भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों ने दक्षिण एशियाई मानसून क्षेत्र में उच्च स्तरीय जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमानों पर एक खास तरह का अध्ययन शुरू किया है, जिससे भविष्य में फसलों, जल प्रबंधन एवं योजना निर्माण में काफी मदद मिलने की उम्मीद है। यह अध्ययन विश्व मौसम विज्ञान संगठन के समन्वित क्षेत्रीय जलवायु प्रयोग परियोजना का हिस्सा है।
आजादी के बाद देश में आर्थिक विकास कार्यक्रमों को लागू करने के लिए एक ऐसे संस्थान की जरूरत महसूस हुई, जो मूलभूत जलवायु समस्याओं के अध्ययन एवं उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में मौसम एवं मानसून से संबंधित प्रणालियों को समझने के लिए काम कर सके। इसी के मद्देनजर मौसम विज्ञान के विभिन्न पहलुओं के अनुसंधान हेतु केंद्र सरकार ने तीसरी पंचवर्षीय योजना में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी, और 17 नवंबर, 1962 को उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई।
लेकिन एक अप्रैल, 1971 को इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटरोलॉजी नाम दिया गया। शुरुआत में यह पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत था, जिसे 1985 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन लाया गया। फिर 12 जुलाई, 2006 से यह विशेष रूप से गठित भू-विज्ञान मंत्रालय के अधीन स्वायत्त संस्थान के रूप में काम कर रहा है।
इसका मुख्यालय पुणे में है। शोध विकास एवं प्रभावी जलवायु विज्ञान को समझने में सक्षम शोधकर्ताओं को तैयार करना, महासागर-वायुमंडलीय अनुसंधान को आगे बढ़ाना एवं इस क्षेत्र शोधरत संस्थानों के साथ सहयोग करना आईआईटीएम का प्रमुख उद्देश्य है।