पिछले कुछ वर्षों में क्रिकेट में हालात एकदम बदल गए हैं। क्रिकेट जैसे-जैसे पेशेवर बनता गया, खिलाड़ियों को मिलने वाले पैसों में तो जबर्दस्त इजाफा हो गया। पर इसके बदले में उन्हें साल भर खिलाकर शारीरिक और मानसिक रूप से निचोड़ने की व्यवस्था भी कर दी गई। अब क्रिकेटर को पूरे साल खेलने में व्यस्त रखा जाता है, जिससे उसका थकना लाजिमी है। उसके सिर पर अच्छा प्रदर्शन करने की तलवार भी लटकती रहती है, जिससे वह लगातार दबाव में रहता है। इस शारीरिक और मानसिक थकान की वजह से खिलाड़ी चोटों का शिकार भी हो रहे हैं। बेशक बीसीसीआई समय-समय पर कुछ खिलाड़ियों को आराम भी देता है, जैसे कि कप्तान विराट कोहली ने बांग्लादेश के खिलाफ टी-20 सीरीज में आराम किया। पर यह अवसर कुछ ही खिलाड़ियों को मिल पाता है। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए बीसीसीआई द्वारा कुछ कदम उठाने का अब समय आ गया है।
मौजूदा समय में ही तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार और ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या चोट के कारण टीम से बाहर हैं। बुमराह ने थोड़े से समय में टीम के अटैक का ट्रंप कार्ड अपने को बना लिया है। वह क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में विजय दिलाने वाले गेंदबाज के तौर पर उभरकर सामने आए हैं। पर आजकल वह पीठ के निचले हिस्से में स्ट्रेस फ्रैक्चर का इलाज करा रहे हैं। उनके आगामी जनवरी तक ही टीम में वापसी की उम्मीद की जा रही है। वहीं हार्दिक पांड्या को पीठ की सर्जरी कराने इंग्लैंड जाना पड़ा था। पृथ्वी शॉ को अगला सचिन तेंदुलकर कहा जा रहा था। पर पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टखने की चोट के बाद से वह अब तक वापसी नहीं कर सके हैं। डोप टेस्ट में विफल होने से उन पर पाबंदी भी लगी हुई है। भुवनेश्वर हैमस्ट्रिंग की समस्या से निजात पाकर पुनर्वास कार्यक्रम में शामिल होकर अब फिट होने के प्रयास में जुटे हैं।
पहले खिलाड़ी को टीम में चुने जाने के लिए रन बनाने और विकेट लेने की उसकी क्षमता देखी जाती थी। अब इस कौशल के अलावा यो यो फिटनेस टेस्ट पास करना जरूरी है। पिछले साल अंबाती रायुडू यो यो फिटनेस टेस्ट पास न कर पाने की वजह से इंग्लैंड दौरे पर नहीं जा सके थे। इस यो यो टेस्ट को फुटबाॅल क्लब के सहायक कोच रहे जेम्स बेंग्सबो ने तैयार किया है। इसे लेकर तो अनिल कुंबले आए थे, पर कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली ने टीम में स्थान बनाने के लिए इसे अनिवार्य बना दिया है।
पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटर ग्लेन मैक्सवेल ने मानसिक स्वास्थ्य के लिए आराम पर जाने का फैसला किया। मैक्सवेल के इस फैसले को क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का पूरा समर्थन था। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी अपने क्रिकेटरों की असुरक्षा की भावना दूर करने का प्रयास करना चाहिए। असुरक्षा की इस भावना की वजह देश में प्रतिभाशाली क्रिकेटरों की लंबी फेहरिस्त होना है। महेंद्र सिंह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने पर रिद्धिमान साहा नियमित विकेटकीपर बन गए थे। पर उनके कंधे की सर्जरी कराने के दौरान ऋषभ पंत को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई। वह तो पंत अपनी क्षमता साबित नहीं कर सके अन्यथा साहा की वापसी का कोई मौका नहीं था। पर अब पूर्व कप्तान सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष बन गए हैं, इसलिए लगता है कि ऑस्ट्रेलिया जैसी सुरक्षा की व्यवस्था वह भारतीय खिलाड़ियों के लिए भी करने की कोई न कोई राह वह बना ही देंगे।
