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कौन देस से आए ये पंछी
कौन देस को जाएंगे
क्या-क्या सुख लाए ये पंछी
क्या-क्या दुख दे जाएंगे
पंछी की उड़ान औ’ पानी
की धारा को कोई सहज समझ नहीं पाता
पंछी कैसे आते हैं
पानी कैसे बहता है
अगर कोई समझता है भी
मुझको नहीं बतलाता है।
: कुमार विकल
पंजाबी मूल के हिंदी भाषा के जाने-माने कवि कुमार विकल (1935-1997) की यह कविता प्रकृति, मुनष्य और पंछियों की दुनिया के बीच घट रही कोमल किंतु जिज्ञासा से भरी भावनात्मक अभिव्यक्ति है। यह अभिव्यक्ति उन असंख्य मनोभावों की छवि बनाती है जो आकाश में उडते सुंदर पंछियों को देखकर हर व्यक्ति के भीतर आकार लेती है। यह अभिव्यक्ति प्रकृति से प्रेम की रंग-बिरंगी अनुभूति भी है, जिसके कई रंग हैं और कई रूप भी।
बहरहाल, इस समय कोरोना काल चल रहा है और कुछ ही माह बीते हैं जब सारी दुनिया एक लंबे लॉकडाउन के बाद अब धीरे-धीरे बाहर आ रही है। महामारी के इस काल में हर व्यक्ति घरों में रहने को मजबूर था। कामधंधे ठप्प थे, रोजमर्रा के क्रिया कलाप बंद थे और एक अजीब सी शांति हमारे आसपास तैर रही थी, लेकिन इस उदासी और खामोशी के बीच यदि कहीं कुछ सुखद और मन को शांत करने वाली चीज थी तो वही थी अनंत आकाश को नाप रहे पंछियों की स्वच्छंद उडान, उनका अपार स्नेह और लगातार अपने आसपास के जीवन से जुड्ने की लालसा, जिसने महामारी के इस दौर में भी मनुष्य को अकेला नहीं होने दिया।
पंछियों की सुबह की चहचहाट, मध्याहन की गुटर गू और सांझ का कलरव गान मनुष्य को यह अहसास करा गया कि जीवन में हमारे आसपास भी एक दुनिया बसती है जिसे ना केवल देखने, समझने की जरूरत है बल्कि प्रेम, स्नेह और उससे संवाद की भी जरूरत है। महामारी संकट की इस घड़ी में आसमान की ऊंचाई से दूर, उसके विस्तार से पार वे हमारे और करीब आए। घरों की खिडकियों, दरवाजों, बागीचों और शांत व खामोश पेड़ों की डालों पर बैठे पक्षियों ने हमसे तरह-तरह से हमसे संवाद किया, हमें पुकारा, हमसे बात करने की कोशिश की और एक संबंध स्थापित करने का भी प्रयास किया। यह संबंध और संवाद पंछियों को प्यार करने वाले लोगों में कहीं प्रेम स्थापित कर गया तो कहीं एक रिश्ता बना गया।
पक्षियों से संवाद की इस डोर को अमर उजाला ने पक्षी प्रेमियों से थाम लिया और अपने पाठकों तक एक शृंखला के माध्यम से पहुंचाया। 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की इस पहल के तहत जल संरक्षण व स्वच्छता पर काम करनेवाली संस्था अर्घ्यम की अध्यक्ष समाजेसवी और लेखिका रोहिणी निलेकणी ने रोचक तथ्यों के माध्यम से पक्षियों और मनुष्यों के आपसी संबंधों को शब्दों में विस्तार दिया।
उन्होंने अपने किए गए शोध अध्ययनों के आधार पर प्रवासी पक्षियों के बिना रास्ता भटके हजारों मील लंबा सफर करने, परिंदों के संगीत, उनकी विशेष ध्वनि, प्रजनन के मौसम में गाए जाने वाले गीतों के बारे में बताया। मुंबई में पली-बढ़ीं और पक्षियों से प्रेरणा लेने वालीं रोहिणी ने बगुले, कौवें, कबूतर, गौरैया और तोतों की बारीकियों और चालाकियों की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने खुद को पक्षियों की ऋणी मानते हुए संरक्षण के प्रयास शुरू किए और अपने बगीचे में पक्षियों की 60 से अधिक प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की। ऐसे प्रयासों की अपेक्षा वे लोगों से भी करती हैं।
वह तमाम ऐसे प्रयासों का समर्थन करती हैं जिनका उद्देश्य आम लोगों को पक्षियों के प्रति जागरूक कराना और चिड़ियों के संरक्षण को बढ़ावा देना है। पक्षियों की विविधता को पर्यावरण के स्वास्थ्य का सूचक बताते हुए उन्होंने पक्षियों को हमारी संपन्नता का प्रतीक बताया।
