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Fouja Movie Review: बड़ा संदेश देती छोटे बजट की फिल्म ‘फौजा’, पवन मल्होत्रा की अदाकारी का दिखा अलहदा अंदाज

Pankaj Shukla पंकज शुक्ल
Updated Sun, 04 Jun 2023 06:13 PM IST
Fouja Movie Review in Hindi by Pankaj Shukla Pramod Kumar Ajit Dalmiya Pavan Raj Malhotra Karthik Dammu
फौजा - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
Movie Review
फौजा
कलाकार
पवन राज मल्होत्रा , कार्तिक धामू , ऐश्वर्या सिंह , हरिओम कौशिक , नवीन , जान्हवी सिंह सांगवान , नीवा मलिक , संदीप शर्मा और जोगी मलंग
लेखक
प्रवेश राजपूत और आकाश सिंह
निर्देशक
प्रमोद कुमार
निर्माता
अजीत डालमिया
रिलीज
3 जून 2023
रेटिंग
3/5

भारतीय सेना में जाने का देश के गांवों में रहने वाले युवाओं का एक सपना होता है। गांवों की पगडंडियों पर, पास से गुजरने वाली सड़कों पर और यहां तक कि हाईवे पर भी सूरज उगने से पहले लाखों युवा अलग अलग सूबों में दौड़ने का अभ्यास करते दिख जाते हैं। इनको कोई नहीं बताता कि सिपाही के तौर पर भर्ती होने के अलावा सेना में अधिकारी के रूप में भी भर्ती होने के तमाम तरीके हैं। इनको बस बदन पर फौज की वर्दी प्यारी होती है। फिल्म ‘फौजा’ में एक संवाद भी है, ‘दुनिया में कपड़ों का सबसे महंगा ब्रांड है एक फौजी की वर्दी। क्योंकि, इसे खरीदा नहीं जा सकता। इसके लायक बनाना पड़ता है खुद को।’ सरहदों पर देश की सुरक्षा में दिन रात डटे रहने वाले इन सिपाहियों को सामने वाले दिखने वाले दुश्मन के बारे में तो पता है, लेकिन इनके अपने गांवों की गलियों में इनके परिवारों पर घात लगाए बैठे दुश्मनों का इन्हें कहां पता होता है..?

Fouja Movie Review in Hindi by Pankaj Shukla Pramod Kumar Ajit Dalmiya Pavan Raj Malhotra Karthik Dammu
फौजा - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
फौज की पृष्ठभूमि पर बनी मार्मिक कहानी
फिल्म ‘फौजा’ साधारण तरीके से कही गई एक मार्मिक कहानी है। ‘फौजा’ यानी वह इंसान जो फौज में भर्ती नहीं हो पाया। बाप, दादा, परदादा और उसके पहले की सात पुश्तों ने वतन की रक्षा में अपना शरीर होम कर दिया। ऐसे परिवार का कोई बेटा अगर शारीरिक विकलांगता के चलते फौज में भर्ती न हो पाए तो ये दुख उसको जीवन भर सालता रहता है। फिर उसे अपने जवान हो रहे बेटे से उम्मीदें बंधती है। बेटा सुबह घर से दौड़ने के लिए निकलता है और अपने दोस्त के घर जाकर सो जाता है। बेटे से नाउम्मीद पिता खुद ही फौज में भर्ती होने निकल पड़ता है। बेटे को अक्ल आती है और वह अपनी दोस्त के संग वक्त बिताना छोड़ फौज की भर्ती के लिए खुद को तैयार करने की ठान लेता है। साथ में गांव की राजनीति भी चलती रहती है। एक लालची ठेकेदार है जिसकी नजर उस जमीन पर है जहां फौजा कपड़े सिलने की दुकान चलाता है। बेटा दुश्मनों से सरहद पर जंग लड़ रहा है। पिता गांधी प्रतिमा के नीचे खड़ा होकर जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहा है।

