दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच 2015 से ही चली आ रही अधिकारों की जंग को लेकर आज देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से उलट सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना संभव नहीं है।
पांच जजों वाली बेंच में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एक सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ जस्टिस अशोक भूषण ने दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर फैसला सुनाया। जजों ने काफी देर तक फैसला पढ़ा और एक-एक कर संबंधित मामलों में बातें रखीं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमने संविधान 239 एए की व्याख्या, मंत्री परिषद की शक्तियां और अन्य सभी पहलुओं पर गौर किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि चुनी हुई सरकार ही राज्य को चलाने के लिए जिम्मेदार है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए। पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर के अलावा दिल्ली विधानसभा कोई भी कानून बना सकती है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि दिल्ली में अराजकता की कोई जगह नहीं है। दिल्ली की स्थिति अन्य केंद्र शासित राज्यों से पूरी तरह अलग है, इसलिए सभी साथ मिलकर काम करें। चीफ जस्टिस आगे बोले संविधान का पालन करना सबकी जिम्मेदारी है, संविधान के अनुसार ही प्रशासनिक फैसले लेना सामूहिक ड्यूटी है। राज्य सरकार और केंद्र के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए।
पांच जजों की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना अलग फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र उस वक्त फेल हो जाता है जब लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं। हमारी सोसायटी में अलग-अलग विचारों के साथ चलना बहुत जरूरी है। वो आगे बोले मतभेदों के बीच राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुलकर मतभेद भुलाकर काम करना चाहिए।
-लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं
-शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती
-सरकार जनता के लिए उपलब्ध हो
-भारत में संसदीय प्रणाली है
-शक्तियों में समन्वय होना चाहिए
- केंद्र और राज्य मिलकर काम करें
-संघीय ढांचे में राज्य को स्वतंत्रता है
-जनमत का महत्व है तकनीकी पहलुओं में उलझाया नहीं जा सकता
-संसद का कानून सबसे ऊपर
-एलजी हैं दिल्ली के प्रशासक
-मतभेद हों तो राष्ट्रपति के पास जाएं
-कैबिनेट की सलाह से करें काम
-हर फैसले में LG की सहमति अनिवार्य नहीं है (किन फैसलों में यह स्पष्ट होना बाकी)
-शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती, अराजकता के लिए जगह नहीं
-दिल्ली सरकार के काम में बाधा न डालें एलजी
-हर मामले में बाधा न डालें एलजी
-एलजी सारे फैसलों को मैकेनिकल तरीके से राष्ट्रपति को नहीं भेजेंगे
-एलजी पहले खुद उस पर अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करेंगे और चुने हुए सदस्यों को अहमियत देंगे
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच विवाद जगजाहिर है। हर मामले में दिल्ली सरकार उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार पर हमला करती रही है।
हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में दिए अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि दिल्ली देश की राजधानी है और केंद्र शासित होने के चलते उपराज्यपाल ही दिल्ली के बॉस हैं। उनकी अनुमति मामलों में जरूरी है। इस फैसले के बाद अधिकांश मामले में दिल्ली सरकार के पर कट गए और उपराज्यपाल व दिल्ली सरकार के बीच विवाद बढ़ता गया।
दिल्ली सरकार ने फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने विस्तृत सुनवाई के बाद 6 दिसंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच 2015 से ही चली आ रही अधिकारों की जंग को लेकर आज देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से उलट सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना संभव नहीं है।
पांच जजों वाली बेंच में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एक सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ जस्टिस अशोक भूषण ने दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर फैसला सुनाया। जजों ने काफी देर तक फैसला पढ़ा और एक-एक कर संबंधित मामलों में बातें रखीं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमने संविधान 239 एए की व्याख्या, मंत्री परिषद की शक्तियां और अन्य सभी पहलुओं पर गौर किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि चुनी हुई सरकार ही राज्य को चलाने के लिए जिम्मेदार है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए। पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर के अलावा दिल्ली विधानसभा कोई भी कानून बना सकती है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि दिल्ली में अराजकता की कोई जगह नहीं है। दिल्ली की स्थिति अन्य केंद्र शासित राज्यों से पूरी तरह अलग है, इसलिए सभी साथ मिलकर काम करें। चीफ जस्टिस आगे बोले संविधान का पालन करना सबकी जिम्मेदारी है, संविधान के अनुसार ही प्रशासनिक फैसले लेना सामूहिक ड्यूटी है। राज्य सरकार और केंद्र के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए।
पांच जजों की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना अलग फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र उस वक्त फेल हो जाता है जब लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं। हमारी सोसायटी में अलग-अलग विचारों के साथ चलना बहुत जरूरी है। वो आगे बोले मतभेदों के बीच राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुलकर मतभेद भुलाकर काम करना चाहिए।