12 वर्षों से पक्षियों का अवलोकन करने वाले और उन्हें व्यवस्थित तरीके से दर्ज करने वाले आर.के.पुरम, नई दिल्ली निवासी चंद्र भूषण मौर्य पक्षियों को निहारने में प्रकृति के सान्निध्य का सुख बताया है। उन्होंने अपने लेख में बताया कि किस तरह थोड़ी बागवानी कर, मिट्टी के बर्तनों में पानी रख कर, हम पक्षियों को अपने आंगन में आकर्षित कर सकते हैं।
बगीचे हों तो पक्षियों को घोंसले बनाने में आसानी होगी। पंछियों के कलरव गान से मन को प्रफुल्लित कर देने वाले वाले आनंद की ओर उन्होंने ध्यान दिलाया। उनकी नजर में पक्षियों के लालन-पालन और संरक्षण के लिए किए जाने वाले प्रयास हमें प्रकृति से जोड़े रखते हैं।
नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी की ओर से दो बार प्रोत्साहन प्राप्त और जैव विविधता पर चार सालों से लेखन कर रहे लेखक विक्रम सिंह ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच पक्षियों की रोचक दुनिया और उनके अनूठे जीवन का खूबसूरत शब्द चित्र प्रस्तुत किया। उन्होंने लिखा कि किस तरह पहाड़ों में रहने वाले हर इंसान को गर्मियों के मौसम का उतना ही इंतजार होता है, जितना मैदानों में रहने वाले लोगों को गर्मियों के बाद आने वाली बारिश का।
कुदरत में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं के बारे में खोज-बीन करना, उनकी तस्वीरें लेना और जंगल में मरी हुई चीजें जैसे कीड़े-मकोड़े, हड्डियों, कंकालों, चिड़ियों और मधुमखियों के घरों आदि को इकट्ठा करने में अपनी रुचि बताते हुए उन्होंने अपने लेख में अवलोकन के बारे में विस्तार से बताया है।
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, भोपाल से वन प्रबंधन में पीजी डिप्लोमा कर रहे जामनगर, गुजरात निवासी हितार्थ रावल अपने अवलोकन के आधार पर बताते हैं कि कौए संवेदनशील और समर्पित माता-पिता होते हैं, और अंडों की रक्षा करने के लिए घोंसले में हर वक्त एक कौआ रहता ही है। बारिश होने पर अपने चूजों को बचाने में पिता वाला भाव दिखता है।
उन्होंने अपने लेख में बताया कि पक्षी हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं, यदि हमारे पास उन्हें देखने के लिए थोड़ा समय हो, फिर चाहे वह हमारे घर की बालकनी से ही क्यों न हो।
स्तंभकार और ब्लॉगर शोभिता अस्थाना बालकनी से नजर आती पक्षियों की अनूठी दुनिया की ओर हमारा ध्यान दिलाती हैं। वह लिखती हैं कि इंसान अपनी व्यस्त दिनचर्या में अपने आसपास रंगीन और रहस्यमय पक्षियों की ओर देखना भूल जाता है। दुनिया के कोलाहल में उसे कोयल की मीठी कूक सुनाई तो देती है, लेकिन वह रुक कर उसके मधुर गान का आनंद नहीं ले पाता है।
वह लिखती हैं कि कई बार बालकनी या खिड़की से ही पक्षियों को निहारने का सुख मिल जाता है। अपने जीवन में उन्हें लाल कोकयिया, शकरखोरा, सामान्य दरजी, सामान्य भुजंगा, कोयल, कौआ, कबूतर, छोटा फाख्ता, देसी मैना, अबलकी मैना, पुहय्या जैसे पंछियों को निहारने का आनंद मिला है और इन्हीं अनुभवों के आधार पर वह पक्षियों के संरक्षण पर जोर देती हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य पर लेखन कर रहीं पुणे निवासी शोमा अभयंकर लिखती हैं कि कैसे जब कोरोना महामारी ने सब के घरों को पिंजरा बना दिया तो उनकी तन्हाई मिटाने एक नन्ही सी मुनिया चिड़िया फुदक कर जाली पार कर बालकनी में आ बैठी और फिर अगले दिन अपने जोड़ीदार को भी संग ले आई।
अपने प्यारे छह बरस के लैब्राडोर डॉग को खो देने के बाद चिड़िया ने उन्हें अपनेपन का एहसास दिया था। उन्होंने अपने लेख में बताया कि किस तरह पक्षी हमारे अपने होते हैं और प्रकृति से जोड़े रखते हैं।
यह श्रृंखला 'नेचर कन्जर्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।
कौन देस से आए ये पंछी
कौन देस को जाएंगे
क्या-क्या सुख लाए ये पंछी
