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आत्मशुद्धि के अनुभव के दुर्लभ अवसर कुंभ पर इस बार कोरोना का साया मंडरा रहा है। हालात चिंतानजक इसलिए हैं कि अभी तक इस मर्ज का पुख्ता इलाज सामने नहीं आया है और हाईकोर्ट ने सरकार से इस कुंभ में संक्रमण को रोकने की तैयारी सहित कार्ययोजना मांगी है।
कुंभ तो कई बार महामारी से जूझता रहा है। बीते वक्त में एहतियात और सख्ती से संक्रमण रोकने में सफलता भी मिली है। आज जरूरी है अतीत से सबक लेकर आने वाले जगत के सबसे बड़े मानव जमावड़े में जरूरी कदम उठाए जाएं, जिससे संक्रमण भी न फैले और आस्था को कोई चोट भी न पहुंचे।
हरिद्वार में होने वाले कुंभ के लिए प्रशासन अभी से ऐसी गाइडलाइन तैयार करने में जुटा है कि मेला भी सफलतापूर्वक आयोजित हो जाए और तीर्थयात्रियों की आस्था भी प्रभावित न हो। अभी तक मेले में भीड़ को नियंत्रित करने अर्थात स्नानार्थियों की संख्या कम करने के उपायों पर विचार किया जा रहा है।
यह संभव तो है, लेकिन आने वाले स्नान पर्व पर हालात बदल सकते हैं। दो दशक पहले की स्थिति के दौरान गुजरे सभी कुंभ और अर्द्ध कुंभ के दौरान कई में हुई हैजा महामारी ने लाखों लोगों को निगल लिया था। बावजूद इसके तीर्थ यात्रियों की गंगा में पुण्य की डुबकी लगानेे की आस्था नहीं डिगी। प्रशासन के सामने इसी आस्था को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। यही एक ऐसा पर्व है जिसमे भीड़ का रेला अचानक बढ़ता है।
ब्रिटिश सरकार ने कुछेक मौकों पर साफ -सफाई पर ज्यादा ध्यान दिया और इसका सख्ती से पालन भी करवाया तो वे मेले संक्रमण यानी महामारी से बचे रहे। नार्थ वेस्ट प्राविंस (अब उत्तर प्रदेश) सरकार ने पिछले कुछ कुंभोें में हादसों और प्लेग-हैजा जैसी महामारी के फैलने की पुनरावृत्ति से रोकने के लिए 1892 में हुए महावारुणी मेले में इतनी सख्त पाबंदी लगाई कि मेला वीरान ही गुजरा। उस वर्ष शुरू से ही हरिद्वार के निकटवती जिलों ही नहीं, पंजाब तक में हैजा बुरी तरह फैल चुका था और बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हो रही थीं।
सरकार के लेफ्टिनेंट जनरल को अंदेशा था कि अगर लोग मेले में आए तो समूचा हरिद्वार संक्रमण की चपेट में आ जाएगा और पिछले कुंभों की तरह अनगिनत मौत होंगी। उनके आदेश पर मेले में उमड़ रहे लोगों को रास्तों में ही रोककर वापस जाने को विवश कर दिया गया।
हरिद्वार की ओर जाने वाली रेल लाइनों पर स्थित सभी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रोककर यात्रियों को आगे नहीं जाने दिया गया। सड़कों पर बैलगाड़ियों और ऊंट घोड़ा या अन्य साधनों से जा रहे लोगों को रोका गया। नतीजा रहा कि यह मेला संक्रमण मुक्त रहा।
1892 के महावारुणी मेले के बाद हरिद्वार इंप्रूवमेंट सोसाइटी का गठन किया गया। इसमें देश भर के प्रमुख धर्माचार्यों को शामिल किया गया। सोसाइटी से मेले में उत्तम व्यवस्था को लेकर सुझाव मांगे गए। शौचालय, साफ पानी, सफाई आादि को लेकर कई सुझाव मिले।
चार साल बाद ही यानी 1897 में यहां प्लेग फैला, जिसे जल्द ही नियंत्रित कर लिया गया। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने नार्थ वेस्ट प्राविंस तथा आसपास के राज्यों में स्थित रेलवे स्टेशनों पर हरिद्वार के लिए टिकटोें की बुकिंग बंद करने का आदेश दिया।
हरिद्वार के तत्कालीन सामाजिक नेता पंडित गोपी नाथ ने प्राविंस की असेंबली में इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह कदम हिंदुओं की आस्था पर चोट करने वाला और हिंदुत्व विरोधी भी है। उन्होंने इस संबंध में प्राविंस के लेफ्टिनेंट जनरल को पत्र भी लिखा, लेकिन सरकार ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया।
(स्रोत -NWP Sanitary Proceedings Dec. 1897)
नार्थ वेस्ट प्राविंस के चीफ सर्जन रहे कैप्टन एच हरबर्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 1867 के कुंभ में आए यात्रियों को महामारी से बचा लेना इस सरकार की एक बड़ी उपलब्धि थी। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया है कि 1855, 1861 और 1873 के कुंभ भी ऐसे रहे, जिसमें हैजा नहीं फैला।
हरिद्वार कुंभ गर्मियों में पड़ता है, यह समय काफी जोखिम भरा होता है। पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण कई राज्यों में दुर्भिक्ष पड़ता है। इसी दौरान संक्रामक रोग फैलते हैं। इन सबके बावजूद इन कुंभों को महामारी से मुक्त रखना इतिहास की उसी तरह एक उल्लेखनीय घटना है जिस तरह कई कुंभों और अर्द्ध कुंभों में लाखों की मौतें होना।
नोट- इस लेख को इंद्र कांत मिश्र (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) ने लिखा है।
