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Success Story: गरीब बेरोजगार का मजाक उड़ाने लगे थे लोग, ऐसी कसम खाकर की MPPSC की तैयारी और बन कर दिखाया डीएसपी

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: सौरभ पांडेय Updated Sat, 25 Mar 2023 03:19 PM IST
सार

DSP Santosh Patel: आज सक्सेज स्टोरी में हम बात करेंगे एक युवा पुलिस अधिकारी के बारे में, जिन्होंने गरीबी को अपने सपने के सामने टिकने नहीं दिया। यह हैं मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के रहने वाले डीएसपी संतोष पटेल।
 

Success Story of DSP Santosh Patel Know about his life education success from difficulties
DSP Santosh Patel - फोटो : Amar Ujala Graphics

विस्तार

Success Story of DSP Santosh Patel:  'ऐ गरीबी -देख तेरा गुरूर टूट गया, तेरा मुंह काला हो गया, तू मेरी दहलीज पर बैठी रही मेरा बेटा पुलिसवाला हो गया।' ये जज्बात हैं उस मां के, जिसने गरीबी के बावजूद मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाया- लिखाया और इस काबिल बनाया कि अब उनका बेटा डीएसपी बन गया है। हम बात कर रहे डीएसपी संतोष पटेल की, जो मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के अजयगढ़ के देवगांव के रहने वाले हैं।

 

संतोष पटेल ने अपनी पढ़ाई-लिखाई गांव के ही सरकारी स्कूल से की है। बचपन बेहद गरीबी में गुजरा, लेकिन उन्होंने कभी इसे सपनों का रास्ता नहीं रोकने दिया। मेहनत मजदूरी तक की। माता-पिता दोनों मजदूरी किया करते थे। लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, जिसका नतीजा आज सबके सामने है।

 

माता-पिता पढ़ाई में खर्च करते थे पैसा

संतोष ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह जंगल के किनारे गांव में रहते थे। आय का जो भी साधन था वह जंगल में जो भी मजदूरी होती थी वही था। उनके पिता मेहनत मजदूरी करके घर चला रहे थे। वह गर्मियों के मौसम में तेंदू पत्ता इकट्ठा किया करते थे, बरसात के मौसम में पेड़ लगाने के काम में जुट जाते थे। इसके साथ शहद निकालने का भी काम करते थे। अन्य मौसम में भी कोई न कोई काम करके वह घर चलाया करते थे। इसके साथ ही जो आय होती थी, उसका ज्यादातर हिस्सा पढ़ाई में खर्च करते थे।

सेल्फ स्टडी से मिली सफलता

संतोष ने बताया कि छठवीं सातवीं की पढ़ाई के लिए मार्च में जब परीक्षा खत्म होती थी और नई कक्षा की किताबें बाजार में भी नहीं मिलती थी तो पिता जी  पुरानी किताबें लेकर आया करते थे। पढ़ने का मन नहीं करता था, लेकिन दूसरा कोई रास्ता भी नहीं हुआ करता था। उन्होंने बताया कि ग्रेजुएशन जब किया तो बीएससी की भी पढ़ाई खुद से ही की। सेल्फ स्टडी की बदौलत ही मेरी चयन भी हुआ, मैं कभी किसी कोचिंग के दरवाजे पर नहीं गया।

अच्छे कपड़े नहीं होते थे

डीएसपी संतोष पटेल ने बताया कि उन दिनों किसी कार्यक्रम, पार्टी में दोस्त अच्छे कपड़े पहनकर जाते थे, मैं स्कूल ड्रेस में ही चला जाता था तो देखकर बड़ा बुरा लगता था, कि हमारे पास कुछ नहीं है। लेकिन मन ही मन सोचा करता था कि गरीब घर में जरूर पैदा हुआ हूं, ईश्वर ने जन्म दिया है, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। लेकिन गरीब रहकर मर जाऊं या मेरे बच्चे गरीब घर में पैदा हो यह हमारी असफलता होगी।
 

पढ़ाई से मन हटा तो गुमराह हो गया

डीएसपी संतोष पटेल ने बताया कि  "सरकारी स्कूल से पढ़ाई के बाद ग्रेजुएशन के लिए भोपाल पहुंचा, तो मुझे लगा कि पिता जी पैसे देते हैं ठीक है, लेकिन मुझे भी कुछ पैसे कमाने चाहिए। मैंने मार्केंटिंग की नौकरी शुरू कर दी। इस बीच मेरा पढ़ाई से मन हट गया और मैं एक तरह से गुमराह हो गया था। घर वालों ने पैसा देना भी बंद कर दिया। मैं घर वापस लौट आया तो पिता जी ने कहा कि घर का काम देखो, भैंस चराओ, खेत में मेरे साथ काम करो।
 

संकल्प ऐसा बदल दी जिंदगी 

तीन अगस्त 2015 को लिए एक संकल्प ने डीएसपी संतोष पटेल की जिंदगी बदलकर रख दी। उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक लाल बत्ती वाली गाड़ी नहीं मिल जाती, दाढ़ी नहीं बनाउंगा। लोग बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर मजाक बनाते थे। उन्होंने बताया कि जब लोग उनका मजाक बनाते थे तो उन्हें उनका संकल्प याद आता था, जिससे उन्हें और मजबूती मिली। 15 महीने की कड़ी मेहनत और लगन की बदौलत डीएसपी के लिए चयन हुआ।

सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं डीएसपी संतोष पटेल

डीएसपी संतोष पटेल फिलहाल ग्वालियर के खाटीगांव में डीएसपी के पद पर कार्यरत हैं। वह वहां के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय भी हैं। संतोष पटेल सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं। आए दिन वह अपने वीडियो शेयर करते रहते हैं। कुछ वीडियोज में वह लोगों की मदद भी करते दिखते हैं। हर वीडियो में वह लोगों को कुछ न कुछ अच्छा करने की सीख भी देते हैं।   

जब साइकिल से लेकर आए दुल्हनिया

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में तैनात डीएसपी संतोष पटेल की शादी भी काफी चर्चा में रही थी। बुंदेली परंपरा के साथ उनकी शादी 29 नवंबर 2021 को हुई थी। शादी के बाद देवी पूजन के लिए डीएसपी संतोष पटेल अपनी दुल्हनिया को साइकिल पर ही बिठाकर ले आए थे। मंदिर में देवी पूजन करने के बाद उन्होंने अपने दादा-दादी के चबूतरे पर जाकर माथा टेका था।
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