क्या-क्या दुख दे जाएंगे
पंछी की उड़ान औ’ पानी
की धारा को कोई सहज समझ नहीं पाता
पंछी कैसे आते हैं
पानी कैसे बहता है
अगर कोई समझता है भी
मुझको नहीं बतलाता है।
: कुमार विकल
पंजाबी मूल के हिंदी भाषा के जाने-माने कवि कुमार विकल (1935-1997) की यह कविता प्रकृति, मुनष्य और पंछियों की दुनिया के बीच घट रही कोमल किंतु जिज्ञासा से भरी भावनात्मक अभिव्यक्ति है। यह अभिव्यक्ति उन असंख्य मनोभावों की छवि बनाती है जो आकाश में उडते सुंदर पंछियों को देखकर हर व्यक्ति के भीतर आकार लेती है। यह अभिव्यक्ति प्रकृति से प्रेम की रंग-बिरंगी अनुभूति भी है, जिसके कई रंग हैं और कई रूप भी।
बहरहाल, इस समय कोरोना काल चल रहा है और कुछ ही माह बीते हैं जब सारी दुनिया एक लंबे लॉकडाउन के बाद अब धीरे-धीरे बाहर आ रही है। महामारी के इस काल में हर व्यक्ति घरों में रहने को मजबूर था। कामधंधे ठप्प थे, रोजमर्रा के क्रिया कलाप बंद थे और एक अजीब सी शांति हमारे आसपास तैर रही थी, लेकिन इस उदासी और खामोशी के बीच यदि कहीं कुछ सुखद और मन को शांत करने वाली चीज थी तो वही थी अनंत आकाश को नाप रहे पंछियों की स्वच्छंद उडान, उनका अपार स्नेह और लगातार अपने आसपास के जीवन से जुड्ने की लालसा, जिसने महामारी के इस दौर में भी मनुष्य को अकेला नहीं होने दिया।
पंछियों की सुबह की चहचहाट, मध्याहन की गुटर गू और सांझ का कलरव गान मनुष्य को यह अहसास करा गया कि जीवन में हमारे आसपास भी एक दुनिया बसती है जिसे ना केवल देखने, समझने की जरूरत है बल्कि प्रेम, स्नेह और उससे संवाद की भी जरूरत है। महामारी संकट की इस घड़ी में आसमान की ऊंचाई से दूर, उसके विस्तार से पार वे हमारे और करीब आए। घरों की खिडकियों, दरवाजों, बागीचों और शांत व खामोश पेड़ों की डालों पर बैठे पक्षियों ने हमसे तरह-तरह से हमसे संवाद किया, हमें पुकारा, हमसे बात करने की कोशिश की और एक संबंध स्थापित करने का भी प्रयास किया। यह संबंध और संवाद पंछियों को प्यार करने वाले लोगों में कहीं प्रेम स्थापित कर गया तो कहीं एक रिश्ता बना गया।
पक्षियों से संवाद की इस डोर को
अमर उजाला ने पक्षी प्रेमियों से थाम लिया और अपने पाठकों तक एक शृंखला के माध्यम से पहुंचाया। 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की इस पहल के तहत जल संरक्षण व स्वच्छता पर काम करनेवाली संस्था अर्घ्यम की अध्यक्ष समाजेसवी और लेखिका
रोहिणी निलेकणी ने रोचक तथ्यों के माध्यम से पक्षियों और मनुष्यों के आपसी संबंधों को शब्दों में विस्तार दिया।
उन्होंने अपने किए गए शोध अध्ययनों के आधार पर प्रवासी पक्षियों के बिना रास्ता भटके हजारों मील लंबा सफर करने, परिंदों के संगीत, उनकी विशेष ध्वनि, प्रजनन के मौसम में गाए जाने वाले गीतों के बारे में बताया। मुंबई में पली-बढ़ीं और पक्षियों से प्रेरणा लेने वालीं रोहिणी ने बगुले, कौवें, कबूतर, गौरैया और तोतों की बारीकियों और चालाकियों की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने खुद को पक्षियों की ऋणी मानते हुए संरक्षण के प्रयास शुरू किए और अपने बगीचे में पक्षियों की 60 से अधिक प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की। ऐसे प्रयासों की अपेक्षा वे लोगों से भी करती हैं।
वह तमाम ऐसे प्रयासों का समर्थन करती हैं जिनका उद्देश्य आम लोगों को पक्षियों के प्रति जागरूक कराना और चिड़ियों के संरक्षण को बढ़ावा देना है। पक्षियों की विविधता को पर्यावरण के स्वास्थ्य का सूचक बताते हुए उन्होंने पक्षियों को हमारी संपन्नता का प्रतीक बताया।
पक्षियों के लालन-पालन और संरक्षण के लिए किए जाने वाले प्रयास हमें प्रकृति से जोड़े रखते हैं
