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Writer Asghar Wajahat said If Gandhiji was alive he would have talked to Godse
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Gandhi Godse Ek Yudh: लेखक असगर वजाहत बोले- गांधीजी जिंदा होते तो गोडसे से संवाद करते, फिल्म आपत्तिजनक नहीं
सर्वेश कुमार, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: आकाश दुबे
Updated Mon, 30 Jan 2023 04:10 AM IST
सार
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फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है। हालांकि, वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत, जिनके नाटक पर यह फिल्म आधारित है का कहना है कि जो लोग ऐसा कह रहे हैं उन्हें गांधी की सही समझ नहीं है। हमले में गांधी जीवित बच गए होते तो खुद ही गोडसे से संवाद करते।
पठान का विवाद थमने के बाद अब एक और फिल्म ‘गांधी गोडसे एक युद्ध’ विवादों के घेरे में आ गई है। सोशल मीडिया पर इस फिल्म को लेकर घमासान छिड़ गया है। आरोप लगाया जा रहा है कि फिल्म में गांधी के हत्यारे गोडसे को महिमा मंडित गया है। हालांकि, वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत, जिनके नाटक पर यह फिल्म आधारित है का कहना है कि जो लोग ऐसा कह रहे हैं उन्हें गांधी की सही समझ नहीं है। हमले में गांधी जीवित बच गए होते तो खुद ही गोडसे से संवाद करते।
राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बनी और गणतंत्र दिवस के मौके पर रिलीज फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' के प्रचार के लिए इसके निर्माताओं ने खासे जतन किए थे पर दर्शकों ने इसे खास तवज्जो नहीं दी। यह तब चर्चा में आई जब सोशल मीडिया पर इसे लेकर विवाद खड़ा हुआ। आरोप लगाया गया कि फिल्म गांधी और उनके हत्यारे गोडसे को समकक्ष रखती है। वैसे नाटककार असगर वजाहत इस आरोप से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि फिल्म आभासी इतिहास पर आधारित है। इसमें कल्पना की गई है कि गांधी को जब गोली मारी गई तो वे बच गए। गांधी की सोच ऐसी थी कि ऐसा होने के बाद वे गोडसे से संवाद करते। इसके जरिये दोनों एक दूसरे को समझते।
आभासी इतिहास पर आधारित फिल्में यूरोप में अक्सर बनती हैं, लेकिन भारत में शायद पहला मौका है जब ऐसी फिल्म बनी है। प्रो. वजाहत से जब इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर उठे विवाद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि लोग सवाल उठाने लगे हैं कि दोनों को समकक्ष दिखाया गया है। गांधी सोचते थे कि घृणा पाप से करो, पापी से नहीं। अगर गांधी बच जाते तो वे गोडसे से घृणा नहीं करते, बल्कि दोनों में संवाद स्थापित होता। गांधी कभी किसी को छोटा नहीं समझते थे और सभी को बराबर मानते थे। गांधी से किसी ने जब पूछा था कि आपको महात्मा की उपाधि दी गई है तो आपसे महान कौन हो सकता है। इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि जो छोटा या नगण्य है, महात्मा वही हो सकता है। गांधी विचारों और सिद्धांतों को हमेशा तवज्जो देते थे।
यह है विवाद की वजह
महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे की मुलाकात कभी नहीं हुई, लेकिन फिल्म में दिखाया गया है कि अगर गांधी गोली लगने के बाद बच गए होते तो क्या होता। अगर गांधी और गोडसे की मुलाकात हुई होती तो उनके बीच किस-किस तरह की बात होती। मतलब यह कि इतिहास की एक ऐसी घटना सोचना जो घटित ही नहीं हुई। लेखक अशोक कुमार पांडेय का कहना है कि फिल्म गोडसे को महिमा मंडित करती है। फिल्म में गांधीवाद को गलत रूप में दिखाया गया है। यह इतिहास नहीं कल्पना पर आधारित है। इसमें तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है। मैं इस फिल्म की कहानी से बिल्कुल असहमत हूं। यह फिल्म एक खास उद्देश्य से बनाई गई है और किसी नाटक से भी खराब है। पांडेय की ही तरह कई अन्य टिप्पणीकार भी कह रहे हैं कि ऐसी फिल्म तैयार करने से पहले सभी पहलुओं पर गहन शोध की जरूरत है।
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