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Delhi High Court says deliberately denying physical relations to spouse is cruelty
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दिल्ली: जीवनसाथी को जानबूझकर शारीरिक संबंध न बनाने देना क्रूरता, हाईकोर्ट की टिप्पणी; 35 दिन ही चला विवाह
अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: आकाश दुबे
Updated Mon, 18 Sep 2023 10:41 PM IST
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने ही एक मामले के फैसले में संबंध के बिना शादी को एक अभिशाप बताया है। किसी वैवाहिक बंधन में यौन संबंध का न होना काफी घातक स्थिति है।
हाईकोर्ट ने कहा कि जीवनसाथी का जानबूझकर संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता है। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए परिवार अदालत से एक दंपती को मिले तलाक के आदेश को बरकरार रखा। उनकी शादी सिर्फ 35 दिन ही चली थी। वहीं एक दूसरे मामले में हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जीवनसाथी का चयन आस्था, धर्म से प्रभावित नहीं हो सकता है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने ही एक मामले के फैसले में संबंध के बिना शादी को एक अभिशाप बताया है। किसी वैवाहिक बंधन में यौन संबंध का न होना काफी घातक स्थिति है। इस मामले में भी पत्नी के विरोध की वजह से विवाह संपूर्ण ही नहीं हुआ। पीठ ने यह भी कहा कि महिला ने पुलिस में यह भी शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे दहेज के लिए परेशान किया गया। जबकि कोई ठोस सबूत नहीं था। इसे भी क्रूरता कहा जा सकता है। उसने यह कहते हुए तलाक देने के परिवार अदालत के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।
पीठ ने महिला के ससुराल में बिताई गई अवधि का जिक्र करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में दोनों पक्षों के बीच विवाह न केवल बमुश्किल 35 दिन तक चला, बल्कि वैवाहिक अधिकारों से वंचित होने और विवाह पूरी तरह संपूर्ण न होने के कारण विफल हो गया। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 18 साल से अधिक की अवधि में इस तरह की स्थिति कायम रहना मानसिक क्रूरता के समान है।
जीवनसाथी का चयन आस्था, धर्म से प्रभावित नहीं हो सकता
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि जीवनसाथी का चुनाव आस्था और धर्म से प्रभावित नहीं हो सकता, विवाह का अधिकार मानवीय स्वतंत्रता का मामला है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर दी है। अदालत ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार न केवल मानवीय अधिकार है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न पहलू भी है।
उच्च न्यायालय का यह आदेश एक अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर आया, जिसने अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया था। उन्होंने अधिकारियों को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देने की मांग की थी क्योंकि उन्हें उनसे खतरा था। अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को संबंधित पुलिस अधिकारियों का नंबर उपलब्ध कराया जाए, जो जरूरत पड़ने पर उनसे संपर्क कर सकते हैं।
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