Hindi News
›
Entertainment
›
Movie Reviews
›
Bloody Daddy Review in Hindi by Pankaj Shukla Ali Abbas Zafar Shahid Kapoor Diana Penty Ronit Rajiv Khandelwal
{"_id":"64828c7adf87eaab6d0352ac","slug":"bloody-daddy-review-in-hindi-by-pankaj-shukla-ali-abbas-zafar-shahid-kapoor-diana-penty-ronit-rajiv-khandelwal-2023-06-09","type":"wiki","status":"publish","title_hn":"Bloody Daddy Review: अली ने सिनेमा पर छिड़का एक्शन का अलहदा रंग, बीवी से अलग बाप के किरदार में खूब जमे शाहिद","category":{"title":"Movie Reviews","title_hn":"मूवी रिव्यूज","slug":"movie-review"}}
Bloody Daddy Review: अली ने सिनेमा पर छिड़का एक्शन का अलहदा रंग, बीवी से अलग बाप के किरदार में खूब जमे शाहिद
शाहिद कपूर
,
डायना पेंटी
,
रोनित रॉय
,
राजीव खंडेलवाल
,
विवान भटेना
,
अंकुर भाटिया
और
और संजय कपूर आदि
लेखक
अली अब्बास जफर
और
आदित्य बसु (फ्रेडरिक जार्डेन की फ्रेंच फिल्म ‘नुई ब्लॉन्श’ पर आधारित)
निर्देशक
अली अब्बास जफर
निर्माता
ज्योति देशपांडे
,
हिमांशु किशन मेहरा
और
अली अब्बास जफर
ओटीटी
जियो सिनेमा
रिलीज
9 जून 2023
रेटिंग
3.5/5
अली अब्बास जफर का अपना एक अलग ही सिनेमा उनके शुरुआती दिनों से हिंदी फिल्म जगत में चल रहा है। न उधौ से लेना, न माधव का देना। कोई सपने में भी नहीं सोच सकता कि फिल्म ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’ से अपना करियर शुरू करने वाला ये निर्देशक 12 साल बाद ‘ब्लडी डैडी’ बना रहा होगा। यही अली की खासियत है। उनकी अपनी कथानक, अपने कथन और अपने कलाकारों के साथ तल्लीनता अपनी जगह अडिग है। फिल्म की श्रेणी बदलती रहती है। वह ‘गुंडे’ भी बनाते हैं और ‘जोगी’ भी। वह वेब सीरीज का ‘तांडव’ भी करते हैं और ये भी बताते हैं कि ‘टाइगर जिंदा है’! और, ऐसा करने में अली हर बार चौंकाते हैं। एक फिल्म निर्देशक की असल कसौटी इसी में है कि वह हर बार अपने चाहने वालों को चौंकाए और कुछ ऐसा कर जाए कि वह चर्चा का विषय बन जाए। अली अब्बास जफर की नई फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ की चर्चा अभी लंबे समय तक चलने वाली है।
ब्लडी डैडी रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
खालिस एक्शन फिल्म
फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ उन लोगों को बहुत पसंद आएगी जिन्हें हीरो-हीरोइन के बगीचों में लगने वाले चक्कर बिल्कुल नहीं भाते और उन्हें भी जिन्हें तोता-मैना की कहानियों में जरा भी दिलचस्पी नहीं है। ये फिल्म उन हिंदी भाषी दर्शकों के लिए है जो अपनी पसंद की प्यास कभी ‘द घोस्ट राइडर’ तो कभी ‘जॉन विक’ सीरीज की फिल्मों से पूरी करते हैं। यहां शाहिद कपूर का किरदार देसी जॉन विक सरीखा है। वह नारकोटिक्स विभाग में काम करता है। ड्रग्स पकड़ता भी है और उसे हजम कर जाने के ख्वाब भी देखता है। बस इस बार बीच में उसका बेटा आ जाता है। वह जंग लड़ने निकलता है। उसके अपने विभाग के लोग उसे कदम कदम पर धोखा देते रहते हैं। जबकि, उसका टारगेट है दिल्ली एनसीआर का एक ऐसा ड्रग माफिया किंग जिसकी जान 50 करोड़ रुपये की कोकीन में अटकी है। और, इस जंग के बीच में कहीं अटका है एक मासूम बेटा।
ब्लडी डैडी रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
थोड़ा कबीर, थोड़ा फर्जी
साल 2011 में रिलीज हुई फ्रेंच फिल्म ‘नुई ब्लॉन्श’ की कहानी पर देश में पहले भी एक फिल्म बन चुकी हैं। इस तमिल फिल्म के हीरो थे कमल हासन। इस बार फिल्म शाहिद कपूर के कंधे पर है। शाहिद कपूर को अली अब्बास जफर ने उनके उस रूप में पेश किया है जिसमें दर्शकों ने कोरोना काल से ठीक पहले फिल्म ‘कबीर सिंह’ में खूब पसंद किया। बीच में शाहिद ने एक ‘फर्जी’ सी सीरीज भी लेकिन यहां मामला दोनों के कॉकटेल सरीखा है। सुमैर के किरदार में शाहिद कपूर फिर से अपने अतरंगी मूड में हैं। सुमैर की बीवी किसी दूसरे की हो चुकी है। बेटे में उसकी जान बसती है। लेकिन, अपनी आदतों से वह बाज नहीं आता। वह हिंदी सिनेमा का घिसा पिटा हीरो नहीं है। ईमानदारी पर कायम रहना सिर्फ उसकी ही जिम्मेदारी नहीं है। वह सिस्टम की चूलें हिलाना चाहता है लेकिन इसके लिए उसका अपना स्टाइल है। और, सुमैर के इस स्टाइल से शाहिद कपूर का स्टाइल फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ में पूरी तरह मेल खाता है।
