लोकप्रिय और ट्रेंडिंग टॉपिक्स

विज्ञापन
Hindi News ›   Uttarakhand ›   Dehradun News ›   World Water Day Years old water sources revived due to efforts of scientists in Tehri Uttarakhand news

World Water Day: वैज्ञानिकों ने जगाई उम्मीद की किरण, उत्तराखंड में सूख रहे वर्षों पुराने जल स्रोत पुनर्जीवित

आफताब अजमत, अमर उजाला, देहरादून Published by: रेनू सकलानी Updated Wed, 22 Mar 2023 03:10 PM IST
सार

प्रदेश में 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है। 1290 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है और 2873 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी कम हो चुका है। इन्हें बचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

World Water Day Years old water sources revived due to efforts of scientists in Tehri Uttarakhand news
वैज्ञानिकों की टीम - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

प्रदेश के लगातार सूखते जा रहे प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए वैज्ञानिकों ने एक उम्मीद की किरण जगा दी है। टिहरी के तीन गांवों (थान, सुनारकोट व टिपली) में सूखने की कगार पर पहुंच चुके वर्षों पुराने जल स्त्रोतों को अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने पुनर्जीवित कर दिया है। राष्ट्रीय हिमालयीय अध्ययन मिशन के प्रोजेक्ट के तहत तीन साल में यह प्रयास रंग लाए हैं।

प्रदेश में तेजी से प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं। 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है। 1290 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है और 2873 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी कम हो चुका है। इन्हें बचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।



इसी क्रम में, टेरी स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज दिल्ली, डीएवी पीजी कॉलेज और जल संस्थान ने संयुक्त रूप से टिहरी के पांच गांवों टिपली, सुनारकोट, खांकर, थान व बिडन का अध्ययन किया। यहां के जल स्रोतों में महज 15 से 25 प्रतिशत तक ही पानी बचा था, जिससे हजारों की आबादी चिंतित थी। तीन साल की मेहनत के बाद टिपली, सुनारकोट व थान गांव के जल स्त्रोत पुनर्जीवित हुए और 80 प्रतिशत से अधिक जल मिलने लगा है।

सभी जल स्रोतों की निगरानी की जा रही
एक करोड़ 60 लाख के इस प्रोजेक्ट ने सभी सूखते हुए जल स्रोतों के लिए एक नई उम्मीद जगाई है। डीएवी के डॉ. प्रशांत सिंह, जल संस्थान की सीजीएम नीलिमा गर्ग, एसके शर्मा, टेरी के प्रो. विनय शंकर प्रसाद सिन्हा ने जनवरी 2019 से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था जो कि दिसंबर 2022 में पूरा हो गया। हाल ही में वाडिया इंस्टीट्यूट में इसका प्रस्तुतिकरण हुआ है। डॉ. प्रशांत सिंह ने बताया कि अभी सभी जल स्रोतों की निगरानी की जा रही है।

ऐसे पुनर्जीवित किए जल स्त्रोत
सबसे पहले पेयजल स्रोतों के पानी के सैंपल लिए गए। इसके बाद वाडिया इंस्टीट्यूट की मदद से इन गांवों का आइसोटोपिक सर्वेक्षण किया गया। जल स्त्रोत के पानी के सैंपल और यहां बारिश के पानी के सैंपल का विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिकों ने प्रमुख तौर पर इन जल स्रोतों के रिचार्ज जोन की तलाश की। इसके बाद यहां चाल, खाल आदि सिविल कार्य किए गए, जिससे बरसात का पानी एकत्र होकर पेयजल स्रोत को रिचार्ज कर सके। इसके अलावा यहां बांज, भीमल, गुडियाल और बेडू का बड़े पैमाने पर पौधरोपण किया गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन पौधों के रोपण जहां वातावरण में नमी होती है तो वहीं जमीन में भी नमी रहती है।

1514 चाल-खाल बने लेकिन सरकारी इमारतों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग अधूरा

प्रदेश में भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। जल संस्थान ने चार वर्षों में बेशक 1514 चाल-खाल बनाए हैं लेकिन सरकार अपनी ही इमारतों को पूर्ण रूप से रेन वाटर हार्वेस्टिंग युक्त नहीं बना पाई। वैज्ञानिकों का मत है कि भूजल स्तर को बढ़ाने में यह तरीका अहम साबित हो सकता है।

केंद्रीय जल आयोग की अक्तूबर 2022 में आई रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 137 कुओं की मदद से भूजल स्तर की निगरानी की जाती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि नवंबर 2011-2020 के मुकाबले नवंबर 2021 में भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है। 137 में से 40 कुएं (29.20 प्रतिशत) ऐसे हैं, जिनमें भूजल के स्तर में 0-2 मीटर तक की कमी दर्ज की गई है।

13 कुएं (9.49 प्रतिशत) ऐसे हैं, जिनमें भूजल स्तर में 2-4 मीटर की कमी आई है। 4 कुएं (2.92 प्रतिशत) ऐसे हैं, जिनमें भूजल स्तर चार मीटर से ज्यादा नीचे चला गया है। इन चिंताजनक आंकड़ों के बीच अहम बात ये भी है कि सरकार इस जल स्तर को बढ़ाने के क्या प्रयास कर रही है। जल संस्थान के मुताबिक, प्रदेशभर में पिछले चार वर्षों में 1514 चाल-खाल बनाए गए हैं।

ये भी पढ़ें...Dehradun Weather: तीन साल में सबसे ठंडा रहा मार्च का दूसरा पखवाड़ा, चार दिन में 11 डिग्री गिरा तापमान

राजधानी में ही तमाम ऐसी सरकारी इमारतें हैं, जिनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग का इंतजाम नहीं है। इस वजह से हर साल बरसात का पानी जमीन के भीतर जाने के बजाए पाइप व नालियों के माध्यम से बह जाता है। वैज्ञानिकों का तर्क है कि अगर यही बरसात का पानी जमीन के भीतर जाएगा तो निश्चित तौर पर जल स्तर बढ़ेगा। इसके लिए बाकायदा नीति भी बनाई गई थी लेकिन अभी तक इसका अमल धरातल पर नहीं आ पाया।

 
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Election

फॉन्ट साइज चुनने की सुविधा केवल
एप पर उपलब्ध है

बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही
एप में पढ़ें

क्षमा करें यह सर्विस उपलब्ध नहीं है कृपया किसी और माध्यम से लॉगिन करने की कोशिश करें

Followed