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नवरात्रों में कोरोना संक्रमण के डर पर भक्ति का रंग भारी पड़ता दिखा। इस दौरान राजधानी के मंदिरों में धीरे-धीरे भक्तों की संख्या बढ़ती रही और नवरात्रों के अंत तक काफी अधिक संख्या में भक्तों ने मां के दर्शन किये। इस दौरान मंदिरों में भक्तों के सेनेटाइजेशन और शारीरिक दूरी बनाए रखने का पर्याप्त ध्यान रखा गया।
छतरपुर मंदिर के एक कर्मचारी ने बताया कि पूरे नवरात्रों में भक्तों का आना लगातार बना रहा। अष्टमी की तिथि तक यह काफी बढ़ गया है। हालांकि, अन्य नवरात्रों की तुलना में यह काफी कम रहा है। संक्रमण के खतरे को देखते हुए केवल एक ही द्वार से भक्तों को प्रवेश करने दिया जा रहा था जहां कि पूरे शरीर को सेनेटाइज करने की मशीन की व्यवस्था की गई थी।
मंदिर में भक्तों को कोई माला-प्रसाद चढ़ाने की अनुमति नहीं थी, लिहाजा लोग केवल दर्शन कर माता का पूजन कर पा रहे थे। इस दौरान भक्तों को पैकेट बंद प्रसाद ही दिया गया। सामान्य नवरात्रों में मंदिर के भंडारे में प्रतिदिन डेढ़ से दो लाख भक्त प्रसाद ग्रहण करते थे, लेकिन इस बार भंडारे प्रसाद का समय घटाकर केवल 12 बजे से दो बजे और शाम को सात बजे से नौ बजे तक कर दिया गया था।
झंडेवालान मंदिर के प्रमुख प्रशासक नंदकिशोर सेठी ने बताया कि मंदिर परिसर में संक्रमण को रोकने की पूरी व्यवस्था लागू है। मंदिर में प्रवेश से पहले और मुख्य भवन में प्रवेश के पहले दो बार लोगों को सेनेटाइज करने का प्रावधान किया गया है। भक्तों की संख्या अधिक होने को ध्यान में रखतेे हुए तीन तरफ से मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है।
संक्रमण के डर से मंदिर आने वाले भक्तों की संख्या में कुछ कमी तो जरूर आई है, लेकिन इसके बाद भी भारी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचे और मां झंडेवालान देवी का दर्शन किया। भक्तों के बीच मान्यता है कि अष्टमी के दिन माता गौरी का ध्यान कर यहां दर्शन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
कालकाजी मंदिर को खोलने के बाद भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए बंद करना पड़ा तो वहीं बिरला मंदिर में भक्तों को मां के दर्शन का लाभ मिला। हालांकि यहां भी अन्य नवरात्रों की भांति धर्म कथा का आनंद भक्तों को नहीं मिल पाया।
नवरात्रों में कोरोना संक्रमण के डर पर भक्ति का रंग भारी पड़ता दिखा। इस दौरान राजधानी के मंदिरों में धीरे-धीरे भक्तों की संख्या बढ़ती रही और नवरात्रों के अंत तक काफी अधिक संख्या में भक्तों ने मां के दर्शन किये। इस दौरान मंदिरों में भक्तों के सेनेटाइजेशन और शारीरिक दूरी बनाए रखने का पर्याप्त ध्यान रखा गया।
छतरपुर मंदिर के एक कर्मचारी ने बताया कि पूरे नवरात्रों में भक्तों का आना लगातार बना रहा। अष्टमी की तिथि तक यह काफी बढ़ गया है। हालांकि, अन्य नवरात्रों की तुलना में यह काफी कम रहा है। संक्रमण के खतरे को देखते हुए केवल एक ही द्वार से भक्तों को प्रवेश करने दिया जा रहा था जहां कि पूरे शरीर को सेनेटाइज करने की मशीन की व्यवस्था की गई थी।
मंदिर में भक्तों को कोई माला-प्रसाद चढ़ाने की अनुमति नहीं थी, लिहाजा लोग केवल दर्शन कर माता का पूजन कर पा रहे थे। इस दौरान भक्तों को पैकेट बंद प्रसाद ही दिया गया। सामान्य नवरात्रों में मंदिर के भंडारे में प्रतिदिन डेढ़ से दो लाख भक्त प्रसाद ग्रहण करते थे, लेकिन इस बार भंडारे प्रसाद का समय घटाकर केवल 12 बजे से दो बजे और शाम को सात बजे से नौ बजे तक कर दिया गया था।
झंडेवालान मंदिर के प्रमुख प्रशासक नंदकिशोर सेठी ने बताया कि मंदिर परिसर में संक्रमण को रोकने की पूरी व्यवस्था लागू है। मंदिर में प्रवेश से पहले और मुख्य भवन में प्रवेश के पहले दो बार लोगों को सेनेटाइज करने का प्रावधान किया गया है। भक्तों की संख्या अधिक होने को ध्यान में रखतेे हुए तीन तरफ से मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है।
संक्रमण के डर से मंदिर आने वाले भक्तों की संख्या में कुछ कमी तो जरूर आई है, लेकिन इसके बाद भी भारी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचे और मां झंडेवालान देवी का दर्शन किया। भक्तों के बीच मान्यता है कि अष्टमी के दिन माता गौरी का ध्यान कर यहां दर्शन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
कालकाजी मंदिर को खोलने के बाद भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए बंद करना पड़ा तो वहीं बिरला मंदिर में भक्तों को मां के दर्शन का लाभ मिला। हालांकि यहां भी अन्य नवरात्रों की भांति धर्म कथा का आनंद भक्तों को नहीं मिल पाया।