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Jaanbaaz Hindustan Ke Review in Hindi by Pankaj Shukla Zee5 Srijit Mukherji Regina Cassandra Chandan Roy
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Jaanbaaz Hindustan Ke Review: बिकरू कांड से जन्मे विचार की उत्तर पूर्व यात्रा, जी5 की इस सीरीज में जान नहीं है
वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ देखकर ये साफ समझ आता है कि इसे बनाने वालों के पास जो विचार आया, वह बस नाम और पुलिस अफसरों के कारनामों तक ही सीमित रहा। इसके डीएनए से जी5 की नई क्रिएटिव टीम और इसके निर्माता दोनों अनभिज्ञ ही हैं।
रेजिना कैसैंड्रा
,
मीता वशिष्ठ
,
सुमित व्यास
,
गायत्री शंकर
,
दीपिका देशपांडे अमीन
और
चंदन रॉय
लेखक
नीरज उधवानी
,
आशीष पी वर्मा
और
अखिलेश जायसवाल
निर्देशक
श्रीजित मुखर्जी
निर्माता
जगरनॉट प्रोडक्शंस
ओटीटी
जी5
रेटिंग
1.5/5
विस्तार
देश का अपना एक देसी ओटीटी जिस पर सारी देसी भाषाओं और बोलियों की वेब सीरीज और फिल्में हों, इसका सपना टेलीविजन और रेडियो के दिग्गज रहे तरुण कत्याल ने देखा और इसे पूरा किया जी5 की शक्ल में। अच्छी तकनीक से ओटीटी अच्छा बन भी गया। तरुण ने अपने अपने इलाकों के बदमाशों पर सीरीज सोची ‘रंगबाज’ और कानपुर के करीब हुए बिकरू कांड के बाद इसके ठीक उलट विचार पर उनके सामने मैंने जब एक सीरीज का विचार प्रस्तुत किया तो उन्होंने तुरंत इसे मंजूरी देते हुए नाम दिया ‘जांबाज’। निर्माता, निर्देशक, लेखक सब तय हो गए। इस नाम से जो सीरीज जी5 पर बननी थी, उसका पहला सीजन बिकरु कांड में शहीद हुए पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा पर आधारित था। कोरोना काल में इस पर खूब काम हुआ। विचार यही था कि ड्यूटी पर जान गंवाने वाले प्रांतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की शहादत के बारे में देश दुनिया को बताना। तरुण एकाएक जी5 से विदा हुए। उनके जाने के अरसा बाद ‘जांबाज’ सीरीज के नाम के साथ एक जुमला जोड़कर इसे बना दिया गया है, ‘जांबाज हिंदुस्तान के’।
जांबाज हिंदुस्तान के
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
बहुत ही चलताऊ सीरीज
वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ देखकर ये साफ समझ आता है कि इसे बनाने वालों के पास जो विचार आया, वह बस नाम और पुलिस अफसरों के कारनामों तक ही सीमित रहा। इसके डीएनए से जी5 की नई क्रिएटिव टीम और इसके निर्माता दोनों अनभिज्ञ ही हैं। प्रांतीय पुलिस अफसरों की शहादत की कहानी यहां अपने पारिवारिक जीवन से परेशान एक महिला पुलिस अफसर से शुरू होती है। उत्तर पूर्व से शुरू हुई इस कहानी की नायिका एक महिला पुलिस अफसर है। बढ़िया हिंदी बोलती है। एक आईपीएस के लिए ये बड़ी बात नहीं। लेकिन वहां के उग्रवादियों ने जिन स्थानीय लोगों का अपहरण किया है, पहले ही सीन में वह भी हिंदी ही बोलते दिखते हैं। शुरू होते ही सीरीज का डीएनए दिख जाता है। जी5 की क्रिएटिव हेड निमिषा पांडे ने इस सीरीज को बनने क बाद देखा या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन सीरीज हेड देविका शिवदासानी ने भी कुछ खास ध्यान इसकी मेकिंग पर दिया नहीं है। पुलिस की वर्दी में कंधों पर सितारे न सजे हों, समझ आता है लेकिन पुलिस कहां की है अगर ये बताने के लिए पीतल के बैज भी न दिखें तो गड़बड़ लगती है।
जांबाज हिंदुस्तान के
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
आतंकवादियों और पुलिस की कहानी
