कठोपनिषद् की एक कथा है। ऋषि उद्दालक ने अपने पुत्र नचिकेता से किसी बात पर चिढ़कर उसे यमराज को सौंप दिया। यम ऋषि पुत्र का यथोचित सत्कार नहीं कर पाए। उन्हें तीन रात उपवास में बितानी पड़ी। यम को लगा कि इस अपराध की क्षमा के लिए नचिकेता को वर देकर प्रसन्न किया जाना आवश्यक है।
दो साधारण वर मांगने के बाद नचिकेता ने कहा, मैं आपसे आत्म तत्व का ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं। यम ने तो पहले इसे टालने की कोशिश की, पर जब नचिकेता नहीं माने, तो यम ने कहा, आत्मा चेतन है। यह न जन्म लेता है, न मरता है। न कोई दूसरा इससे उत्पन्न हुआ है। यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है और शरीर के नष्ट होने पर भी बना रहता है। यह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और महान से भी महान है। यह कण-कण में व्याप्त है। सारा सृष्टिक्रम उसी के आदेश पर चलता है। जो व्यक्ति काल के आगोश में जाने से पूर्व इसे जान लेता है, वह बंधनों से मुक्त हो जाता है। शोक आदि क्लेशों को पार कर वह परमानंद पाता है।
यम नचिकेता को उपदेश में कहते हैं, वह न शास्त्रों के प्रवचन से पाया जा सकता है, न ज्ञान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। यह उसी को प्राप्त होता है, जिसकी वासनाएं शांत हो चुकी हों, जिसका अंतःकरण मलिनता से मुक्त हो चुका हो और जो आत्मज्ञान पाने को व्याकुल हो। यम के उपदेश ने नचिकेता के आत्मज्ञान को अभिभूत कर दिया और वह खुशी-खुशी पिता के आश्रम में लौट आए।