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Spider-Man Across the Spider-Verse Review in Hindi by Pankaj Shukla Pavitra Prabhakar Karan Soni Aditya Sood
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Spider Man Across the Spider Verse Review: हीरो, हीरोइन, विलेन, सब स्पाइडरमैन!, कॉमिक्स का करामाती करिश्मा
अमेरिका में एक तो खूबी है। और, वह है समाज में उथल पुथल मचा रही घटनाओं को अपने सिनेमा में समाहित करना। कला का यही उद्देश्य है। सामाजिक संरचना में हो रहे बदलाव से खुद को अलग थलग रखने वाले कलाकार समय में हाशिये पर चले जाते हैं, ये बात हिंदी सिनेमा के कलाकारों से बेहतर कौन समझ सकता है। सोनी पिक्चर्स की नई फिल्म ‘स्पाइडरमैन अक्रॉस द यूनिवर्स’ इसी बात को फिर से समझाती है। फिल्म समझाती है कि नायक सिर्फ वही नहीं है जो बरसों से चले आ रहे नियमों को मानते हुए कुछ बड़ा कर दिखाए बल्कि नायक वह है जो बदलते समय के हिसाब से खुद को बदले और जो नियम रूढ़ियों में बदल चुके हैं, उन्हें तोड़कर एक नए समाज की संरचना करे। और, भले इसके लिए उसे अपनों से ही ‘महाभारत’ क्यों न करनी पड़े। आगे बढ़ने से पहले बताते चलें कि फिल्म ‘स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स’ अंग्रेजी के अलावा हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती और मराठी भाषाओं में भी रिलीज हुई है।
स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
अपनों से ही बगावत करता स्पाइडरमैन
डिज्नी की सबसे लोकप्रिय परी कथा ‘द लिटिल मरमेड’ से कोई पांच साल पहले साल 2018 में स्पाइडरमैन बड़े परदे पर गोरे से काला हो गया था। कहानी का गुणसूत्र वही रखा जाना था कि एक भोलाभाला बालक है। अपने रिश्तेदार के यहां रहता है। उसके पिता की असमान्य परिस्थितियों में मृत्यु हो चुकी है। और, ये होता है उसके पुलिस की नौकरी में रहते हुए। अब सोचिए कि अगर सिर्फ अपनी धरती पर ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में घूम रही ऐसी तमाम धरतियों पर अपना अपना स्पाइडरमैन हो और उनकी मूल कहानी यही हो लेकिन वे सब अपने अपने अलग रास्तों पर निकल चुके हों। और, फिर इनका एक विशाल समागम जैसा कुछ हो जहां ये अश्वेत स्पाइडरमैन अपनी उत्पत्ति की मूल अवधारणा को ही बदलने निकल पड़े। जाहिर सी बात है कि वह अकेला ही रह जाएगा और उसके पीछे पड़ जाएंगे हजारों लाखों स्पाइडरमैन!
स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
सिनेमा में भी कॉमिक्स का एहसास
कॉमिक्स पढ़ने के एहसास और सिनेमा की उन्नत तकनीकों की मार्वल कॉमिक्स के किरदार स्पाइडरमैन के साथ पहली त्रिवेणी साल 2018 में फिल्म ‘स्पाइडरमैन इनटू द स्पाइडरवर्स’ के रूप में सामने आई थी। इस फिल्म ने मार्वल किरदारों के प्रशंसकों को एक नई उम्मीद दिखाई। अपने अपने खांचों में फंस चुके एवेंजर्स के बीच ये एक ऐसा एवेंजर उगता दिखने लगा जिसे लीक तोड़ने में ही असली आनंद आता है। ये मार्वल का असली सपूत है जिसके प्रशंसकों की सरहदें कब की टूट चुकी हैं। दूरदर्शन के श्वेत श्याम दौर से लेकर आईमैक्स थ्रीडी तक के दौर में स्पाइडरमैन की लोकप्रियता भारत में भी कभी कम नहीं हुई। तभी तो इस बार फिल्म ‘स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स’ में भारत का भी अपना खुद का एक स्पाइडरमैन है जो मुंबईटन में रहता है और ट्रैफिक के सामाजिक संरचना पर पड़ने वाले असर पर उंगली उठाता है।
स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
हीरो, हीरोइन, विलेन, सब स्पाइडरमैन!
फिल्म ‘स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स’ इस फ्रेंचाइजी की अगली कड़ी ‘बियांड द स्पाइडरवर्स’ का संकेत देती है। और, उसके पहले इस फिल्म में जो गदर इस दुनिया से लेकर उस दुनिया तक के स्पाइडरमैन मचाते हैं, वह बहुत ही रोचक है, मजाकिया है और साथ ही दिमाग की बत्ती जलाने वाला भी। हॉलीवुड का सिनेमा जाग्रत दिमाग की मांग करता है। यहां दिमाग घर पर छोड़कर आने वालों की एंट्री बंद है। बातों बातों में बात वहां तक भी पहुंचती है कि याद आता है गब्बर का वो डायलॉग कि ‘गब्बर के ताप से तुमको सिर्फ एक ही आदमी बचा सकता है....खुद गब्बर!’ तो यहां नाना प्रकार के स्पाइडरमैन हैं। छोटा स्पाइडरमैन, बड़ा स्पाइडरमैन और बहुत बड़ा स्पाइडरमैन। इनके बीच में किसिम किसिम की स्पाइडर वूमन भी हैं। कुछ पुलिस से भागती हुई और कुछ दुश्मनों के छक्के छुड़ाती हुई। मतलब कि स्पाइडरमैन का रायता इतना बढ़िया फैलाया गया है कि पूरी फिल्म इसके आनंद में ही पूरी हो जाती है।
स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
बच्चों और किशोरों के लिए मस्त फिल्म
फिल्म ‘स्पाइडरमैन अक्रॉस द स्पाइडरवर्स’ उन लोगों को और भी अच्छी लगेगी जिनको मार्वल की फिल्म ‘डॉक्टर स्ट्रेंज इन द मल्टीवर्स ऑफ मैडनेस’ से बहुत सारी उम्मीदें रही होंगी। शुरू से लेकर अब तक के सारे स्पाइडरमैन की झलकियां भी बीच बीच में हैं और ऐसा कुछ जब भी परदे पर घटता है सिनेमा हॉल में दर्शकों के चीत्कार की लहर आगे की लाइन से लेकर पीछे की लाइन तक एक लहर की तरह गूंजती है। बच्चों और किशोरों के लिए ये फिल्म गर्मियों की छुट्टी का एक और तोहफा है। बस, ऐसी फिल्में देखने के बाद सोचना यही पड़ता है कि अपने यहां के फिल्म निर्माता बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों के हिसाब से फिल्में बनाना कब शुरू करेंगे और कब अपने ‘चिड़ियाखाना’ से बाहर निकलेंगे...!
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