जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के खेल में पूर्व डीएम समेत कई आला अफसरों के गले में फंदा पड़ेगा।
जिलाधिकारी के दोषी पाए जाने पर फाइल ही दबा दी
अफसरों ने जांच के कागजात तो दबाए ही जो चेक मिला था उसे भी जमा नहीं किया और लैप्स हो गया। राजस्व विभाग की रिपोर्ट में तत्कालीन जिलाधिकारी के दोषी पाए जाने पर फाइल ही दबा दी गई।
खनन विभाग ने बिना अनुमति खुदाई पर जौलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तारीकरण का कार्य कर रही दो कंपनियों पर जुर्माना लगाया था।
एक कंपनी पर 17 करोड़ रुपए और दूसरी पर 10 करोड़ जुर्माना लगा था। जब कंपनी ने अपील की तो प्रमुख सचिव पीसी शर्मा ने 10 करोड़ जुर्माना 10 लाख कर दिया।
17 करोड़ के मामले में प्रमुख सचिव शर्मा ने सुनवाई के लिए कई तारीखें लगने के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी सचिन कुर्वे से फैसला लेने के लिए कहा।
वसूली के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई
विभागीय सूत्रों ने बताया कि कुर्वे ने कंपनी को बरी कर दिया और कहा कि जुर्माना जौलीग्रांट एयरपोर्ट अथॉरिटी से लिया जाए क्योंकि काम अथॉरिटी करवा रही थी। लेकिन वसूली के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इस मामले में जनहित याचिका दाखिल होने के बाद हाईकोर्ट ने सीनियर अधिकारी से जांच कराने के लिए कहा था। एसके मुत्तू ने इसकी जांच की तो कुर्वे दोषी पाए गए। लेकिन जांच रिपोर्ट कहां गई पता नहीं चला।
जुर्माने के रूप में कंपनी ने जो 10 लाख रुपए का चेक दिया था, वह पड़ा-पड़ा लैप्स हो गया। बाद में वर्ष 2012 में तत्कालीन जिलाधिकारी रविनाथ रमन ने मामला शासन को भेज दिया।
इस बाबत औद्योगिक विकास आयुक्त राकेश शर्मा ने कई बैठकें कीं। बाद में फाइल जिलाधिकारी बीवीआरसी पुरुषोत्तम के पास भेज दी गई।
इस मामले की फाइल कभी डीएम तो कभी प्रमुख सचिव के पास भटकती रही लेकिन जुर्माना वसूली के संबंध में फिर आदेश जारी नहीं हुए।