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महाराष्ट्र : 10वीं में नहीं चुना था विज्ञान विषय, बोर्ड ने अब रोकी 12वीं की मार्कशीट तो हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: देवेश शर्मा Updated Fri, 09 Jun 2023 06:13 PM IST
सार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन (MSBSHSE) को फटकार लगाते हुए 17 वर्षीय छात्र को, कक्षा 12वीं की रोकी गई मार्कशीट जारी करने का निर्देश दिया है। 

Bombay High Court directs Maha state board to release disbarred teen's Class 12 marksheet, slams it for lapse
Bombay High Court - फोटो : Social Media

विस्तार
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन (MSBSHSE) को फटकार लगाते हुए 17 वर्षीय छात्र को, कक्षा 12वीं की रोकी गई मार्कशीट जारी करने का निर्देश दिया है। इसके साथ उच्च न्यायालय ने बोर्ड से पूछा कि जिन छात्रों ने कक्षा 10वीं में विज्ञान विषय का विकल्प नहीं चुना है, उन्हें बाद में विज्ञान संकाय में प्रवेश क्यों नहीं दिया जा सकता है?


मामले के अनुसार, महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन (MSBSHSE) ने एचएससी यानी 12वीं की परीक्षा में बैठने के बाद एक लड़के का कक्षा 11वीं और 12वीं में प्रवेश रद्द कर दिया था। बोर्ड ने दावा किया कि वह साइंस स्ट्रीम में भर्ती होने के लिए अयोग्य था, क्योंकि उसने कक्षा 10वीं में विज्ञान विषय का विकल्प नहीं चुना था। इसलिए बोर्ड ने उसकी 12वीं की मार्कशीट रोक दी थी। 

इसके खिलाफ छात्र कृष चोर्डिया ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने सात जून को अपने आदेश में कहा कि उसे कोई तर्क नजर नहीं आता कि 10वीं कक्षा के छात्र जो विज्ञान विषय नहीं चुनते हैं, उन्हें बाद में साइंस स्ट्रीम में प्रवेश क्यों नहीं देना चाहिए।

अदालत ने कहा कि एसएससी और आईसीएसई स्कूलों में विषयों का चुनाव 10वीं कक्षा में नहीं किया जाता है, बल्कि कक्षा आठवीं या नौवीं के आसपास कम से कम एक या दो साल पहले किया जाता है। यह उम्मीद करना निश्चित रूप से अनुचित है कि 14 साल के बच्चे का निर्णय सही होगा जो उसके पूरे भविष्य का निर्धारक होगा। 

 

बंबई उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार, पूरे पैटर्न को बदलने का प्रस्ताव है। अदालत ने कहा, विज्ञान-कला-वाणिज्य के पुराने ट्रिफेक्टा को दूर किया जाना चाहिए और यह सही भी है। अब शिक्षा नीति का जोर क्षमता की पहचान करने और उसे पोषित करने और सीखने के लचीले विकल्प प्रदान करने पर है।

अदालत ने कहा कि हम यह पूछने के लिए मजबूर हैं कि राज्य बोर्ड का उद्देश्य क्या होना चाहिए? छात्रों की सहायता करना और शिक्षा के अवसर प्रदान करना और प्रोत्साहित करना या उन्हें गति देने के नए तरीके खोजना? 

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि राज्य बोर्ड और कॉलेज को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए था कि प्रवेश दिए जाने से पहले क्या चोर्डिया को सूचित किया गया था कि वह किसी भी कारण से अपात्र था। अदालत ने कहा कि चोर्डिया ने 11वीं और 12वीं कक्षा पूरी कर ली है, दोनों में औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी प्रवेश परीक्षाओं में शामिल हुआ है।

अदालत ने कहा, अब उसे बताया जा रहा है कि वह विज्ञान पढ़ने में अक्षम है क्योंकि उसने तीन साल पहले 10वीं कक्षा में विज्ञान नहीं किया था। यह हास्यास्पद लगता है। इसलिए, याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत दी जाती है और बोर्ड उसकी कक्षा 12वीं की मार्कशीट को अंतिम सुनवाई और याचिका के निस्तारण के लिए जारी करे।  
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