न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Wed, 04 Jul 2018 11:47 AM IST
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच 2015 से ही चली आ रही अधिकारों की जंग को लेकर आज देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना संभव नहीं है। पढ़ें कैसे शुरू हुई ये अधिकारों की जंग...
1. अप्रैल 2015 में दिल्ली को केजरीवाल सरकार मिली। शुरुआती दौर में दिल्ली सरकार एंटी करप्शन ब्रांच(एसीबी) के जरिए भ्रष्टाचार के खिलाफ तेजी से कार्रवाई कर रही थी। इसी बीच एक दिन एसीबी ने दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल को रिश्वत लेने के मामले में गिरफ्तार कर लिया।
2. इसे लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस में खूब खींचतान हुई। यहां तक कि केंद्र सरकार भी दिल्ली पुलिस के उस जवान के बचाव में खड़ी हो गई। तब दिल्ली सरकार से मांग की गई कि उस जवान का केस एसीबी से लेकर दिल्ली पुलिस को दे दिया जाए, लेकिन सरकार नहीं मानी। फिर क्या था, उस वक्त जो खींचतान दिल्ली और केंद्र सरकार में शुरू हुई वो आज भी जारी है।
3. इसके बाद मामला आया मई 2015 में दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव केके शर्मा के छुट्टी पर जाने का। शर्मा को छुट्टी पर जाना था और दिल्ली सरकार को उनकी जगह पर कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त करना था। सर्विसेज विभाग के मंत्री मनीष सिसोदिया ने आईएएस अधिकारी परिमल राय का नाम सुझाया। लेकिन एलजी ने पावर सचिव शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया।