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विस्तार
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) मुश्किल से 27 साल पुराना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात गैट (जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ ऐंड ट्रेड) की व्यवस्था के बाद इसी महीने 1995 में जन्मे डब्ल्यूटीओ की विभिन्न कारकों द्वारा श्रद्धांजलि लिखी जा रही है। इस हफ्ते दावोस में डब्ल्यूटीओ के प्रमुख न्गोजी ओकोन्जो-इवेला द्वारा 'फिर से वैश्वीकरण' के लिए भावुक आह्वान और 'विखंडन और गैर-वैश्वीकरण' के खिलाफ चेतावनी धीमी गति से दम तोड़ने वाले संस्थान की मौत को रेखांकित करती है।
डब्ल्यूटीओ का गठन एक बहुपक्षीय मंच के रूप में सदस्य देशों के लिए मानदंडों को परिभाषित करने और विवादों पर निर्णय लेने के लिए किया गया था। इसे सर्वसम्मति से संचालित करने के लिए तैयार किया गया था, क्योंकि 164 सदस्यों में से प्रत्येक के पास अपनी आवाज थी। लेकिन विकसित देशों ने पिछले दो दशकों से आम सहमति से फैसले लेने के प्रारूप को पटरी से उतार दिया है। अपनी स्थापना के बाद से डब्ल्यूटीओ व्यापार वार्ताओं को सफलतापूर्वक निर्णय तक पहुंचाने में विफल रहा है। डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था विवादों को दूर करने का काम नहीं कर रही है और नवंबर, 2020 से इसकी बैठक भी नहीं हुई है।
डब्ल्यूटीओ की बदहाली मुक्त व्यापार के पटरी से उतरने का प्रतीक है। यह सच है कि मुक्त व्यापार प्रभावी रूप से कभी भी मुक्त नहीं था। फिर भी इस विचार ने साझा समृद्धि की संभावना, भागीदारी के वादे की पेशकश की। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पिछले पचास वर्षों से ज्यादा समय से पश्चिम द्वारा प्रचारित वादे को विकसित राष्ट्रों के हितों के जरिये परिभाषित करने की कोशिश की जा रही है। चीन के उदय और यूक्रेन युद्ध के बाद अर्थव्यवस्था, बढ़ती जनसंख्या और उभरती भू-राजनीति के संयोजन ने विकसित राष्ट्रों में उनकी स्थिति के बारे में भय बढ़ाया है।
दिसंबर 2001 में अमेरिका ने ही डब्ल्यूटीओ में चीन के प्रवेश को संभव बनाया था। हालांकि यह मालूम था कि चीन अपने उद्योगों के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सरकारी सब्सिडी के मानदंडों का उल्लंघन कर रहा था, लेकिन अमेरिका और यूरोप ने उसे इस विश्वास के साथ प्रवेश दिलाया कि समृद्धि चीन को और अधिक लोकतांत्रिक बनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और यह हांगकांग की घटना तथा ताइवान के स्वतंत्र द्वीप पर कब्जा करने के बारे में शी जिनपिंग शासन द्वारा बार-बार दी जाने वाली धमकियों में स्पष्ट दिखाई देता है। आज चीन का वैश्विक निर्यात में लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा है —वर्ष 2022 में चीन का निर्यात बढ़कर लगभग 60 खरब डॉलर हो गया और इसने 877 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष दर्ज किया है।
कोविड-19 महामारी के आगमन ने स्पष्ट कर दिया कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला वास्तव में चीनी आपूर्ति शृंखला थी। अपनी राजनीतिक अराजकता की परवाह किए बिना अमेरिका संस्थागत ढांचे द्वारा संरक्षित किया गया है। बहुत पुरानी बात नहीं है, जब अमेरिका ऊर्जा के लिए खाड़ी देशों पर निर्भर था। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद ओबामा के शासन में वर्ष 2009 की रिकवरी ऐंड रिइनवेस्टमेंट ऐक्ट द्वारा अमेरिका के ऊर्जा और संचार के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण किया गया और तेल व गैस उत्पादन में तेजी आई और वह यदि पूर्ण नहीं, तो आंशिक रूप से ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बना।
बाइडन प्रशासन ने इसका विस्तार करते हुए डिजिटल दुनिया में अमेरिका के रक्षा उपायों को शामिल किया है। इसने राज्य सब्सिडी वाली औद्योगिक नीति की पहल की है। इसका मतलब है कि चिप्स और सेमी-कंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहन, बैटरी, नवीकरणीय ऊर्जा का उद्योग लगाने वालों को सब्सिडी मिलेगी। यह नीति निर्यात और विदेशी निवेश पर नियंत्रण का भी ब्योरा देती है। पिछले दो वर्षों में अमेरिका ने आपूर्ति शृंखलाओं, चिप विकास को बढ़ावा देने और अपने उपभोक्ताओं को सब्सिडी देने के लिए लगभग 425 अरब डॉलर का वॉर चेस्ट (विशेष कोष) बनाया है, ताकि वे प्रकाश और परिवहन के लिए सौर और पवन ऊर्जा जैसे हरित ऊर्जा विकल्पों में रूपांतरण कर सकें।
इस खेल के नियम को अकेले अमेरिका ही नहीं फिर से लिख रहा है, बल्कि महामारी के तुरंत बाद यूरोपीय संघ के 27 देशों ने 18 खरब यूरो का नेक्स्ट जनरेशन ईयू रिकवरी प्लान तैयार किया। यही नहीं, यूरोपीय संघ ने कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म नामक एक नीति भी तैयार की है, जिसके तहत वह उत्पादों की कार्बन सामग्री के आधार पर आयात पर कर लगाकर अपने व्यवसायों को सुरक्षा प्रदान करता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए विदेशी निवेश महत्वपूर्ण है। ईएसजी निवेश नामक एक नए सूत्र के तहत पर्यावरण, सामाजिक और शासन के मानदंडों पर निवेश निवेशक देशों के नि र्णय के अधीन होगा। वैश्विक स्तर पर 500 खरब डॉलर से अधिक की निवेश योग्य बचत 2025 तक ईएसजी मानदंडों के तहत आने की उम्मीद है। इसका मतलब यह है कि निवेश (चाहे शेयर बाजार में हो या एफडीआई के रूप में) ईएसजी के अधीन होगा और उन शर्तों को स्वीकार करने के लिए दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, जो जरूरी नहीं कि स्थानीय आर्थिक स्थितियों के लिए उचित या उपयुक्त हों। जलवायु परिवर्तन से निपटने के पवित्र इरादे के तहत संरक्षणवाद के नए रूपों को आगे बढ़ाया जा रहा है। यह और बात है कि विकसित राष्ट्रों के प्रदूषण से प्रभावित देशों को अब तक 'हानि और क्षति' मुआवजे फंड का एक डॉलर भी नहीं मिला है।
ये घटनाक्रम महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये भारत के उत्थान को चुनौती देते हैं। वर्ष 2023 का बजट इन्हीं विपरीत आर्थिक और भू-राजनीतिक परिस्थितियों के संगम पर पेश किया जाने वाला है। 35 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का उदय, इसके तकनीकी लाभ और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के बदलते पुनर्गठन ने इसे वैश्विक बाजारों में अपने पदचिह्न का विस्तार करने का अवसर प्रदान किया है। भारत की उम्मीद को वैश्विक जुड़ाव के तेजी से बदलते रूपों से चुनौती मिली है। यह भारत को अपनी आकांक्षाओं को बनाए रखने के लिए प्रतिक्रियाओं का एक ढांचा बनाने की मांग करता है।