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Mumbaikar Movie Review in Hindi by Pankaj Shukla Vijay Sethupathi Vikrant Massey Tanya Maniktala Santosh Sivan
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Mumbaikar Review: बायोडाटा लेकर मुंबई में डॉन बनने आए इंसान की कहानी, पहली हिंदी फिल्म में विजयी रहे सेतुपति
विजय सेतुपति
,
विक्रांत मैस्सी
,
हृदु हारून
,
तान्या मनिकतला
,
रणवीर शौरी
,
संजय मिश्रा
,
सचिन खेडेकर
और
बृजेंद्र काला आदि
लेखक
लोकेश कनगराज
,
हिमांशु सिंह
,
अमित जोशी
और
आराधना शाह
निर्देशक
संतोष सिवन
निर्माता
रिया शीबू
और
ज्योति देशपांडे
ओटीटी:
जियो सिनेमा
रिलीज:
2 जून 2023
रेटिंग
3/5
22 साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘अशोका’ अगर बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप नहीं हुई होती तो देश के बेहतरीन छायाकारों में शुमार संतोष सिवन अब तक हिंदी सिनेमा के भी दिग्गज फिल्म निर्देशक होते। उनकी निर्देशित पहली ही फिल्म ‘स्टोरी ऑफ टिबलू’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। तब से वह सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म, सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली कई फिल्में निर्देशित कर चुके हैं। सर्वश्रेष्ठ छायांकन के भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार उन्हें मिले। हिंदीभाषी दर्शक उन्हें ‘दिल से’ और ‘रावण’ जैसी फिल्मों के छायांकन के लिए जानते हैं और परदे पर उनके बिंबों के मुरीद रहे हैं। संतोष सिवन मुंबई के मुरीद हैं और इस शहर की अलग अलग गलियों में घूमती एक कहानी बतौर निर्देशक लेकर आए हैं, ‘मुंबईकर’। सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली विजय सेतुपति की ये पहली हिंदी फिल्म होनी थी, लेकिन संयोग इसे जियो सिनेमा पर लेकर आया है।
मुंबईकर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
लोकेश कनगराज की मूल कहानी
कमल हासन की चर्चित फिल्म ‘विक्रम’ और उससे पहले अजय देवगन की फिल्म ‘भोला’ जिस कहानी पर बनी, वह मूल फिल्म ‘कैथी’ निर्देशित करने वाले लोकेश कनगराज के करियर की बतौर फिल्म निर्देशक पहली फिल्म थी, ‘मानगरम’। छोटे बजट की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर छह साल पहले तहलका मचा दिया था। फिल्म बाद में तेलुगु में ‘नगरम’ और मलयालम में ‘मेट्रो सिटी’ के नाम से डब होकर रिलीज हुई। गोल्डमाइन फिल्म्स के यूट्यूब चैनल पर इसका हिंदी डब संस्करण ‘दादागिरी 2’ नाम से उपलब्ध है। संतोष सिवन ने इसी तमिल फिल्म ‘मानगरम’ का हिंदी संस्करण बनाया है, ‘मुंबईकर’। हाइपरलिंक सिनेमा शैली में बनी फिल्म ‘मुंबईकर’ इस हफ्ते रिलीज हुई हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में सबसे अच्छी कही जा सकती है। जियो सिनेमा इसे अपने ओटीटी पर फ्री में दिखा रहा है तो इस सप्ताहांत के मनोरंजन के लिए ये मुफीद है। कहीं कोई गाली गलौज और देह प्रदर्शन या दैहिक संबंधों की नुमाइश नहीं है। बढ़िया कॉमिक थ्रिलर फिल्म है, ‘मुंबईकर’।
मुंबईकर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
चौराहे पर मिलती चार कहानियां
फिल्म ‘मुंबईकर’ की कहानी जैसा कि मैंने कहा हाइपरलिंक शैली की है। इस शैली में कई कहानियां एक साथ अलग अलग स्थानों पर घटती हैं। कोई एक किरदार इन कहानियों को एक सूत्र में बांधता रहता है और फिर ये सारी कहानियां एक दिन किसी चौराहे पर आकर एक हो जाती हैं। यहां कहानी शुरू होती है यूपी बोर्ड से पढ़ाई करके मुंबई में नौकरी तलाशने आए एक युवा से। नौकरी लगने के बाद जहां वह पार्टी कर रहा है, वहां एक और युवक बैठा है जिसने अपनी प्रेमिका की तरफ नजर न डालने की धमकी देने वाले गुंडों की ठुकाई कर रखी हैं। वे गुंडे अपने साथियों के साथ उसे मारने आते हैं। और, भ्रम का शिकार हो जाता है यूपी का ये भैया। इन किरदारों के बीच फिर आता है कहानी का केंद्रीय किरदार जो खुद को ‘गैंग्स्टर इन मेकिंग’ बताता है। गुंडों के गिरोह में शामिल होने के लिए ‘बायोडाटा’ लेकर आता है। और गिरोह छोड़कर नहीं भागता है बल्कि ‘रिजाइन’ करके जाता है।
मुंबईकर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
विजय सेतुपति का विजयी अंदाज