कहानी के मुताबिक वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ की कहानी मेघालय से शुरू होती है। महिला पुलिस अफसर अपनी मां और बेटे के साथ रहती है। पति से उसका झगड़ा चल रहा है। बिल्कुल फॉर्मेट वाला किरदार। कम ही होता है हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में कि कहानी का नायक पुलिस अफसर हो और उसका पारिवारिक जीवन भी सामान्य चल रहा हो। यहां मामला तलाक तक जा पहुंचा है। कहानी आगे बढ़ती है। महिला पुलिस अफसर को नई महिला बॉस मिलती है। दोनों के बीच शुरुआती धींगामुश्ती दिखती है लेकिन मामला पटरी पर आ पाने से पहले ही पटरी से उतर भी जाता है क्योंकि कहानी वहीं चली जाती है जहां इस तरह की पहले ही आ चुकीं सीरीज ‘द फैमिली मैन’ या ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ पहले ही जा चुकी हैं। दर्शक आखिर तक तलाशता रहता है कि इस कहानी में नया क्या है और कहानी है कि ड्रोन से होने वाले हमलों जैसी हवा में लटकी रहती है। पुलिस आतंकवादियों के पीछे है। आतंकवादी अपनी धुन में हैं। अंत क्या होगा, सबको पता है।
जांबाज हिंदुस्तान के
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
श्रीजित मुखर्जी की एक और कमजोर कोशिश
जी5 की इस साल की शुरुआत फिल्म ‘छतरीवाली’ के जरिये अच्छी हुई लेकिन अगले ही हफ्ते में मामला फिर से दो साल पीछे पहुंच गया है। फिल्मों के मामले इस ओटीटी की छवि ऐसी बन चुकी है कि जो माल कहीं न बिके वह जी5 पर बिक ही जाता है। ऐसा ही कुछ वेब सीरीज के मामले में भी होता दिखने लगा है। एक ‘मुखबिर’ सीरीज को छोड़ दें तो हाल के दिनों में इस ओटीटी पर कुछ खास देखने को मिला नहीं है। वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ एक घिसी पिटी कहानी है जिसके संवाद और भी पिटे हुए हैं। निर्देशक श्रीजित मुखर्जी हैं। हिंदी से लड़ाई भी है और हिंदी में ही कदम जमाने की कोशिश भी। बांग्ला में उनका बड़ा नाम रहा है लेकिन हिंदी में उनकी गाड़ी ‘शेरदिल’ और ‘शाबास मिट्ठू’ में अटक कर रह गई। नेटफ्लिक्स की फिल्मावली ‘रे’ की दो कहानियां भी उन्होंने निर्देशित कीं। उनका असर भी कुछ खास हुआ नहीं। अब वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ भी उसी रास्ते जाते दिख रही है।
जांबाज हिंदुस्तान के
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
चंदन रॉय और गायत्री पर दारोमदार
वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ की सबसे कमजोर कड़ी अगर इसका उधार का लिया विचार है तो दूसरी सबसे कमजोर कड़ी इसका लेखन है। और, वह ऐसा है कि अगर इसका दो मिनट चार सेकेंड का ट्रेलर आप देखना शुरू करें तो शायद उसे भी बीच में ही छोड़ दें। ऐसी सीरीज के आठ एपीसोड देखना भी अपने आप में एक चुनौती है। सीरीज की कास्टिंग दमदा नहीं है। ‘रॉकेट बॉयज’ में अपने अभिनय से दर्शकों के दिल जीतने वाली रेजिना एक पुलिस अफसर के रोल में पूरी तरह निष्प्रभावी हैं। आतंकवादी बने सुमित व्यास इतना ज्यादा और इतनी जल्दी जल्दी ओटीटी पर दिखने लगे हैं कि उनका आभामंडल ही निस्तेज हो चला है। मीता वशिष्ठ हिंदी सिनेमा की काबिल अभिनेत्री रही हैं लेकिन एक दिशाहीन निर्देशक ने उनसे भी संवाद कुछ इस तरह बुलवाए हैं कि उनका अभिनय दोयम दर्जे का लगने लगता है। कोई अभिनेता इस सीरीज में अगर दर्शकों को थोड़ा बहुत प्रभावित करने में सफल रहा है तो वह हैं चंदन रॉय और उसके बाद गायत्री शंकर का नाम लिया जा सकता है। तकनीकी रूप से फिल्म बहुत ही खराब बनी है। सिनेमैटोग्राफी, संपादन और बैकग्राउंड म्यूजिक सब बहुत चलताऊ है। और, यूं लगता है कि सीरीज को बस एक बैठे ठाले मिल गए विचार को परदे पर उतारने के लिए बना दिया गया है।
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