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हाईकोर्ट ने कहा: 'जब अपराध क्रूर हो तो सहानुभूति नहीं बरती जा सकती', दोषी की सजा कठोर कारावास में की तब्दील

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली Published by: आकाश दुबे Updated Tue, 30 May 2023 12:14 AM IST
सार

खंडपीठ ने निचली अदालत के दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा समाज की उचित अपेक्षा है कि अपराध की गंभीरता के अनुरूप कठोर सजा दी जाए। जब अपराध क्रूर हो, समुदाय की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोरता हो।

High Court said When crime is brutal there can be no sympathy
दिल्ली हाईकोर्ट - फोटो : फाइल फोटो

विस्तार
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हाईकोर्ट ने कहा कि समाज की अपेक्षा है कि अपराध की गंभीरता के अनुरूप अपराधी को कठोर सजा दी जाए। जब अपराध क्रूर हो, समुदाय की अंतरात्मा को झकझोरता हो तो किसी भी रूप में सहानुभूति नहीं बरती जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो यह आपराधिक-न्याय प्रणाली के प्रशासन में जनता के विश्वास को डिगा देगा। हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए नाबालिग से दुष्कर्म व हत्या के एक मामले में दोषी की आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष के कठोर कारावास में तब्दील करते हुए की।

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति पूनम ए बांबा की पीठ ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता की उम्र इस समय 38 वर्ष है, वह 8 साल की कैद काट चुका है और उसके दो नाबालिग बच्चे और एक पत्नी है। परिवार की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। ऐसे में सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद वे सजा संबंधी फैसले में संशोधन करते हुए दोषी की सजा 20 वर्ष में तब्दील करते है। अदालत ने स्पष्ट किया कि दोषी की सजा काटने के दौरान कोई छूट प्रदान नहीं की जाएगी।

अदालत 2018 के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता को पीड़िता से दुष्कर्म और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। अपीलकर्ता ने उस सजा के आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 और 376ए के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

खंडपीठ ने निचली अदालत के दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा समाज की उचित अपेक्षा है कि अपराध की गंभीरता के अनुरूप कठोर सजा दी जाए। जब अपराध क्रूर हो, समुदाय की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोरता हो, तो किसी भी रूप में सहानुभूति खो जाती है। यह आपराधिक-न्याय प्रणाली के प्रशासन में जनता के विश्वास को हिला देता है।
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