12 वर्षों से पक्षियों का अवलोकन करने वाले और उन्हें व्यवस्थित तरीके से दर्ज करने वाले आर.के.पुरम, नई दिल्ली निवासी चंद्र भूषण मौर्य पक्षियों को निहारने में प्रकृति के सान्निध्य का सुख बताया है। उन्होंने अपने लेख में बताया कि किस तरह थोड़ी बागवानी कर, मिट्टी के बर्तनों में पानी रख कर, हम पक्षियों को अपने आंगन में आकर्षित कर सकते हैं।
बगीचे हों तो पक्षियों को घोंसले बनाने में आसानी होगी। पंछियों के कलरव गान से मन को प्रफुल्लित कर देने वाले वाले आनंद की ओर उन्होंने ध्यान दिलाया। उनकी नजर में पक्षियों के लालन-पालन और संरक्षण के लिए किए जाने वाले प्रयास हमें प्रकृति से जोड़े रखते हैं।
नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी की ओर से दो बार प्रोत्साहन प्राप्त और जैव विविधता पर चार सालों से लेखन कर रहे लेखक विक्रम सिंह ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच पक्षियों की रोचक दुनिया और उनके अनूठे जीवन का खूबसूरत शब्द चित्र प्रस्तुत किया। उन्होंने लिखा कि किस तरह पहाड़ों में रहने वाले हर इंसान को गर्मियों के मौसम का उतना ही इंतजार होता है, जितना मैदानों में रहने वाले लोगों को गर्मियों के बाद आने वाली बारिश का।
कुदरत में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं के बारे में खोज-बीन करना, उनकी तस्वीरें लेना और जंगल में मरी हुई चीजें जैसे कीड़े-मकोड़े, हड्डियों, कंकालों, चिड़ियों और मधुमखियों के घरों आदि को इकट्ठा करने में अपनी रुचि बताते हुए उन्होंने अपने लेख में अवलोकन के बारे में विस्तार से बताया है।
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, भोपाल से वन प्रबंधन में पीजी डिप्लोमा कर रहे जामनगर, गुजरात निवासी हितार्थ रावल अपने अवलोकन के आधार पर बताते हैं कि कौए संवेदनशील और समर्पित माता-पिता होते हैं, और अंडों की रक्षा करने के लिए घोंसले में हर वक्त एक कौआ रहता ही है। बारिश होने पर अपने चूजों को बचाने में पिता वाला भाव दिखता है।
उन्होंने अपने लेख में बताया कि पक्षी हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं, यदि हमारे पास उन्हें देखने के लिए थोड़ा समय हो, फिर चाहे वह हमारे घर की बालकनी से ही क्यों न हो।
कई बार बालकनी या खिड़की से ही पक्षियों को निहारने का सुख मिल जाता है
स्तंभकार और ब्लॉगर शोभिता अस्थाना बालकनी से नजर आती पक्षियों की अनूठी दुनिया की ओर हमारा ध्यान दिलाती हैं। वह लिखती हैं कि इंसान अपनी व्यस्त दिनचर्या में अपने आसपास रंगीन और रहस्यमय पक्षियों की ओर देखना भूल जाता है। दुनिया के कोलाहल में उसे कोयल की मीठी कूक सुनाई तो देती है, लेकिन वह रुक कर उसके मधुर गान का आनंद नहीं ले पाता है।
वह लिखती हैं कि कई बार बालकनी या खिड़की से ही पक्षियों को निहारने का सुख मिल जाता है। अपने जीवन में उन्हें लाल कोकयिया, शकरखोरा, सामान्य दरजी, सामान्य भुजंगा, कोयल, कौआ, कबूतर, छोटा फाख्ता, देसी मैना, अबलकी मैना, पुहय्या जैसे पंछियों को निहारने का आनंद मिला है और इन्हीं अनुभवों के आधार पर वह पक्षियों के संरक्षण पर जोर देती हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य पर लेखन कर रहीं पुणे निवासी शोमा अभयंकर लिखती हैं कि कैसे जब कोरोना महामारी ने सब के घरों को पिंजरा बना दिया तो उनकी तन्हाई मिटाने एक नन्ही सी मुनिया चिड़िया फुदक कर जाली पार कर बालकनी में आ बैठी और फिर अगले दिन अपने जोड़ीदार को भी संग ले आई।
अपने प्यारे छह बरस के लैब्राडोर डॉग को खो देने के बाद चिड़िया ने उन्हें अपनेपन का एहसास दिया था। उन्होंने अपने लेख में बताया कि किस तरह पक्षी हमारे अपने होते हैं और प्रकृति से जोड़े रखते हैं।
यह श्रृंखला 'नेचर कन्जर्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।