पिछले कुछ वर्षों में क्रिकेट में हालात एकदम बदल गए हैं। क्रिकेट जैसे-जैसे पेशेवर बनता गया, खिलाड़ियों को मिलने वाले पैसों में तो जबर्दस्त इजाफा हो गया। पर इसके बदले में उन्हें साल भर खिलाकर शारीरिक और मानसिक रूप से निचोड़ने की व्यवस्था भी कर दी गई। अब क्रिकेटर को पूरे साल खेलने में व्यस्त रखा जाता है, जिससे उसका थकना लाजिमी है। उसके सिर पर अच्छा प्रदर्शन करने की तलवार भी लटकती रहती है, जिससे वह लगातार दबाव में रहता है। इस शारीरिक और मानसिक थकान की वजह से खिलाड़ी चोटों का शिकार भी हो रहे हैं। बेशक बीसीसीआई समय-समय पर कुछ खिलाड़ियों को आराम भी देता है, जैसे कि कप्तान विराट कोहली ने बांग्लादेश के खिलाफ टी-20 सीरीज में आराम किया। पर यह अवसर कुछ ही खिलाड़ियों को मिल पाता है। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए बीसीसीआई द्वारा कुछ कदम उठाने का अब समय आ गया है।
मौजूदा समय में ही तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार और ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या चोट के कारण टीम से बाहर हैं। बुमराह ने थोड़े से समय में टीम के अटैक का ट्रंप कार्ड अपने को बना लिया है। वह क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में विजय दिलाने वाले गेंदबाज के तौर पर उभरकर सामने आए हैं। पर आजकल वह पीठ के निचले हिस्से में स्ट्रेस फ्रैक्चर का इलाज करा रहे हैं। उनके आगामी जनवरी तक ही टीम में वापसी की उम्मीद की जा रही है। वहीं हार्दिक पांड्या को पीठ की सर्जरी कराने इंग्लैंड जाना पड़ा था। पृथ्वी शॉ को अगला सचिन तेंदुलकर कहा जा रहा था। पर पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टखने की चोट के बाद से वह अब तक वापसी नहीं कर सके हैं। डोप टेस्ट में विफल होने से उन पर पाबंदी भी लगी हुई है। भुवनेश्वर हैमस्ट्रिंग की समस्या से निजात पाकर पुनर्वास कार्यक्रम में शामिल होकर अब फिट होने के प्रयास में जुटे हैं।
पहले खिलाड़ी को टीम में चुने जाने के लिए रन बनाने और विकेट लेने की उसकी क्षमता देखी जाती थी। अब इस कौशल के अलावा यो यो फिटनेस टेस्ट पास करना जरूरी है। पिछले साल अंबाती रायुडू यो यो फिटनेस टेस्ट पास न कर पाने की वजह से इंग्लैंड दौरे पर नहीं जा सके थे। इस यो यो टेस्ट को फुटबाॅल क्लब के सहायक कोच रहे जेम्स बेंग्सबो ने तैयार किया है। इसे लेकर तो अनिल कुंबले आए थे, पर कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली ने टीम में स्थान बनाने के लिए इसे अनिवार्य बना दिया है।
पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटर ग्लेन मैक्सवेल ने मानसिक स्वास्थ्य के लिए आराम पर जाने का फैसला किया। मैक्सवेल के इस फैसले को क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का पूरा समर्थन था। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी अपने क्रिकेटरों की असुरक्षा की भावना दूर करने का प्रयास करना चाहिए। असुरक्षा की इस भावना की वजह देश में प्रतिभाशाली क्रिकेटरों की लंबी फेहरिस्त होना है। महेंद्र सिंह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने पर रिद्धिमान साहा नियमित विकेटकीपर बन गए थे। पर उनके कंधे की सर्जरी कराने के दौरान ऋषभ पंत को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई। वह तो पंत अपनी क्षमता साबित नहीं कर सके अन्यथा साहा की वापसी का कोई मौका नहीं था। पर अब पूर्व कप्तान सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष बन गए हैं, इसलिए लगता है कि ऑस्ट्रेलिया जैसी सुरक्षा की व्यवस्था वह भारतीय खिलाड़ियों के लिए भी करने की कोई न कोई राह वह बना ही देंगे।