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ChidiaKhana Review: एनएफडीसी की एक और फिल्म का बंटाधार, मूल कहानी पर फोकस न होने से बनी चूं चूं का मुरब्बा

Virendra Mishra वीरेंद्र मिश्र
Updated Thu, 01 Jun 2023 11:48 PM IST
ChidiaKhana Review NFDC another film breaks due to lack of focus on the original story read here
चिड़ियाखाना - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
Movie Review
चिड़ियाखाना
कलाकार
ऋत्विक साहोर , अवनीत कौर , राजेश्वरी सचदेवा , प्रशांत नारायण , गोविंद नामदेव , अंजन श्रीवास्तव और रवि किशन
लेखक
मनीष तिवारी
निर्देशक
मनीष तिवारी
निर्माता
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी)
रिलीज
02 जून 2023
रेटिंग
1.5/5

राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम एक ऐसी सरकारी संस्था है जिसका कार्य देश में अच्छे सिनेमा के निर्माण के साथ-साथ सिनेमा के व्यवसाय को व्यवस्थित करना है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से ऐसी फिल्में बन रही हैं, जो न तो दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी उतर रही हैं और, न ही उनके व्यवसाय में ही कुछ सुधार होता दिख रहा है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से जितनी भी फिल्में बनी हैं, उनकी कहानी का प्लॉट बहुत अच्छा होता है। लेकिन, जिस तरह से कहानी कागज पर लिखी होती है, उस तरह से रुपहले पर्दे पर नहीं उतर पाती है। ऐसा ही कुछ फिल्म 'चिड़ियाखाना' के साथ होता दिख रहा है।

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चिड़ियाखाना - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
फिल्म 'चिड़ियाघर' की कहानी फुटबॉल के खेल के सहारे कहने की कोशिश की गई है। कथानक ये है कि बाकी खेलों की तरह फुटबॉल खेल भी महत्व देना चाहिए। इसके लिए किन खास बातों का ध्यान दिया जाए और इस खेल के प्रति लोगों में जागरूकता कैसे पैदा हो? फिल्म का असल यही मुद्दा होना चाहिए। लेकिन, कथा के पटकथा में तब्दील होने और उसके बाद उस पर फिल्म बनाने की प्रक्रिया में सबकुछ उल्टा पुल्टा हो गया है। फिल्म की कहानी बिहार से अपनी मां के साथ आए एक लड़के से शुरू होती है। वह मुंबई के सरकारी स्कूल में दाखिला लेता है। उसके मन में बार -बार सवाल उठता है कि उसकी मां बार- बार शहर क्यों बदलती है? शहर बदले, स्कूल बदले, जो कुछ नहीं बदला, वह है सूरज का फूटबाल के प्रति अपना एक जुनून। सूरज सरकारी स्कूल में बच्चों के साथ फुटबॉल खेलता रहता है। तभी स्कूल के प्रिंसिपल कहते हैं कि स्कूल के ग्राउंड की लीज खत्म हो गई है। यह तभी बच सकता है जब स्कूल के बच्चे फुटबॉल मैच जीतेंगे।

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चिड़ियाखाना - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई

फिल्म 'चिड़ियाघर' में लेखक-निर्देशक मनीष तिवारी ने एक ट्विस्ट लाने की कोशिश की। और, वह ट्विस्ट है कि सभी इंसान के अंदर एक जानवर होता है। अगर फुटबॉल मैच जीतना है तो हमारे अंदर जो जानवर है, उसे ताकत के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इसी सोच के तहत किरदार जानवरों की शक्ल में दिखने दिखते हैं। मुंबई के टॉप फुटबॉल खिलाड़ियों से सरकारी स्कूल के जर्जर इमारत में पढ़ने वालो बच्चों का फुटबॉल मैच होता है। जाहिर सी बात है कि फिल्म है तो जीत सरकारी स्कूल में पढ़ने बच्चों की ही होनी है। लेकिन, फिल्म को परिणाम तक लाने में इसे कैसे ‘चक दे इंडिया’ बनाया जाए उसमें फिल्म के निर्देशक पूरी तरह फेल हो गए हैं।

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चिड़ियाखाना - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई

फिल्म की कहानी फुटबॉल खेल को बढ़ावा देने के बारे में हैं, लेकिन फिल्म आगे बढ़ती है तो इसमें भू माफिया, गैर मुम्बईकर और बिहार का नक्सलवाद जैसा मुदा भी आ जाता है। सूरज की मां की नक्सलवादी की पत्नी की भूमिका में दिखाया गया है जिसकी मुठभेड़ में मृत्यु हो जाती है। वह अपने अतीत से बचने के लिए शहर दर शहर भटकते हुए मुंबई पहुंच जाती है। मुंबई पहुंचने के बाद उनका भाई ढूंढ लेता है। यहां से लगता है कि कहानी में एक नया ट्विस्ट आ सकता है लेकिन निर्देशक ने ये पूरा ट्रैक बस दो मिनट में निपटा दिया है और फिल्म 'चिड़ियाघर' बस चूं चूं का मुरब्बा बन कर रह जाती हैं।

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चिड़ियाखाना - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई

फिल्म 'चिड़ियाघर' के निर्देशक मनीष तिवारी की पिछली फिल्म 'दिल दोस्ती इटसेट्रा' के निर्माता प्रकाश झा थे। फिल्म साल 2007 में रिलीज हुई और फ्लॉप करार दी गई। फिर 2013 में मनीष तिवारी ने प्रतीक बब्बर, अमायरा दस्तूर और रवि किशन को लेकर फिल्म 'इसक' बनाई। तब की दोस्ती निभाने के लिए अभिनेता रवि किशन भी फिल्म 'चिड़ियाघर' में हैं और बस एक दृश्य में अपना एहसान उतारकर गायब हो जाते हैं।

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चिड़ियाखाना - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
फिल्म के बाकी कलाकारों की बात करें तो सिवाय प्रशांत नारायण के किसी का काम प्रभावित नहीं कर पाया। राजेश्वरी सचदेवा, गोविंद नामदेव, अंजन श्रीवास्तव, नागेश भोसले मिलिंद जोशी जैसे सिनेमा के दिग्गज कलाकार सब अपनी खानापूरी करते दिखते हैं। लोरी गीत 'सो जा रे बबुआ' के अलावा फिल्म 'चिड़ियाघर' में ऐसा कोई गीत नहीं है जो याद रह जाए। फिल्म के बैकग्राउंड में कुछ गाने ऐसे बजते रहते हैं तो सीन्स को काफी डिस्टर्ब करते हैं। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी और संकलन भी सामान्य है।    

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