धर्मग्रंथों में यह कहा जाता है कि अगर इच्छाओं पर संयम नहीं रखा जाए, तो वे एक दिन पतन का कारण जरूर बनती हैं। असीमित इच्छाओं के कारण मानव अंधा होकर विवेक को भूल जाता है।
पुराण में कथा आई है- मुचुकुंद नामक राजा एक बार विजय अभियान पर निकले। अपने शौर्य के बल पर उन्होंने पृथ्वी के अधिकांश क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। मुचुकुंद ने कुबेर के राज्य की बहुत ख्याति सुनी थी। उसकी इच्छा हुई कि वह उस राज्य को भी जीते। उसने कुबेर के राज्य पर आक्रमण कर दिया। कुबेर की सेना ने मुचुकुंद की सेना के छक्के छुड़ा डाले। बुरी तरह पराजित हुए मुचुकुंद अपने गुरु वशिष्ठ जी के पास पहुंचे।
उनसे कहा, आप जैसा सर्वशक्तिमान गुरु के होते हुए भी मुझे कुबेर के हाथों अपमानित होना पड़ा है। मेरी सहायता करो। उन्होंने वशिष्ठ जी से मंत्र-बल के माध्यम से कुबेर की सेना को शक्तिहीन बना देने की प्रार्थना की। यह बात कुबेर को पता चल गई। वह मुचुकुंद के पास पहुंचकर बोले, वशिष्ठ जी जैसे महान ज्ञानी को मेरी सेना को शक्तिहीन बनाने के लिए कष्ट देने की क्या आवश्यकता थी? लो, मैं बिना युद्ध के ही अपना राज्य आपको समर्पित करता हूं।
यह सुनते ही मुचुकुंद की लालसा समाप्त हो गई। लज्जित होकर वह बोला, वस्तुतः पृथ्वी को जीत लेने की तुच्छ लालसा ने मेरा विवेक हर लिया था। और पाप का प्रायश्चित करते हुए उन्होंने अपना राज्य त्याग दिया और वन में तपस्या को चले गए।
धर्मग्रंथों में यह कहा जाता है कि अगर इच्छाओं पर संयम नहीं रखा जाए, तो वे एक दिन पतन का कारण जरूर बनती हैं। असीमित इच्छाओं के कारण मानव अंधा होकर विवेक को भूल जाता है।
पुराण में कथा आई है- मुचुकुंद नामक राजा एक बार विजय अभियान पर निकले। अपने शौर्य के बल पर उन्होंने पृथ्वी के अधिकांश क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। मुचुकुंद ने कुबेर के राज्य की बहुत ख्याति सुनी थी। उसकी इच्छा हुई कि वह उस राज्य को भी जीते। उसने कुबेर के राज्य पर आक्रमण कर दिया। कुबेर की सेना ने मुचुकुंद की सेना के छक्के छुड़ा डाले। बुरी तरह पराजित हुए मुचुकुंद अपने गुरु वशिष्ठ जी के पास पहुंचे।
उनसे कहा, आप जैसा सर्वशक्तिमान गुरु के होते हुए भी मुझे कुबेर के हाथों अपमानित होना पड़ा है। मेरी सहायता करो। उन्होंने वशिष्ठ जी से मंत्र-बल के माध्यम से कुबेर की सेना को शक्तिहीन बना देने की प्रार्थना की। यह बात कुबेर को पता चल गई। वह मुचुकुंद के पास पहुंचकर बोले, वशिष्ठ जी जैसे महान ज्ञानी को मेरी सेना को शक्तिहीन बनाने के लिए कष्ट देने की क्या आवश्यकता थी? लो, मैं बिना युद्ध के ही अपना राज्य आपको समर्पित करता हूं।
यह सुनते ही मुचुकुंद की लालसा समाप्त हो गई। लज्जित होकर वह बोला, वस्तुतः पृथ्वी को जीत लेने की तुच्छ लालसा ने मेरा विवेक हर लिया था। और पाप का प्रायश्चित करते हुए उन्होंने अपना राज्य त्याग दिया और वन में तपस्या को चले गए।