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फौजा - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
पवन मल्होत्रा की पावरफुल परफॉर्मेंस
फिल्म ‘फौजा’ अभिनेता पवन मल्होत्रा ने एक तरह से अपने मजबूत कंधों पर शुरू से आखिर तक उठा रखी है। अक्सर हिंदी सिनेमा में हाशिये के किरदारों तक सीमित रह जाने वाले पवन मल्होत्रा ने इन दिनों दमदार किरदार करने का बीड़ा सा उठा रखा है। फिल्म ‘सेटर्स’ में एक दमदार किरदार निभाने के बाद अपनी सेकंड इनिंग्स में उन्होंने पहले ‘ग्रहण’ और फिर ‘टब्बर’ जैसी वेब सीरीज में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। फिल्म ‘फौजा’ में वह एक हौसलेमंद दादा से लेकर पहले एक लाचार पिता और फिर अपने बेटे की कामयाबी का ढोल बजाने वाले पिता के रूप में सामने आते हैं। दुकान पर सिलने आई वर्दी पहन फौज में भर्ती होने जा पहुंचने के दृश्य में उनका अभिनय कलेजा कचोट लेने वाला है। नगर पालिका के दफ्तर के सामने गांधी प्रतिमा के नीचे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाला दृश्य भी पवन मल्होत्रा के अभिनय के एक और रंग की बानगी दिखाता है। केसरिया पगड़ी बांधे पवन मल्होत्रा का अभिनय उनकी अपनी ही अभिनय यात्रा की लकीर फिल्म ‘फौजा’ में गाढ़ी करती दिखता है।

Fouja Movie Review in Hindi by Pankaj Shukla Pramod Kumar Ajit Dalmiya Pavan Raj Malhotra Karthik Dammu
फौजा - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
प्रमोद कुमार का काबिले तारीफ निर्देशन
निर्देशक प्रमोद कुमार ने अपनी ही कल्पना पर एक अच्छी कहानी प्रवेश राजपूत और आकाश सिंह से लिखवाई है। यहां जोर स्पेशल इफेक्ट्स पर कम और इमोशनल इफेक्ट्स पर ज्यादा है। प्रमोद कुमार ने एक ऐसी कहानी को हरियाणवी भाषा में परदे पर उठाने का बीड़ा उठाया है, जिसका डीएनए देशभक्ति है। लेकिन, देशभक्ति यहां डायलॉगबाजी का बहाना नहीं है। यहां देशभक्ति उन लोगों के सपने के तौर पर सामने आती है जिनके लिए तिरंगे के सामने वर्दी में सैल्यूट करना उनकी आन, बान और शान से जुड़ा होता है। फिल्म ‘फौजा’ एक ऐसी फिल्म है जिसे देश के हर सिनेमाघर में दिखाया जाना चाहिए और हो सके तो स्कूलों में भी जरूर दिखाया जाना चाहिए। ऐसी फिल्में समाज को सशक्त बनाती हैं। युवाओं को देश के लिए कुछ करने का हौसला देती हैं और उस जज्बे को बनाए रखती हैं जिसकी तरफ अब कभी कभार ही फिल्में, धारावाहिक या वेब सीरीज बनाने वालों का ध्यान जाता है। निर्माता अजीत डालमिया ऐसी ये फिल्म बनाने के लिए बधाई के पात्र हैं।

Fouja Movie Review in Hindi by Pankaj Shukla Pramod Kumar Ajit Dalmiya Pavan Raj Malhotra Karthik Dammu
फौजा - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

जोगी का जोग और वेशभूषा का संजोग
बहुत छोटे बजट की फिल्म होने के बावजूद निर्देशक प्रमोद कुमार ने फिल्म ‘फौजा’ में सिनेमाई संवेदनाओं का पूरा ख्याल रखा है। लीड किरदारों के रूप में लिए गए दो नए कलाकारों कार्तिक धामू और ऐश्वर्या सिंह से उन्होंने बढ़िया काम लिया है। स्थानीय कलाकारों में हरिओम कौशिक, नवीन, जान्हवी सिंह सांगवान, नीवा मलिक और संदीप शर्मा भी खूब जमे हैं। और, मुंबई के मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर जोगी मलंग का तो गांव के ठेकेदार के तौर पर अंदाज ही निराला है। वेशभूषा में कहानी और किरदारों के बीच सामंजस्य बनाने का काम फिल्म के लिए वेशभूषा तैयार करने वाली फैशन डिजाइनर मंजू शर्मा और उनके सहयोगी अश्वनी प्रजापत ने बहुत करीने से किया है। और, फिल्म का संगीत तैयार करने वाले युग भुसल ने भी एक क्षेत्रीय फिल्म के हिसाब से बहुत बढ़िया काम किया है। क्षेत्रीय फिल्मों में छोटी छोटी बातें बड़ा असर छोड़ती हैं। बेटे का सुबह उठते ही पिता के पैर छूना ऐसा ही एक संस्कार है, जिसे दिखाकर निर्देशक प्रमोद कुमार ने फिल्म का रिश्ता सीधे अपने दर्शकों से जोड़ लिया है।

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