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BRD में मारपीट मामला: जूनियर डॉक्टरों से अपना काम करवाते हैं सीनियर, बदले में छिपाते हैं मनमानी
अमर उजाला ब्यूरो, गोरखपुर।
Published by: vivek shukla
Updated Mon, 05 Jun 2023 03:44 PM IST
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गणेश कुमार ने कहा कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज का कोई भी डॉक्टर अगर निजी अस्पताल में प्रैक्टिस के लिए जाता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ट्रॉमा और मेडिसिन में सीनियर डॉक्टरों की तैनाती की गई है। वे ओपीडी के साथ मरीजों का इलाज भी करते हैं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टरों के मारपीट के खेल में सीनियर डॉक्टरों का गठजोड़ हर बार भारी पड़ जाता है। यही कारण है कि जूनियर डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। इस कहानी के पीछे सारा खेल केवल निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस का है, जिसके कारण सीनियर डॉक्टर जूनियरों को शह देकर उन पर अपना नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि मेडिसिन, सर्जरी और हड्डी रोग विभाग में सीनियर डॉक्टरों की संख्या काफी अच्छी है। तीनों विभागों की बात करें तो करीब 50 के आसपास सीनियर डॉक्टर हैं, जो बतौर परामर्शदाता बीआरडी मेडिकल कॉलेज में तैनात हैं। लेकिन, यह परामर्शदाता केवल अपनी ओपीडी करके जूनियर डॉक्टरों के भरोसे वार्ड छोड़कर चले जाते हैं। इसकी वजह से मेडिसिन, सर्जरी और हड्डी रोग विभाग का पूरा वार्ड जूनियर डॉक्टरों के जिम्मे हो जाता है, जो पूरी तरह से बेखौफ होकर मरीजों के साथ मारपीट करते हैं।
मारपीट के बाद इन्हें बचाने की जिम्मेदारी भी सीनियर डॉक्टर संभाल लेते हैं। क्योंकि, मारपीट के बाद कमेटी में भी यही सीनियर डॉक्टर शामिल होते हैं। ऐसे में जूनियर डॉक्टरों को इस बात का डर बिल्कुल नहीं रहता है कि उनके खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई होगी, जिससे की उनका करियर बर्बाद हो जाए।
कार्रवाई के तौर पर उन्हें केवल निलंबन तक की सजा दी जाती है, जो उनके करिअर लिए कोई खास मायने नहीं रखता। निलंबन में उन्हें आधी सैलरी मिलती है, बाकी रुपयों के लिए वह सीनियर डॉक्टरों के हॉस्पिटल में इलाज में मदद करने चले जाते हैं। जानकारों का कहना है कि अगर दोनों वार्डों में सीनियर डॉक्टर रहने लगें तो मारपीट के मामले खत्म हो जाएंगे।
सबसे ज्यादा विवाद मेडिसिन में ही
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सबसे अधिक विवाद मेडिसिन में ही होता है। जबकि, यहां पर सीनियर डॉक्टरों की संख्या 15 के आसपास है। लेकिन, इनमें से केवल तीन से चार डॉक्टर ही ऐसे हैं, जो वार्ड में मरीजों का देखने जाते हैं। अन्य डॉक्टर केवल शाम को राउंड लेने ही जाते हैं। वह भी कभी कभार।
पांच सीनियर परामर्शदाता की ट्रॉमा में हैं ड्यूटी रहते जूनियर डॉक्टर
ट्रॉमा सेंटर में पांच सीनियर परामर्शदाता की ड्यूटी है, लेकिन ये डॉक्टर ड्यूटी के नाम पर अपने-अपने विभाग में चले जाते हैं। ट्रॉमा सेंटर भी जूनियर डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है। यहीं से मारपीट की शुरुआत भी होती है। ट्रॉमा में 80 से 90 फीसदी केस सर्जरी, आर्थाे और मेडिसिन के होते हैं। अगर ट्रॉमा में सीनियर परामर्शदाता ड्यूटी करने लगें तो मारपीट के मामले खुद ब खुद खत्म हो जाएंगे। वहीं, बाल रोग विभाग सहित अन्य विभागों में मारपीट के मामले सामने नहीं आते हैं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गणेश कुमार ने कहा कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज का कोई भी डॉक्टर अगर निजी अस्पताल में प्रैक्टिस के लिए जाता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ट्रॉमा और मेडिसिन में सीनियर डॉक्टरों की तैनाती की गई है। वे ओपीडी के साथ मरीजों का इलाज भी करते हैं। रही बात जूनियर डॉक्टरों के मारपीट की तो उन्हें सख्त हिदायत दी गई है।
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