निर्माता-निर्देशकः कमल हासन
सितारेः कमल हासन, पूजा कुमार, राहुल बोस, आंद्रिया जेरिम, शेखर कपूर, वहीदा रहमान
रेटिंग *1/2
विश्वरूपम 2 वन मैन शो है। मगर फ्लॉप। 2013 में आई विश्वरूपम का यह सीक्वल निराश करता है। खास तौर पर कहानी और स्क्रिप्ट। इस मामले में यह बेहद औसत फिल्म है, बावजूद इसके कि लेखन की बागडोर खुद कमल हासन ने संभाली। अभिनय के मामले में वह हमेशा की तरह जोरदार हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं कहते-करते, जिससे फिल्म देखने की ठोस वजह मिले। पिछली फिल्म में रॉ एजेंट मेजर विसम अहमद कश्मीरी (कमल हासन) ने अल-कायदा के आतंकी उमर कुरैशी (राहुल बोस) के पत्नी-बच्चों को अंत में बचा लिया था। इस बार उस आतंकी ने भारत में 60 से ज्यादा बम लगा दिए हैं, जिन्हें ढूंढ कर बेकार करने की चुनौती है। क्या हीरो इस चुनौती से पार पा सकेगा?
खुफियागिरी और एक्शन विश्वरूपम 2 का मुख्य आधार हैं लेकिन फिल्म बार-बार बहकती है। आपने पहला हिस्सा नहीं देखा तब तो मुश्किल होगी ही पर विश्वरूपम देखी भी हो तो कुछ-कुछ मिनटों में आने वाले फ्लैशबैक फिल्म की गति पर ब्रेक लगाते हैं। हेलीकॉप्टर, बम, बंदूक चलने के बीच हीरो के पास दो हसीनाएं (पूजा कुमार और आंद्रिया जेरिम) हैं लेकिन जेम्स बॉन्ड जैसा जादू नहीं जाग पाता। वास्तव में यहां किरदारों को सही ढंग से नहीं गढ़ा गया और एक मसाला फिल्म से आगे नहीं सोचा गया। अचानक कोई आता और अचानक गायब हो जाता है।
आते-जाते किरदारों के बीच पूजा कुमार द्वारा पानी में न्यूक्लियर बम डिफ्यूज करने का हिस्सा कहानी में अलग से जोड़ा गया मालूम पड़ता है ताकि वह हीरो की पत्नी के रूप में कुछ ठोस करती नजर आएं। विसम की अल्जाइमर ग्रस्त मां (वहीदा रहमान) आतंकी-जासूसी-ऐक्शन ड्रामे में एकाएक आकर कहानी को भावुक मोड़ देने की कोशिश करती है। अफसरों के रूप में शेखर कपूर और अनंत महादेवन कमरों में बैठे बाहर लड़ रहे अपने आदमियों को कंट्रोल कर रहे हैं। इन बिखरावों में एक अच्छी ऐक्शन फिल्म का ड्रामा तार-तार हो गया। दो घंटे 24 मिनट की मिनट फिल्म का एक असंतुलन यह है कि पहला हिस्सा जहां डेढ़ घंटे का है, वहीं दूसरे हिस्सा एक घंटे का भी नहीं।
इस मौसम के अनुकूल मजहब-मुल्क और देश से प्यार-गद्दारी की बातें यहां भी हैं। परंतु कहीं-कहीं ही यह कहानी में घुली नजर आती हैं। एक्शन और कैमरावर्क जरूर अच्छा है। आपने विश्वरूपम नहीं देखी तो सीक्वल देखने की वजह नहीं बनती। अगर वह आपने देखी है तो यहां कुछ खास नहीं पाएंगे। यह भी नहीं कहा जा सकता कि फिल्म कमल हासन के फैन्स के लिए है। कमल के हिस्से में कुछ बढ़िया संवाद हैं परंतु 63 की उम्र में वह अक्सर ऐक्शन के लिहाज से शिथिल नजर आते हैं। हिंदी में होने के बावजूद कई जगह साफ दिखता है कि मुख्य रूप से इस फिल्म को दक्षिण भारतीय दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है।
निर्माता-निर्देशकः कमल हासन
सितारेः कमल हासन, पूजा कुमार, राहुल बोस, आंद्रिया जेरिम, शेखर कपूर, वहीदा रहमान
रेटिंग *1/2
विश्वरूपम 2 वन मैन शो है। मगर फ्लॉप। 2013 में आई विश्वरूपम का यह सीक्वल निराश करता है। खास तौर पर कहानी और स्क्रिप्ट। इस मामले में यह बेहद औसत फिल्म है, बावजूद इसके कि लेखन की बागडोर खुद कमल हासन ने संभाली। अभिनय के मामले में वह हमेशा की तरह जोरदार हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं कहते-करते, जिससे फिल्म देखने की ठोस वजह मिले। पिछली फिल्म में रॉ एजेंट मेजर विसम अहमद कश्मीरी (कमल हासन) ने अल-कायदा के आतंकी उमर कुरैशी (राहुल बोस) के पत्नी-बच्चों को अंत में बचा लिया था। इस बार उस आतंकी ने भारत में 60 से ज्यादा बम लगा दिए हैं, जिन्हें ढूंढ कर बेकार करने की चुनौती है। क्या हीरो इस चुनौती से पार पा सकेगा?
