महर्षि तिरुवल्लुवर के पास अनेक व्यक्ति मार्गदर्शन प्राप्त करने आया करते थे। एक जिज्ञासु ने उनसे कहा, मैंने तरह-तरह से साधना करके भगवान के साक्षात्कार का प्रयास किया, किंतु हमेशा विफल रहा। इसका क्या कारण है? महर्षि ने उत्तर दिया, तुम्हारा संकल्प कभी अटल नहीं रहा। संकल्प पर अटल रहने वाले को ही सफलता मिलती है। संशय बड़े से बड़े संकल्प को डगमगा देता है।
महर्षि तिरुवल्लुवर उपदेश में कहते हैं, सफलता के लिए दृढ़ संकल्प बहुत आवश्यक होता है। संकल्परहित मनुष्य चाहे जितना धनवान हो, फिर भी वह निर्धन ही होता है। चाहे वह जितना बुद्धिशाली हो, पर असल में वह मूर्ख ही है। कुछ क्षण रुककर महर्षि फिर कहते हैं, जिस तालाब का पानी जितना गहरा होगा, उतने वहां कमल के बड़े और भव्य फूल होंगे। इसी प्रकार जिसका सफल होने का संकल्प जितना अधिक दृढ़ होगा, उतना ही वह महान व्यक्ति होगा। अगर मान लो कि कोई दृढ़संकल्पशील व्यक्ति किसी काम में सफल नहीं होता, तब भी उसके प्रयास और संकल्प दूसरों के लिए प्रेरणादायक होते हैं।
संत तिरुवल्लुवर आगे कहते हैं, संशय सत्पुरुषों के संकल्प में बाधा डालने का प्रयास करते हैं। किंतु दृढ़ संकल्पशील व्यक्ति चरैवैति-चरैवैति के अनुसार बिना कोई चिंता किए अपने संकल्प को पूरा करने में लगा ही रहता है। इसमें संदेह नहीं कि ऐसा दृढ़ संकल्पी ही ईश्वर का आसानी से साक्षात्कार कर पाता है।