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भारत में अनुमान है कि शिक्षा के क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ करोड़ एनजीओ काम कर रहे हैं। हाल के वर्षों में सामाजिक उद्यमों के विस्तार के कारण गैर सरकारी शिक्षा नवाचार को तेजी से कुटीर उद्योगों का नेटवर्क तैयार करने का अवसर मिला है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अमेरिका में स्कूल में सुधार की समीक्षा करते हुए जो आकलन किया था, वह भारत के मामले में सच हो सकता हैः तकरीबन हर समस्या का कहीं कोई समाधान जरूर निकालता है। निराशा की बात यह है कि हम इस समाधान को दोहराने का प्रयास करते नहीं दिखते।
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हालांकि पिछले एक वर्ष के दौरान भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने देशभर में एनजीओ द्वारा शुरू किए गए नवाचारों की पहचान करने में खासा निवेश किया है और उनके लिए ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जिसमें वह खुद काम कर सकें और राज्य शिक्षा विभागों के साथ मिलकर काम कर सकें। एचआरडी सचिव अनिल स्वरूप खुद को इस अभियान का मुख्य सहायक बताते हैं।
उन्होंने नवाचार से संबंधित मॉडल की शिनाख्त करने के लिए विभिन्न राज्यों की यात्राएं कीं और फिर शैक्षणिक क्षेत्र के इन नवाचारों के प्रदर्शन के लिए पांच राष्ट्रीय स्तर की कार्यशालाएं भी आयोजित कीं। ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट की मिलियन्स लर्निंग रिपोर्ट के मुताबिक अक्सर कोई सरकारी अधिकारी ही किसी बड़े प्रयोग और नीति निर्धारण में भागीदारी के संबंध में महत्वपूर्ण केंद्र होता है।
सरकारी समर्थन तो अहम है है, लेकिन प्रवर्धन (स्केलिंग) एक जटिल काम है और इससे कुछ बुनियादी सवाल जुड़े होते हैं। और यह समझने की भी जरूरत है कि हर तरह के नवाचार को किसी तय खांचे में देखा जा सके, यह आवश्यक नहीं है। शैक्षणिक क्षेत्र के नवाचारों के अनुभव ऐसे घटकों को रेखांकित करते हैं, जिनके जरिये ऐसा नवाचार विकसित किया जा सके जिसे मापना संभव है, इसमें प्रभाव, लागत और मौजूदा प्रणाली से तालमेल बिठाने की क्षमता शामिल है।
स्केलिंग को भी स्पष्ट किया जाना जरूरी है। यहां महत्वपूर्ण सवाल है कि मापने योग्य चीजें क्या हैं। कुछ खास घटक या फिर पूरी प्रणाली। भारत जैसे देश में ऐसे मॉडल की जरूरत है, जिसकी लागत अधिक न हो। संपर्क फाउंडेशन ने देश भर के 46,000 प्राथमिक स्कूलों के 28 लाख बच्चों तक संपर्क बनाया है।
इस फाउंडेशन की अध्यापन संबंधी रूपरेखा तैयार करने वाली टीम की अगुआई करने वाले वेंकटेश मलूर ने एक्सलरेटिंग एक्सेस टू क्वालिटी एजुकेशन रिपोर्ट में, जिसका कुछ वर्ष पूर्व मैंने और सुबीर गोकर्ण ने संपादन किया था, लिखा कि कक्षाओं में ऐसे मितव्ययी नवाचार की जरूरत है, जो मौजूदा प्रणाली के साथ तालमेल बिठा सके, जिससे शिक्षकों और मौजूद ढांचे पर बोझ नहीं पड़ेगा।
लिहाजा संपर्क स्मार्ट क्लास किट की कीमत प्रति बच्चे एक डॉलर (करीब 67 रुपये) है। अहमदाबाद से संचालन करने वाली ज्ञान शाला पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रति छात्र सालाना तीन हजार रुपये पर शिक्षा उपलब्ध कराती है। शैक्षणिक नवाचार को कुछ खास मापदंडों पर मापना एक अहम उद्यम है, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि सिर्फ सतही तौर पर काम न हो। यह भी नहीं समझा जाना चाहिए कि नवाचार सिर्फ एनजीओ और सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले उद्यमों का काम है।
लेखक, शिकागो यूनिर्विसिटी में एसोसिएट डायरेक्टर हैं