फिल्म बार-बार बहकती है
खुफियागिरी और एक्शन विश्वरूपम 2 का मुख्य आधार हैं लेकिन फिल्म बार-बार बहकती है। आपने पहला हिस्सा नहीं देखा तब तो मुश्किल होगी ही पर विश्वरूपम देखी भी हो तो कुछ-कुछ मिनटों में आने वाले फ्लैशबैक फिल्म की गति पर ब्रेक लगाते हैं। हेलीकॉप्टर, बम, बंदूक चलने के बीच हीरो के पास दो हसीनाएं (पूजा कुमार और आंद्रिया जेरिम) हैं लेकिन जेम्स बॉन्ड जैसा जादू नहीं जाग पाता। वास्तव में यहां किरदारों को सही ढंग से नहीं गढ़ा गया और एक मसाला फिल्म से आगे नहीं सोचा गया। अचानक कोई आता और अचानक गायब हो जाता है।
आते-जाते किरदारों के बीच पूजा कुमार द्वारा पानी में न्यूक्लियर बम डिफ्यूज करने का हिस्सा कहानी में अलग से जोड़ा गया मालूम पड़ता है ताकि वह हीरो की पत्नी के रूप में कुछ ठोस करती नजर आएं। विसम की अल्जाइमर ग्रस्त मां (वहीदा रहमान) आतंकी-जासूसी-ऐक्शन ड्रामे में एकाएक आकर कहानी को भावुक मोड़ देने की कोशिश करती है। अफसरों के रूप में शेखर कपूर और अनंत महादेवन कमरों में बैठे बाहर लड़ रहे अपने आदमियों को कंट्रोल कर रहे हैं। इन बिखरावों में एक अच्छी ऐक्शन फिल्म का ड्रामा तार-तार हो गया। दो घंटे 24 मिनट की मिनट फिल्म का एक असंतुलन यह है कि पहला हिस्सा जहां डेढ़ घंटे का है, वहीं दूसरे हिस्सा एक घंटे का भी नहीं।
इस मौसम के अनुकूल मजहब-मुल्क और देश से प्यार-गद्दारी की बातें यहां भी हैं। परंतु कहीं-कहीं ही यह कहानी में घुली नजर आती हैं। एक्शन और कैमरावर्क जरूर अच्छा है। आपने विश्वरूपम नहीं देखी तो सीक्वल देखने की वजह नहीं बनती। अगर वह आपने देखी है तो यहां कुछ खास नहीं पाएंगे। यह भी नहीं कहा जा सकता कि फिल्म कमल हासन के फैन्स के लिए है। कमल के हिस्से में कुछ बढ़िया संवाद हैं परंतु 63 की उम्र में वह अक्सर ऐक्शन के लिहाज से शिथिल नजर आते हैं। हिंदी में होने के बावजूद कई जगह साफ दिखता है कि मुख्य रूप से इस फिल्म को दक्षिण भारतीय दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है।