अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी जल्द ही बाल ठाकरे के जीवन पर आधारित फिल्म ‘ठाकरे’ व लेखक सआदत हसन मंटो पर बनी फिल्म ‘मंटो’ में टाइटल रोल में नजर आने वाले हैं। फिल्मों और निजी जिंदगी के बारे में नवाजुद्दीन ने अमर उजाला से बातचीत की...
किरदार और शख्सियत आप दोनों तरह के रोल निभाने में माहिर हैं, दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं?
जैसा कि आपने बताया किरदार निभाना और शख्सियत निभाना बहुत अलग चीज है। किरदार में आप शूटिंग करते वक्त तमाम सुधार कर सकते हैं, अपनी कल्पना का इस्तेमाल कर सकते हैं। मगर शख्सियत निभाते वक्त आपके पास यह आजादी नहीं होती है, क्योंकि पूरी दुनिया उस शख्स को जानती है। सबको उसके हाव-भाव पता होते हैं, लिहाजा शख्सियत निभाने में बंदिशें होती हैं।
बात शख्सियत की हो रही है और आप अपनी अगली फिल्म 'ठाकरे' में बाल ठाकरे का रोल निभा रहे हैं?
'ठाकरे' फिल्म मुझे शिवसेना के सांसद संजय राउत जी ने ऑफर की। वह मुझे एक होटल में मिले और बोले कि तुम्हें यह रोल करना है। उस वक्त मैने बस हां कहा और बाहर आ गया। बाहर निकलकर मैं जैसे ही गाड़ी में बैठा, तो मैं काफी नर्वस हो गया, क्योंकि बाला साहेब को पर्दे पर जीना बहुत मुश्किल है। मेरे हिसाब से यह मेरा अब तक का सबसे मुश्किल किरदार है।
फिल्म 'ठाकरे' मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में बन रही है। कितना मुश्किल रहा एक ही शॉट, एक ही सीन को दो अलग-अलग भाषाओं में करना?
जी हां, फिल्म को हम मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में रिलीज कर रहे हैं। शूटिंग के वक्त तो उतनी दिक्कत नहीं हुई, मगर तैयारी के वक्त बहुत परेशानी हुई थी। उस वक्त मैं नर्वस हो गया था, क्योंकि मुझे मराठी ठीक से नहीं आती थी, इसलिए मैंने एक ट्यूटर रखा। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के एक साथी हैं, उनकी मदद से मैंने मराठी सीखी। एक महीने तक मैंने दिन-रात मराठी सीखने के लिए मेहनत की।