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Scoop Review Netflix in Hindi by Pankaj Shukla Matchbox Shots Hansal Mehta Karishma V Tanna Mohd Zeeshan Ayyub
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Scoop Review Netflix: करिश्मा तन्ना की अदाकारी का ‘स्कूप’, खबरें बनाने वालों की खबर लेती हंसल मेहता की सीरीज
मिरत त्रिवेदी
,
मृणालयी लागू वाइकुल
,
करन व्यास
और
अनु सिंह चौधरी
निर्देशक
हंसल मेहता
निर्माता
सरिता पाटिल
और
दीक्षा ज्योति राउतरे
रिलीज
02 जून 2023
रेटिंग
4/5
मुंबई की चर्चित पत्रकार जिगना वोरा के बारे में देश के दूसरे राज्यों और विदेश में लोग कम ही जानते हैं। जिगना वोरा वह पत्रकार हैं, जिन्हें एक दूसरे पत्रकार की हत्या के बाद मचे बवाल के बाद मामले से लोगों का ध्यान हटाने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। मुंबई पुलिस के निशाने पर आने और उसके बाद भायखला जेल में करीब नौ महीने बिताने की कहानी है हंसल मेहता निर्देशित नई वेब सीरीज ‘स्कूप’। कभी मुंबई पुलिस के हीरो रहे प्रदीप शर्मा की एनकाउंटर गाथा का पर्दाफाश भी जिगना वोरा ने ही किया था, और सीरीज अपनी पटकथा में ये अहम कड़ी बताने की जरूरत भले न समझती हो लेकिन सीरीज खत्म होने पर वह जिगना वोरा को उन लोगों के साथ जरूर खड़ा कर देती है जो शासन और सत्ता के मुखर विरोधी रहे हैं। इन लोगों के नाम और तस्वीरें सीरीज के आखिरी एपिसोड के एंड क्रेडिट में नजर भी आती हैं। सीरीज बताती है कि बीते दो दशकों में भारत में पत्रकारों के उत्पीड़न की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।
स्कूप
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
मुंबई की धमनियों का काला सच
मुंबई के चर्चित क्राइम रिपोर्टर रहे जे डे (ज्योतिर्मय डे) की दिन दहाड़े हत्या और उसको लेकर मचे बवाल के बीच पत्रकार जिगना वोरा की गिरफ्तारी मुंबई में उन दिनों कार्यरत रहे पत्रकारों को अब भी याद है। जिगना वोरा पर मकोका लगा। वह जेल गईं। फिर, सिंगल मदर और परिवार का भरण पोषण करने वाली एकमात्र सदस्य होने के नाते उन्हें जमानत मिली। सात साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद वह सारे आरोपों से बरी भी हो गईं। सीरीज के पहले चार एपिसोड जिगना की गिरफ्तारी के पहले की घटनाएं दिखाती हैं और आखिर के दो एपिसोड उनके भायखला में बिताए दिनों की। जिगना वोरा का किरदार सीरीज में निभाया है अभिनेत्री करिश्मा वी तन्ना ने। समाचार पत्र ‘नई दुनिया’ का महाराष्ट्र रीजनल एडिटर होते हुए साल 2011 में इन घटनाओं को मैंने करीब से देखा। उन दिनों मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड के रिश्तों की खबरें आम थी। छोटा राजन सुर्खियों में रहता था। और, सब कुछ इतना धुंधला और अस्पष्ट था कि किसी से कुछ भी कहने बताने से पत्रकार कतराते थे। ये भी सच है कि जिगना वोरा की गिरफ्तारी के बाद ‘स्कूप’ की तलाश में रहने वाले अधिकतर क्राइम रिपोर्टर भी ठंडे पड़ गए थे और मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड के रिश्तों को लेकर खबरें आनी भी कम हो गईं थीं। उस दौर की कड़वी हकीकतें इस बार परदे पर लौटी हैं, वेब सीरीज 'स्कूप' की काल्पनिक कथा के जरिये।
स्कूप
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
