धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कटु वचन बोलने से संचित पुण्य नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति अभद्र अथवा कटु भाषा का इस्तेमाल करता है, वह इहलोक के साथ-साथ परलोक में भी दुख पाता है। कहा भी गया है, मीठी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय...। आचार्य रामानुज धर्मशास्त्रों के गंभीर अध्येता तथा प्रकांड विद्वान थे। कई विद्वानों को उन्होंने अपने अकाट्य तर्कों से निरुत्तर किया था। इष्टदेव श्रीरंग भगवान की उपासना वह इतना तन्मय होकर करते थे कि उन्हें समाधि लग जाती थी।
आचार्य एक दिन श्रीरंग जी के पावन स्मरण में साधनारत थे। उन्हें लगा कि भगवान श्रीविग्रह की पीठ पर फोड़ा निकल आया है। यह देखकर उनकी आंखों से अश्रु झरने लगे। उन्होंने पूछा, भगवन, यह क्या हुआ? श्रीरंग जी ने कहा, रामानुज, दूसरों का खंडन करने के लिए तुम्हारे छोड़े गए वाग्वाणों से हमारी पीठ पर यह घाव लगा है।
आचार्य जी ने कहा, महाराज, हम खंडन तो अधर्मियों का करते हैं। भगवान बोले, यह तो ठीक है, किंतु हमारी पूजा-सेवा करने वाले भक्त की वाणी मधुर तो होनी ही चाहिए। उसे अपनी विद्वता के अहंकार में पड़कर किसी पर कटु वचनों की बौछार नहीं करनी चाहिए।
यह सुनकर रामानुजाचार्य रोने लगे। भगवान ने कहा, अब तुम किसी का खंडन-मंडन न करना। सरलता के साथ भजन में लगे रहना। विनम्रता से लोगों को सदाचार का उपदेश देकर उनका कल्याण करना। रामानुजाचार्य ने ऐसा ही करने का संकल्प लिया।
धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कटु वचन बोलने से संचित पुण्य नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति अभद्र अथवा कटु भाषा का इस्तेमाल करता है, वह इहलोक के साथ-साथ परलोक में भी दुख पाता है। कहा भी गया है, मीठी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय...। आचार्य रामानुज धर्मशास्त्रों के गंभीर अध्येता तथा प्रकांड विद्वान थे। कई विद्वानों को उन्होंने अपने अकाट्य तर्कों से निरुत्तर किया था। इष्टदेव श्रीरंग भगवान की उपासना वह इतना तन्मय होकर करते थे कि उन्हें समाधि लग जाती थी।
आचार्य एक दिन श्रीरंग जी के पावन स्मरण में साधनारत थे। उन्हें लगा कि भगवान श्रीविग्रह की पीठ पर फोड़ा निकल आया है। यह देखकर उनकी आंखों से अश्रु झरने लगे। उन्होंने पूछा, भगवन, यह क्या हुआ? श्रीरंग जी ने कहा, रामानुज, दूसरों का खंडन करने के लिए तुम्हारे छोड़े गए वाग्वाणों से हमारी पीठ पर यह घाव लगा है।
आचार्य जी ने कहा, महाराज, हम खंडन तो अधर्मियों का करते हैं। भगवान बोले, यह तो ठीक है, किंतु हमारी पूजा-सेवा करने वाले भक्त की वाणी मधुर तो होनी ही चाहिए। उसे अपनी विद्वता के अहंकार में पड़कर किसी पर कटु वचनों की बौछार नहीं करनी चाहिए।
यह सुनकर रामानुजाचार्य रोने लगे। भगवान ने कहा, अब तुम किसी का खंडन-मंडन न करना। सरलता के साथ भजन में लगे रहना। विनम्रता से लोगों को सदाचार का उपदेश देकर उनका कल्याण करना। रामानुजाचार्य ने ऐसा ही करने का संकल्प लिया।