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Bheed Movie Review: पंकज कपूर के शानदार अभिनय से सजी 'भीड़', अनुभव की तंत्रत्रयी का श्वेत-श्याम प्रस्थान
राजकुमार राव
,
भूमि पेडनेकर
,
पंकज कपूर
,
दीया मिर्जा
,
आशुतोष राणा
,
वीरेंद्र सक्सेना
,
आदित्य श्रीवास्तव
और
कृतिका कामरा आदि।
लेखक
अनुभव सिन्हा
,
सौम्या तिवारी
और
सोनाली जैन
निर्देशक
अनुभव सिन्हा
निर्माता
अनुभव सिन्हा
,
भूषण कुमार
और
कृष्ण कुमार
रिलीज
24 मार्च 2023
रेटिंग
2.5/5
डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर प्रसारित विनोद कापड़ी की डॉक्यूमेंट्री ‘1232 किमी’ अगर आपने देखी है तो फिल्म ‘भीड़’ आपको एक जानी-पहचानी सी कहानी लगेगी। लेकिन, कोरोना लॉकडाउन की ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं जिन तक न पत्रकार पहुंच सके हैं और न फिल्मकार। जो अखबारों में छप चुका है। टीवी न्यूज चैनलों पर दिखाया जा चुका है, उसे ही एक काल्पनिक कथा (साथ में प्रेमकथा) में पिरोकर निर्माता, निर्देशक अनुभव सिन्हा ने इस बार उसका ‘रंग’ निकाल दिया है। 'मुल्क', 'आर्टिकल 15', 'थप्पड़' और 'अनेक' जैसी सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालते फिल्में बना चुके अनुभव का इरादा नेक है। लेकिन, अपनी ही दुनिया में खोए रहने की उनकी जिद न उन्हें मुख्यधारा के सिनेमा के साथ तैरने देती है और न ही बतौर निर्देशक समानांतर सिनेमा के साथ ही वह ईमानदारी से खड़े दिखते हैं।
भीड़ रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
फिल्म 'भीड़' ब्लैक एंड व्हाइट में बनी है। लॉकडाउन के दौरान सामाजिक असमानता के बारे में है। यह फिल्म कोविड के दौरान लॉकडाउन की अराजकता, हिंसा और डर को दर्शाती है। कोविड के दौरान लगे लॉकडाउन के दौरान हमने अपने टीवी चैनल पर जिन घटनाओं को देखा, उन्ही में से कुछ घटनाओं का रंग और रस निकालकर अनुभव सिन्हा ने 'भीड़' का निर्माण किया है। 'भीड़' में छोटी- छोटी कई कहानियां हैं। चौकीदार की कहानी है, एक मां की अपनी बेटी को लेकर होने वाली परेशानी की कहानी है, तबलीगी जमात की कहानी है। और, इसके साथ ही तमाम ऐसी कहानियां है जिनमें जातिवाद से लेकर पूरे तंत्र को आईना दिखाने की कोशिश की गई है। लेकिन, ये सब तो दर्शक बार बार देख सुन चुके है। तो फिल्म में नया क्या है?
भीड़ रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
बस इसी सवाल पर अनुभव सिन्हा लड़खड़ा जाते हैं। वह अपनी सोच का सिनेमा बनाते हैं, जो किसी निर्देशक को बनाना ही चाहिए लेकिन उनकी फिल्ममेकिंग में दोहराव झलकने लगा है। जातिवाद से लड़ते किरदारों में आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव का फर्क मिटता नजर आता है। शुरुआती प्रचार में फिल्म 'भीड़' को एक ऐसी कहानी बताने की कोशिश की गई जो देश के बंटवारे के समय हुए सामाजिक बंटवारे की बात करती है। लेकिन, बात बनी नहीं।
भीड़ रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट में बनाने के पीछे अनुभव सिन्हा का मकसद रहा कि ये कहानी उस वक्त की है जब बंटवारा देश में नहीं, समाज में हुआ। उनका दावा है कि 'भीड़' अंधेरे वक्त की एक कहानी है जिसे ब्लैक एंड व्हाइट में दिखाया गया है। लेकिन इस कोरोना काल की तमाम रंगीन कहानियां भी हैं। ये जीवन को नया सवेरा दिखाती हैं। लाखों करोड़ों लोगों ने बिना एक-दूसरे की धर्म जाति जाने एक-दूसरे की मदद की। समाज के इन रंगों के कुछ छींटे भी इस फिल्म पर पड़ने जरूरी थे। इन खामियों के बावजूद फिल्म ‘भीड़’ एक बार देखे जा सकने लायक फिल्म है और इसके लिए श्रेय जाता है इसकी चुस्त पटकथा को।
राजकुमार राव
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
फिल्म के कलाकारों की वजह से ये फिल्म देखनी हो तो अभिनेता पंकज कपूर इसकी एकमात्र वजह हो सकते हैं। किरदार में रम जाना उनकी पुरानी खूबी है। उनके किरदार की अपनी एक अलग व्यथा है, जिसे परदे पर उन्होंने बखूबी पेश किया है। राजकुमार राव एक बार फिर हैरान परेशान किरदार के रूप में हैं। उनके अभिनय में उनकी शुरुआती फिल्मों में जो ताजगी दिखती थी, वह अब गायब हो रही है। उनका अभिनय एक तयशुदा भावों के सहारे पूरी फिल्म में संघर्ष करता दिखता है। भूमि पेडनेकर काफी हद तक अपना किरदार निभाने में सफल रही हैं।
भीड़ रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
बाकी कलाकारों में आशुतोष राणा एक पुलिस इंस्पेकर की भूमिका में हैं, जिनकी कड़वाहट उनके माता-पिता को अस्पताल में बेड नहीं मिलने पर उनके ड्यूटी पर झलकती है। आदित्य श्रीवास्तव की परफॉर्मेंस बहुत अच्छी रही। एक तो पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार, दूसरा खुद का ऊंची जाति से होने के कारण जो अकड़ है, वह बहुत ही अच्छे से दिखाई गई है। तकनीकी तौर पर अनुराग की फिल्में उनकी पहली फिल्म ‘तुम बिन’ के समय से ही कमाल रही हैं, इस बार ये कमाल सौमिक मुखर्जी की सिनेमाटोग्राफी के हिस्से आया है।
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