अंडरवर्ल्ड और मुंबई पुलिस की ‘मिलीभगत’ कहानी
मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड की कथित ‘मिलीभगत’ और आईबी के अधिकारियों की मेहनत पर बार बार मुंबई पुलिस के कथित रूप से पानी फेर देने की घटनाएं नई सदी के दूसरे दशक की शुरूआत में खूब पढ़ी जाती थीं। सूबे में कांग्रेस की सरकार थी। अरुप पटनायक मुंबई पुलिस कमिश्नर हुआ करते थे। और, उनके मातहत काम करने वाले कम से कम तीन पुलिस अधिकारी ऐसे थे जिनके बारे में कहा जाता था कि मुंबई पुलिस की खेमेबाजी इन्हीं के नीचे चलती है। एक आम फिल्म समीक्षक को ये सीरीज देखते समय ये सब भले न याद आए लेकिन पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में की गई क्राइम रिपोर्टिंग ने इस तरह की घटनाओं को लेकर मेरी दिलचस्पी हमेशा बनाए रखी। सीरीज को लेकर कहीं पढ़ा मैंने कि करिश्मा तन्ना इस सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी हैं। ये एक अभिनेत्री की मेहनत को सरे आम नकारने जैसा है। बाहर से आए कलाकारों की हिम्मत तोड़ने और उन्हें हाशिये पर धकेलने का काम अब भी मुंबई फिल्म जगत में खूब हो रहा है। ऐसा ही कुछ हुआ था जिगना वोरा के साथ। उसका ज्ञान, उसकी होशियारी और उसकी हिम्मत उसके पेशे से कहीं ज्यादा थी। और, पेशा कोई भी हो, उसके मगरमच्छों को अपने बीच कोई भी ऐसा नहीं चाहिए होता है जो पानी के बीचो बीच धूप सेंकने के लिए बने उनके टीले पर अपनी जगह तलाशने आ जाए।
स्कूप
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
दीपू सेबेस्टियन के रिसर्च की रवानी
जिगना वोरा की लिखी किताब ‘बिहाइंड बार्स इन भायखला माय डेज इन प्रिजन’ इस सीरीज का सिर्फ आधार है। इसकी असल नींव तैयार की है दीपू सेबेस्टियन एडमंड नामक पत्रकार की रिसर्च ने। कहानी मुंबई के एक मध्यमवर्गीय परिवार से लेकर शहर के नामी बिल्डर्स, दबंग पुलिस अफसर, गुजरात के फैमिली कोर्ट, पंचगनी के बोर्डिंग स्कूल से लेकर विचाराधीन कैदियों की नारकीय जिंदगी दिखाती भायखला जेल तक फैली है। मिरत, मृणालयी ने पूरी कहानी को बहुत ही चुस्त पटकथा में बुना है। करन व्यास ने जिगना की गुजराती पृष्ठभूमि के हिसाब से संवाद भी चुटीले लिखे हैं। जो कुछ इन सबसे छूटा वह अतिरिक्त पटकथा लेखक का क्रेडिट पाने वाली अनु सिंह चौधरी ने साध लिया है। इस सारी लिखावट में जो किरदार कैमरे के सामने अदाकारी निभाने के लिए उभरे हैं, उनके लिए कलाकार चुनने का काम यहां भी मुकेश छाबड़ा ने संभाला है। साध्वी, जगताप और वशिष्ठ के किरदारों के लिए कलाकार चुनने में मुकेश की टीम ने शानदार काम किया है।
स्कूप
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
अदाकारी का असली ‘करिश्मा’
सीरीज में कलाकारों के मामले में सबसे शानदार काम किया है करिश्मा तन्ना और जीशान अयूब ने। एक महिला पत्रकार का क्राइम रिपोर्टर होना ही अपने आप में किसी रहस्य से कम नहीं होता। और, वह भी अगर अपने काम के बूते लगातार तरक्की पाती रहे। एक अखबार से दूसरे अखबार तक छलांगें लगाती रहे और ऐसे ओहदे पर पहुंच जाए जहां उसका अपने संपादक के साथ अतिरिक्त समय बिताना दफ्तर का गॉसिप बन जाए। ऐसा किरदार निभाना, उसकी मनोदशा समझना और फिर एक मां के रूप में भी परदे पर नजर आना, इन शुरुआती चुनौतियों को बखूबी पार