ब्लडी डैडी रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
अली का फिल्म दर फिल्म कमाल
अली अब्बास जफऱ ने एक विदेशी फिल्म को अपनी फिल्म का विषय़ बनाया है, ये खबर जब से सार्वजनिक हुई है, फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ पर सबकी निगाहें लगी रही हैं। जियो सिनेमा ने इसे सिनेमाघरों मे रिलीज क्यों नही किया, ये तो इसके कर्ता धर्ता ही जानें लेकिन सिनेमाघरों में जाने वाले दर्शकों का इन दिनों जो माहौल है, उसे सुधारने के लिए ये फिल्म बिल्कुल सही हिंदी फिल्म होती। ‘जॉन विक 4’ की कामयाबी इसकी मुनादी पहले ही कर चुकी है, लेकिन जियो सिनेमा शायद ज्यादा रिस्क लेने के मूड में है नहीं। अली अब्बास जफर की पिछली फिल्म ‘जोगी’ भी अपने कथन के हिसाब से कमाल फिल्म रही है और फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ का कमाल उससे बिल्कुल अलहदा है। अली ने अपने कलाकारों का चयन भी फिल्म में बिल्कुल सटीक किया है। पहले 50 मिनट कब गुजर जाते हैं, पता भी नहीं चलता। करीब दो घंटे की ये फिल्म इस सप्ताहांत का परफेक्ट बिंज वॉच है। अली के सिनेमा में सामाजिक सटायर की जो एक अंतर्धारा हर फिल्म में बहती रहती है, उसकी एक स्रोत यहां भी है।
ब्लडी डैडी रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
रोनित और राजीव की रंगबाजी
फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ को शाहिद कपूर के आसपास खड़ी की गई दुनिया से भी काफी सहारा मिलता है। शुरुआती दृश्यों के बाद फिल्म की मूल कहानी एक रात और एक लोकेशन पर आ गिरती है। और, एक रात की कहानी को कहना किसी भी फिल्म निर्देशक के लिए एक बड़ी चुनौती से कम नहीं होता। अली इसमें सम्मान सहित अंकों से उत्तीर्ण हुए हैं तो इसमें उनके चुने फिल्म के साथी कलाकार काफी मदद करते हैं। संजय कपूर भले यहां ‘द नाइट मैनजेर’ के अनिल कपूर की कॉपी करते नजर आते हों, लेकिन ये फिल्म बनी उसके समानांतर ही है। रोनित रॉय इस फिल्म के दूसरे टेंट पोल हैं और उनकी साथी टीम के सारे कलाकार अपनी अपनी जगह बिल्कुल फिट हैं। राजीव खंडेलवाल को अरसे बाद परदे पर देखना और वह भी स्याह किरदार में, फिल्म को एक नया रंग देता है। डायना पेंटी भी बहुत अरसे बाद परदे पर दिखी और उनके किरदार के सामने पल पल बदलती चुनौतियां उन्हें अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का मौका भी खूब देती हैं।
ब्लडी डैडी रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
सिनेमैटोग्राफी और संपादन की जुगलबंदी
स्टीवन बर्नाड का संपादन और मारसिन लास्काविएक की सिनेमैटोग्राफी फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ के असल मस्तूल हैं। और, इनकी ऊंचाई इनकी तकनीकी गुणवत्ता के चलते इतनी शानदार है कि ये दिल्ली एनसीआर को भी लॉस वेगास बना देती हैं। आमतौर पर ऐसी कहानियां मुंबई जैसे शहरों की पृष्ठभूमि में ही सोची जाती हैं लेकिन सियासी माहौल को दरकिनार कर इस इलाके को एक नए रंग में पेश करना अली अब्बास जफर की अलहदा सोच का ही नतीजा है। गाने के बीच ढपली पीटकर ‘गो कोरोना गो’ का स्वांग रचना बहुत कुछ कह जाता है। क्लाइमेक्स के बीच में बादशाह का गाना भी सही बुना गया है। हां, इस दौरान एक्शन दृश्यों के सेट बार बार ‘जॉन विक 4’ की याद दिलाते रहते हैं। एक्शन फिल्मों के शौकीनों को ये फिल्म खूब पसंद आएगी। हां, फिल्म के ये एक्शन दृश्य थोड़े वीभत्स हैं लिहाजा फिल्म देखते समय थोड़ी सावधानी जरूरी है।
एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें
अतिरिक्त ₹50 छूट सालाना सब्सक्रिप्शन पर
Next Article
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।