ये केंद्रीय किरदार फिल्म ‘मुंबईकर’ में है विजय सेतुपति का। फिल्म शुरू होने के बाद थोड़ी देर से उनकी एंट्री है, लेकिन फिल्म असल रफ्तार में उनके परदे पर प्रकट होने के बाद ही आती है। अमिताभ बच्चन जैसी हेयर स्टाइल और रजनीकांत जैसी अदाएं लिए शीशे के सामने संवाद बोलते विजय सेतुपति का पहला दृश्य ही फिल्म का मूड बता देता है। इसके बाद इस गंवई भोले भाले इंसान के ‘मुंबई का किंग कौन?’ जैसा संवाद क्लाइमेक्स में बोलने की संभावनाओं पर फिल्म की कहानी आगे चलती रहती है। विजय सेतुपति की अदाकारी का अंदाज निराला है। दक्षिण के सिनेमा में उनकी तूती बोलती हैं और हिंदी सिनेमा में उनको लाने की कोशिशें आमिर खान तक की नाकाम रह चुकी हैं। अभी वह शाहरुख खान की ‘जवान’ में दिखने वाले हैं। विजय सेतुपति ने पूरी फिल्म को आखिर तक देखने की उत्सुकता बनाए रखी है और अंतिम दृश्य में उनका किरदार सारी दौलत बच्चों पर लुटाकर जब एक प्लास्टिक का तिरंगा हाथ में लेकर पैदल ही अंडमान की तरफ चल देता है तो अकेले में भी फिल्म देखते हुए चेहरे पर एक मुस्कान तो तैर ही जाती है।
मुंबईकर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
यहां यहां चूके संतोष सिवन
संतोष सिवन तकनीशियन बेहतरीन हैं, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन, ये फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती तो अकेले विजय सेतुपति के सहारे इसका दर्शकों को खींच पाना मुश्किल प्रतीत होता है। इस लिहाज से इसे ओटीटी पर रिलीज करने का फैसला बिल्कुल सही है। साल भर पहले ही सेंसर सर्टिफिकेट पा चुकी फिल्म ‘मुंबईकर’ को जियो सिनेमा ने बिना किसी प्रचार प्रसार के रिलीज कर दिया है। लेकिन, ये फिल्म कुछ कुछ वैसी ही फिल्म जियो सिनेमा के लिए हो सकती है, जैसी ‘सिर्फ एक ही बंदा काफी है’ जी5 के लिए साबित हुई। फिल्म के लिए संतोष ने वातावरण अच्छा सजाया है। कहानी का भौगोलिक परिदृश्य ऐसा है कि मुंबई का भूगोल न जानने वालों को भी इससे ज्यादा तकलीफ होगी नहीं हालांकि यदि इसमें मुंबई के लोकप्रिय ठिकाने मसलन इंडिया गेट, बैंडस्टैंड, फिल्मसिटी और जुहू बीच खलनायक पीकेपी को घुमाने के लिए इस्तेमाल किए गए होते तो दर्शकों से उनका रिश्ता बेहतर बनता। संतोष सिवन से एक गड़बड़ी और हुई है और वह है नए कलाकार हृदु हारून के किरदार को यूपी बोर्ड का पासआउट बताना, जबकि हिंदी उसकी बताती है कि वह कम से कम उत्तर प्रदेश का तो नहीं ही हो सकता।
मुंबईकर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
रणवीर, तान्या, विक्रांत और सचिन का साथ
फिल्म के बाकी कलाकारों में रणवीर शौरी, विक्रांत मैस्सी, तान्या मनिकतला, संजय मिश्रा आदि सब चौसर के अपने अपने खानों में मुस्तैद हैं। अंडरवर्ल्ड के डॉन के रूप में रणवीर शौरी सोने की जंजीरें पहनकर खूंखार दिखने की कोशिश करते हैं। विक्रांत मैस्सी शहर के आवारा छोकरे के किरदार में है जो अपने मामा के पुलिस इंस्पेक्टर होने का रुआब झाड़ता रहता है। मामा को वह अपना आदर्श भी मानता है और ये आदर्श फिल्म के क्लाइमेक्स में उसकी आंखों के सामने ही तार तार हो जाता है। संजय मिश्रा और बृजेंद्र काला के किरदार ऐसे है जिन्हें कोई भी दूसरा सहायक कलाकार आसानी से कर सकता है। तान्या मनिकतला खूबसूरत दिखी हैं। एचआर हेड का उनका किरदार ही इस हाइपरलिंक कहानी को क्लाइमेक्स तक लाता है। पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में सचिन खेडेकर असर छोड़ जाते हैं।
मुंबईकर रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
अच्छे गानों की कमी भी अखरी
संतोष सिवन की अपनी फिल्म हो तो उसके तकनीकी रूप से बेहतरीन होने में तो शक होना ही नहीं चाहिए। फिल्म तब की बनी है जब विजय सेतुपति का हिंदी सिनेमा में नाम ज्यादा हुआ नहीं था लेकिन रिलीज तब हो रही है जब उनकी चमक, धमक और दमक पूरे देश में एक जैसी है। इसका सबसे ज्यादा फायदा जियो सिनेमा को मिलेगा। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, संपादन और पार्श्वसंगीत अपनी अपनी जगह फिल्म के सही संबल बनते हैं। गानों के लिहाज से फिल्म थोड़ी कमजोर है। ‘इस रात की सुबह नहीं’ के गाने ‘चुप तुम रहो, चुप हम रहें’ जैसा एक गाना फिल्म का वोल्टेज बढ़ा सकता था।
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