करने के बाद करिश्मा का असल इम्तिहान होता है विचाराधीन कैदी के रूप में उनके अभिनय में। टट्टी के बीच जा गिरे साबुन को निकालने से ठीक पहले के दृश्य दिखाते हैं कि आराम की जिंदगी जी रहा इंसान कब एक कीड़े की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। और, इन दृश्यों में करिश्मा का अभिनय उन्हें एक बेहतरीन अदाकारा साबित करता है। इस किरदार के कुछ रंग आखिरी एपिसोड में और दिखते हैं। करिश्मा तन्ना ने इन सारे भावों को एक ही सीरीज में इतने करीने से परदे पर जिया है कि अगर ये सीरीज एम्मी अवार्ड्स में नेटफ्लिक्स की तरफ से गई तो उनका पुरस्कार पक्का है।
स्कूप
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
दमदार कलाकारों का ‘स्कूप’
करिश्मा के अदाकारी के इस ‘करिश्मे’ के अलावा वेब सीरीज ‘स्कूप’ में एक संपादक के तौर पर जीशान ने अद्भुत अभिनय क्षमता का परिचय दिया है। एक एक्टिवस्ट की छवि रखने वाले जीशान पर ऐसे किरदार फबते भी खूब हैं। संपादक के ही रूप में तनिष्ठा चटर्जी भी तनाव वाले दृश्यों में अपनी छाप छोड़ती हैं। जूनियर पत्रकार की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा करने वाले तंत्र पर ये सीरीज सटीक चोट करती है। इनायत सूद ने इस ईर्ष्यालु पत्रकार का किरदार बखूबी निभाया है और करीब करीब ऐसे ही किरदार में तन्मय धनानिया सीरीज का एक टेंट पोल लगातार साधे रहते हैं। इन सारे कलाकारों के बीच सबसे ज्यादा चौंकाने वाला अभिनय मामा बने देवेन भोजानी ने किया है। अधिकतर कॉमेडी किरदारों में ही नजर आने वाले देवेन का अपनी बहन को गहने से बेचने से रोकते समय खुद के संतानहीन होने का जिक्र करने और अपनी भांजी को ही अपनी बेटी मानने वाला दृश्य रुला देने वाला है। पुलिस अफसर के किरदार में हरमन बावेजा भी प्रभावित करते हैं।
स्कूप
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
हंसल ने फिर नोचा सिस्टम का नकाब
और, निर्देशक हंसल मेहता का तो कहना ही क्या! कभी मसाला फिल्मों में अपना करियर तलाशते रहे हंसल मेहता ने हाशिये के हीरो को मुख्यधारा में लाने का जो बीड़ा अपनी फिल्म ‘शाहिद’ से उठाया था वह यहां भी बदस्तूर जारी है। ये सीरीज क्राइम थ्रिलर नहीं है। किसी हीरो के विजयी होने की कहानी भी नहीं है। ये एक सच्चाई है जो एक काल्पनिक कथा के जरिये हंसल मेहता ने आईने की तरह जमाने को दिखाई है। समाज इस आईने में कितनी देर अपना असली अक्स निहारने की हिम्मत कर सकता है, सीरीज की असल जीत इसी में है। मैचबॉक्स शॉट्स की नेटफ्लिक्स पर ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ के बाद ये दूसरी पेशकश है। सरिता पाटिल और दीक्षा ज्योति राउतरे की भी हिम्मत और मेहनत को सलाम है कि वे इस तरह की कहानियां कहने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं जिनके सामने आने के डर से जेल में बंद छोटा राजन भी परेशान है। सच को सामने लाने का काम मीडिया का है। लेकिन, इस दौर में अखबारों और सिस्टम के अंदर का सच सामने आ रहा है काल्पनिक कथाओं से। यही सच है। और, सीरीज के एक दृश्य में एक पूर्व संपादक अपनी कुर्सी संभालने वाले संपादक से कहता भी है, ‘सच बोलने का वक्त कम ही मिलता है, और ये वक्त सच का साथ देने का है!’
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