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Delhi University: अकादमिक परिषद के समर्थन में आए प्रबुद्धजन, सावरकर को पाठ्यक्रम में शामिल करने का किया स्वागत

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: देवेश शर्मा Updated Wed, 07 Jun 2023 07:36 PM IST
सार

सैकड़ों प्रबुद्धजनों ने एक साझा वक्तव्य जारी कर दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की ओर से राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में वीर सावरकर के योगदान और दर्शन का समावेश करने का स्वागत किया है। 

Prominent citizens supports Delhi University decision to inclusion of Veer Savarkar contribution in syllabus
वीर सावरकर - फोटो : SAVARKARSMARAK.COM

विस्तार
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देशभर से सैकड़ों प्रबुद्धजन दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद के निर्णय के समर्थन में आगे आए हैं। प्रबुद्धजनों ने एक साझा वक्तव्य जारी कर दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की ओर से राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर के योगदान और दर्शन का समावेश करने का स्वागत किया है। 


इसके साथ ही इन प्रबुद्धजनों ने राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से मोहम्मद इकबाल के विचारों को हटाने का समर्थन किया। यह तर्क देते हुए कि उनका लेखन एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के विचार से जुड़ा था, जिसके कारण "भारत के विभाजन की त्रासदी" हुई। इस साझा वक्तव्य पर 123 सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं जिनमें 12 पूर्व राजदूत, 64 सशस्त्र बल सेवानिवृत्त अधिकारियों सहित अन्य विभागों से सेवानिवृत्त नौकरशाह 59 शामिल हैं। 

उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों जस्टिस एसएन ढींगरा, जस्टिस एमसी गर्ग और जस्टिस आरएस राठौड़, नौकरशाहों, राजनयिकों और सशस्त्र बलों के पूर्व प्रमुखों ने तर्क देते हुए कहा कि यह भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास के निष्पक्ष वर्णन के लिए आवश्यक था। बयान में कहा गया है कि भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के चंगुल से मुक्त कराने में मदद करने के लिए इस देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली कई ऐतिहासिक हस्तियों के साथ घोर अन्याय हुआ है। 

 

दलित अधिकारों के समर्थक थे सावरकर

बयान में कहा गया कि यह विशेष रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है कि सावरकर के योगदान और दर्शन को दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने तक, कांग्रेस-वामपंथी प्रभाव वाले विश्वविद्यालयों ने जानबूझकर हमारी महान मातृभूमि के लिए उनके योगदान और विचारों को दबा दिया। जबकि सावरकर ने दलित अधिकारों का समर्थन किया और जाति उन्मूलन और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए दृढ़ता से काम किया, और एक राष्ट्र के रूप में भारत की उनकी दृष्टि "अखंड भारत" की विचारधारा के केंद्र में थी। 

इकबाल को बताया विभाजनकारी व्यक्ति

बयान में कवि इकबाल जिन्होंने "सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा" गीत लिखा था, "विभाजनकारी व्यक्ति" के रूप में जिसने देश में अलगाव के बीज बोने वाला बताया गया। “तत्कालीन पंजाब मुस्लिम लीग के अध्यक्ष के रूप में, इकबाल ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का समर्थन किया। 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा...' लिखने वाले इकबाल ने इस्लामिक खिलाफत की बात की, इस्लामिक उम्मा की सिफारिश की और 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा' को बदलकर 'चीनो-ओ-अरब हमारा, हिंदोस्तान हमारा, मुस्लिम है हम वतन है सारा जहां हमारा'' कर दिया। दावा किया गया कि “इकबाल कट्टरपंथी बन गए और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष के रूप में, उनके विचार लोकतंत्र और भारतीय धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ चले गए। इकबाल के कई लेख एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के विचार से जुड़े रहे हैं, जो अंततः भारत के विभाजन की त्रासदी का कारण बने।
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