आत्मशुद्धि के अनुभव के दुर्लभ अवसर कुंभ पर इस बार कोरोना का साया मंडरा रहा है। हालात चिंतानजक इसलिए हैं कि अभी तक इस मर्ज का पुख्ता इलाज सामने नहीं आया है और हाईकोर्ट ने सरकार से इस कुंभ में संक्रमण को रोकने की तैयारी सहित कार्ययोजना मांगी है।
कुंभ तो कई बार महामारी से जूझता रहा है। बीते वक्त में एहतियात और सख्ती से संक्रमण रोकने में सफलता भी मिली है। आज जरूरी है अतीत से सबक लेकर आने वाले जगत के सबसे बड़े मानव जमावड़े में जरूरी कदम उठाए जाएं, जिससे संक्रमण भी न फैले और आस्था को कोई चोट भी न पहुंचे।
हरिद्वार में होने वाले कुंभ के लिए प्रशासन अभी से ऐसी गाइडलाइन तैयार करने में जुटा है कि मेला भी सफलतापूर्वक आयोजित हो जाए और तीर्थयात्रियों की आस्था भी प्रभावित न हो। अभी तक मेले में भीड़ को नियंत्रित करने अर्थात स्नानार्थियों की संख्या कम करने के उपायों पर विचार किया जा रहा है।
यह संभव तो है, लेकिन आने वाले स्नान पर्व पर हालात बदल सकते हैं। दो दशक पहले की स्थिति के दौरान गुजरे सभी कुंभ और अर्द्ध कुंभ के दौरान कई में हुई हैजा महामारी ने लाखों लोगों को निगल लिया था। बावजूद इसके तीर्थ यात्रियों की गंगा में पुण्य की डुबकी लगानेे की आस्था नहीं डिगी। प्रशासन के सामने इसी आस्था को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। यही एक ऐसा पर्व है जिसमे भीड़ का रेला अचानक बढ़ता है।
ब्रिटिश सरकार ने कुछेक मौकों पर साफ -सफाई पर ज्यादा ध्यान दिया और इसका सख्ती से पालन भी करवाया तो वे मेले संक्रमण यानी महामारी से बचे रहे। नार्थ वेस्ट प्राविंस (अब उत्तर प्रदेश) सरकार ने पिछले कुछ कुंभोें में हादसों और प्लेग-हैजा जैसी महामारी के फैलने की पुनरावृत्ति से रोकने के लिए 1892 में हुए महावारुणी मेले में इतनी सख्त पाबंदी लगाई कि मेला वीरान ही गुजरा। उस वर्ष शुरू से ही हरिद्वार के निकटवती जिलों ही नहीं, पंजाब तक में हैजा बुरी तरह फैल चुका था और बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हो रही थीं।
सरकार के लेफ्टिनेंट जनरल को अंदेशा था कि अगर लोग मेले में आए तो समूचा हरिद्वार संक्रमण की चपेट में आ जाएगा और पिछले कुंभों की तरह अनगिनत मौत होंगी। उनके आदेश पर मेले में उमड़ रहे लोगों को रास्तों में ही रोककर वापस जाने को विवश कर दिया गया।
हरिद्वार की ओर जाने वाली रेल लाइनों पर स्थित सभी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रोककर यात्रियों को आगे नहीं जाने दिया गया। सड़कों पर बैलगाड़ियों और ऊंट घोड़ा या अन्य साधनों से जा रहे लोगों को रोका गया। नतीजा रहा कि यह मेला संक्रमण मुक्त रहा।
रोक दी गई थी रेल टिकटों की बिक्री
1892 के महावारुणी मेले के बाद हरिद्वार इंप्रूवमेंट सोसाइटी का गठन किया गया। इसमें देश भर के प्रमुख धर्माचार्यों को शामिल किया गया। सोसाइटी से मेले में उत्तम व्यवस्था को लेकर सुझाव मांगे गए। शौचालय, साफ पानी, सफाई आादि को लेकर कई सुझाव मिले।
चार साल बाद ही यानी 1897 में यहां प्लेग फैला, जिसे जल्द ही नियंत्रित कर लिया गया। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने नार्थ वेस्ट प्राविंस तथा आसपास के राज्यों में स्थित रेलवे स्टेशनों पर हरिद्वार के लिए टिकटोें की बुकिंग बंद करने का आदेश दिया।
हरिद्वार के तत्कालीन सामाजिक नेता पंडित गोपी नाथ ने प्राविंस की असेंबली में इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह कदम हिंदुओं की आस्था पर चोट करने वाला और हिंदुत्व विरोधी भी है। उन्होंने इस संबंध में प्राविंस के लेफ्टिनेंट जनरल को पत्र भी लिखा, लेकिन सरकार ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया।
(स्रोत -NWP Sanitary Proceedings Dec. 1897)
हैजा मुक्त कुंभ रही उपलब्धि
नार्थ वेस्ट प्राविंस के चीफ सर्जन रहे कैप्टन एच हरबर्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 1867 के कुंभ में आए यात्रियों को महामारी से बचा लेना इस सरकार की एक बड़ी उपलब्धि थी। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया है कि 1855, 1861 और 1873 के कुंभ भी ऐसे रहे, जिसमें हैजा नहीं फैला।
हरिद्वार कुंभ गर्मियों में पड़ता है, यह समय काफी जोखिम भरा होता है। पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण कई राज्यों में दुर्भिक्ष पड़ता है। इसी दौरान संक्रामक रोग फैलते हैं। इन सबके बावजूद इन कुंभों को महामारी से मुक्त रखना इतिहास की उसी तरह एक उल्लेखनीय घटना है जिस तरह कई कुंभों और अर्द्ध कुंभों में लाखों की मौतें होना।
नोट- इस लेख को इंद्र कांत मिश्र (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) ने लिखा है।