राष्ट्रीय राजधानी से सटे गाजियाबाद जिले का गठन 1974 में हुआ था, लेकिन चार दशक बीत जाने के बाद भी आधी आबादी का प्रतिनिधित्व न के बराबर ही है। जिला बनने के बाद 1976 से अब तक 28 महिलाओं ने चुनाव तो लड़ा, लेकिन जीत सिर्फ दो प्रत्याशियों के खाते में रही। 2012 से पहले हुए नौ चुनावों में जिले की सभी सीटों पर महिला प्रत्याशी तक नहीं होती थीं।
जिले की मोदीनगर विधानसभा से ही दोनों प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। पहली बार 1985 में कांग्रेस के टिकट से विमला सिंह ने जीत हासिल की थी। 32 साल बाद 2017 में भाजपा से मंजू सिवाच ने जीत हासिल की। दोनों बार मोदीनगर की जनता महिलाओं पर भरोसा जताया।
2007 में पहली बार पांच महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। इनमें गाजियाबाद से एक मोदीनगर से दो, हापुड़ और गढ़ से भी एक-एक प्रत्याशी मैदान में थी। 2012 में यह आंकड़ा बढ़कर सात हो गया। यह पहली बार था जब सभी विधानसभा सीटों पर महिला प्रत्याशी मैदान में थीं। इनमें सबसे ज्यादा मोदीनगर से तीनए गाजियाबाद, लोनी, साहिबाबाद और मुरादनगर से एक-एक प्रत्याशी थीं। 2017 में चार प्रत्याशी मैदान में थीं। मुरादनगर छोड़कर सभी विधानसभा में एक-एक प्रत्याशी थीं। इस बार आंकड़ा जरूर घटा, लेकिन एक महिला प्रत्याशी के सिर पर जीत का ताज भी सजा।
सबसे ज्यादा संख्या साहिबाबाद में
महिला मतदाताओं की सबसे ज्यादा संख्या साहिबाबाद में है। यहां चार लाख से ज्यादा महिला मतदाता हैं। साहिबाबाद सीट से 2017 में चुनाव जीतने वाले सुनील शर्मा के दो लाख 62 हजार वोट मिले थे। 2012 में विजेता रहे अमरपाल शर्मा को एक लाख 24 वोट मिले थे। इस बार महिला वोटरों के हाथ में है कि वह किसे अपना विधायक चुनतीं हैं।
नहीं जताते भरोसा
वंदना चौधरी का कहना है कि राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को टिकट देने में भरोसा नहीं जताती हैं। महिलाओं कार्यकर्ताओं को सिर्फ भीड़ जुटाने के लिए बुलाया जाता है। जब पार्टीयां टिकट देंगी तभी महिला प्रत्याशी जीत दर्ज करेंगी।
मिसाल बननी चाहिए
कवित्री दीपाली जैन का कहना है कि महिलाओं को अपने हक के लिए खुद ही आगे आना होगा। इसकी लड़ाई खुद ही लड़नी होगीए और एक ऐसी मिसाल पेश करनी होगीए जिससे पार्टियां खुद ही उन्हें टिकट देने आएं।
विस्तार
राष्ट्रीय राजधानी से सटे गाजियाबाद जिले का गठन 1974 में हुआ था, लेकिन चार दशक बीत जाने के बाद भी आधी आबादी का प्रतिनिधित्व न के बराबर ही है। जिला बनने के बाद 1976 से अब तक 28 महिलाओं ने चुनाव तो लड़ा, लेकिन जीत सिर्फ दो प्रत्याशियों के खाते में रही। 2012 से पहले हुए नौ चुनावों में जिले की सभी सीटों पर महिला प्रत्याशी तक नहीं होती थीं।
जिले की मोदीनगर विधानसभा से ही दोनों प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। पहली बार 1985 में कांग्रेस के टिकट से विमला सिंह ने जीत हासिल की थी। 32 साल बाद 2017 में भाजपा से मंजू सिवाच ने जीत हासिल की। दोनों बार मोदीनगर की जनता महिलाओं पर भरोसा जताया।
2007 में पहली बार पांच महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। इनमें गाजियाबाद से एक मोदीनगर से दो, हापुड़ और गढ़ से भी एक-एक प्रत्याशी मैदान में थी। 2012 में यह आंकड़ा बढ़कर सात हो गया। यह पहली बार था जब सभी विधानसभा सीटों पर महिला प्रत्याशी मैदान में थीं। इनमें सबसे ज्यादा मोदीनगर से तीनए गाजियाबाद, लोनी, साहिबाबाद और मुरादनगर से एक-एक प्रत्याशी थीं। 2017 में चार प्रत्याशी मैदान में थीं। मुरादनगर छोड़कर सभी विधानसभा में एक-एक प्रत्याशी थीं। इस बार आंकड़ा जरूर घटा, लेकिन एक महिला प्रत्याशी के सिर पर जीत का ताज भी सजा।
सबसे ज्यादा संख्या साहिबाबाद में
महिला मतदाताओं की सबसे ज्यादा संख्या साहिबाबाद में है। यहां चार लाख से ज्यादा महिला मतदाता हैं। साहिबाबाद सीट से 2017 में चुनाव जीतने वाले सुनील शर्मा के दो लाख 62 हजार वोट मिले थे। 2012 में विजेता रहे अमरपाल शर्मा को एक लाख 24 वोट मिले थे। इस बार महिला वोटरों के हाथ में है कि वह किसे अपना विधायक चुनतीं हैं।
नहीं जताते भरोसा
वंदना चौधरी का कहना है कि राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को टिकट देने में भरोसा नहीं जताती हैं। महिलाओं कार्यकर्ताओं को सिर्फ भीड़ जुटाने के लिए बुलाया जाता है। जब पार्टीयां टिकट देंगी तभी महिला प्रत्याशी जीत दर्ज करेंगी।
मिसाल बननी चाहिए
कवित्री दीपाली जैन का कहना है कि महिलाओं को अपने हक के लिए खुद ही आगे आना होगा। इसकी लड़ाई खुद ही लड़नी होगीए और एक ऐसी मिसाल पेश करनी होगीए जिससे पार्टियां खुद ही उन्हें टिकट देने आएं।