धर्मग्रंथों में कहा गया है कि अहंकार तमाम अर्जित पुण्यों को पल भर में क्षीण कर डालता है। इसलिए उनमें निष्काम सत्कर्म करते रहने की प्रेरणा दी गई है।
चीन के सम्राट बू ने बुद्ध के सिद्धांतों से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म का प्रचार शुरू किया। उसने बुद्ध की प्रतिमाएं स्थापित कराई, बौद्ध विहार बनवाए, भिक्षुओं के भोजन की व्यवस्था कराई, औषधालय और अनाथालय खुलवाए। उसे यह अहंकार हो गया कि बौद्ध धर्म का जितना प्रसार उसने किया है, उतना किसी ने नहीं किया होगा। इससे निश्चय ही अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होगी।
बोधिधर्म चीन पहुंचे, तो सम्राट बू उनके दर्शन के लिए पहुंचे। राजा ने उनके समक्ष समस्त कार्यों का वर्णन किया। यह सुनते ही बोधिधर्म ने तुरंत कहा, बुद्ध ने कहा है कि जो भी सत्कर्म करो, निष्काम करो। तुमने अहंकारवश अपने कर्मों का बखान खुद कर उन पुण्यों को क्षीण कर दिया है।
सम्राट बू ने यह सुना, तो अपना माथा पीट लिया। कुछ क्षण बाद सम्राट ने बोधिधर्म से कहा, आप तो महान ज्ञानी हैं। मुझे आशीर्वाद दें कि भविष्य में मुझे अहंकार न छूने पाए। बोधिधर्म ने कहा, तुम्हें भ्रांति है कि मैं विद्वान हूं।
असल में मैं सबसे बड़ा अज्ञानी हूं। ज्ञान की प्राप्ति के लिए ही घर से निकला हूं। बोधिधर्म की अहंकारशून्यता देखकर सम्राट हतप्रभ था। बोधिधर्म की प्रेरणा से उसने उसी दिन से अहंकार का त्याग कर खुद को तुच्छ सेवक कहना शुरू कर दिया।
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