल अस्पताल में हर साल 30 से 40 फीसदी मरीज गाल ब्लैडर कैंसर के आ रहे हैं।



चिंता की बात यह है कि इनमें 85 फीसदी मरीजों को इसकी जानकारी अंतिम चरण में हो रही है। इसकी वजह से मरीजों की जान जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि गाल ब्लैडर के मरीजों का जीवन केवल एक साल होता है। इस दौरान मरीजों की मौत हो जाती है।


हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर हॉस्पिटल के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. एचबी सिंह ने बताया कि अब तक पूर्वांचल में सबसे अधिक मरीज पुरुषों में मुंह के कैंसर के मिल रहे थे। वहीं, महिलाओं में बच्चेदानी और स्तन कैंसर के मामले आ रहे थे। लेकिन, पिछले दो साल के अंदर गाल ब्लैडर कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। हर 10 में चार से पांच मरीज गाल ब्लैडर कैंसर के आ रहे हैं।

इन मरीजों को कैंसर की जानकारी भी अंतिम चरण में हो रही है। इसका असर गाल ब्लैडर के साथ किडनी और अन्य अंगों पर हो रहा है। इसकी वजह से मरीजों की जल्द ही मौत हो जा रही है। चिंता की बात यह है कि अगर समय पर इस कैंसर की जानकारी मरीजों को नहीं होती है तो उनकी जिदंगी केवल एक साल होती है। पूर्वांचल में ऐसे मरीज ज्यादा मिल रहे हैं।

यही वजह है कि इन्हें बचाना मुश्किल हो रहा है। यह कैंसर एक से डेढ़ साल के अंदर शरीर पर असर कर रहा है। जबकि, अन्य अंगों पर कैंसर का असर आठ से 10 साल लग जाता है। इसलिए गाल ब्लैडर कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक होना होगा। बताया कि पूर्वांचल में 50 से 60 फीसदी मरीज बच्चे दानी के मुंह के कैंसर के आ रहे हैं। 45 से 50 फीसदी मरीज स्तन कैंसर के मिल रहे हैं। जबकि, पुरुषों में 60 से 70 प्रतिशत केस मुंह के कैंसर के आ रहे हैं।

बताया कि बच्चेदानी के मुंह के कैंसर को ही सर्वाइकल कैंसर भी कहते हैं। इस संक्रमण को कैंसर बनने में लगभग आठ से 10 साल का समय लग जाता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कैंसर रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश रावत ने बताया कि मेडिकल कॉलेज में में आने वाले रोगियों में सबसे अधिक मुंह व गले के कैंसर से पीड़ित हैं। दूसरे नंबर पर अब गाल ब्लैडर कैंसर के मरीज हैं।
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गाल ब्लैडर कैंसर महिलाओं में सबसे अधिक

डॉ. एचबी सिंह ने बताया कि गाल ब्लैडर कैंसर सबसे अधिक महिलाओं में हो रहा है। इनकी उम्र 40 वर्ष से अधिक है। लेकिन, पुरुषों में भी यह कैंसर कम नहीं है। वहीं, शहर की महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले ज्यादा मिल रहे हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में बच्चेदानी का कैंसर मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दे रही है।

तीन से चार प्रतिशत बच्चे भी कैंसर के हो रहे शिकार
डॉ. एचबी सिंह ने बताया कि तीन से चार प्रतिशत बच्चे भी कैंसर की जद में आ रहे हैं। बच्चों में मसल्स कैंसर और गांठ कैंसर की शिकायतें मिल रही है। ऐसे में अगर समय रहते लोग टीका लगवा लें तो कई कैंसर से बच्चों को बचाया जा सतका है।

गाल ब्लैडर कैंसर के लक्षण
पेट में हमेशा दाहिने हिस्से में दर्द होना। खाना न पचना, गैस बनना। अचानक तेज दर्द होना। मोटापा अधिक होना। यह लक्षण है। ऐसी स्थिति में मरीज तत्काल डॉक्टर की सलाह पर अल्ट्रासाउंड जांच कराए, जिससे की सही समय पर गाल ब्लैडर कैंसर का पता लग सके।

 

कैंसर के लक्षण

  • अचानक शरीर का वजन बढ़ने या कम होने लगना।
  • कमजोरी व थकान महसूस होना।
  • त्वचा के नीचे गांठ बनना या घाव बन जाने के बाद दो से तीन सप्ताह तक ठीक न होना।
  • बोलने में दिक्कत महसूस होना।
  • बार-बार बुखार आना।
  • भूख कम लगना।

एम्स में गाल ब्लैडर कैंसर पर होगा शोध
एम्स की निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर ने बताया कि पूर्वांचल सहित बिहार से मरीज इलाज के लिए एम्स में आ रहे हैं। गाल ब्लैडर कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस पर एम्स ने शोध का फैसला लिया है। इसके लिए मरीजों की जानकारी जुटाई जा रही है। टीम काम कर रही है। गाल ब्लैडर होने का कारण क्या है? इसका पता लगाया जाएगा, जिससे की इस पर रोक लगाई जा सके। क्योंकि, यह ज्यादा जानलेवा है।

बीआरडी में ज्यादातर मामले मुंह व गले के कैंसर के आ रहे हैं। लेकिन, अब गाल ब्लैडर कैंसर के मरीज अचानक बढ़े हैं। यह चिंता का विषय है। यह कैंसर ज्यादा खतरनाक है। कम समय में ही मरीज की मौत हो जाती है। इसलिए समय पर जांच जरूरी है। -डॉ. राकेश रावत, अध्यक्ष, कैंसर रोग विभाग, बीआरडी मेडिकल कॉलेज।

कैंसर का इलाज काफी आसान हो गया है। अगर सही समय पर मरीज इलाज के लिए आ जाए तो ऑपरेशन, रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी से ठीक हो जाते हैं। लेकिन, पूर्वांचल में लोग देरी से इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। गाल ब्लैडर कैंसर में तो सबसे अधिक दिक्कत है। मरीजों को सही समय पर इसकी जानकारी नहीं हो पा रही है। -डॉ. एचबी सिंह, कैंसर रोग विशेषज्ञ, हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल।
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