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बापू की पुण्यतिथि: जानिए गांधी हत्याकांड से क्या था पृथ्वीराज कपूर का कनेक्शन?

Dr. Praveen Tiwari डॉ.प्रवीण तिवारी
Updated Sun, 29 Jan 2023 07:08 PM IST
“हे राम: गांधी हत्याकांड की प्रामाणिक पड़ताल
“हे राम: गांधी हत्याकांड की प्रामाणिक पड़ताल - फोटो : Amarujala

महात्मा गांधी की हत्या के इस बार 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं, लेकिन इस हत्याकांड से जुड़े कई राज आज भी सामने नहीं आए हैं। ये वो हत्याकांड है जो आज भी भारतीय राजनीति में आए दिन भूचाल लाता रहता है। अब इसी सिलसिले में वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव की नई पुस्तक “हे राम: गांधी हत्याकांड की प्रामाणिक पड़ताल” सामने आई है। इस पुस्तक में गांधी हत्याकांड से जुड़े कई ऐसे राज खोले गए हैं जिन पर आज से पहले कभी चर्चा नहीं हुई है। इस ही एक सनसनीखेज खुलासा इस पुस्तक में महान फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के बारे में किया गया है। 





दरअसल, दिल्ली और बंबई पुलिस ने गांधी हत्याकांड में उस दौर के सुपरस्टार पृथ्वीराज कपूर को फंसाने की साजिश रची थी। पृथ्वीराज कपूर के बेटे राज कपूर भी तब तक ‘नीलकमल’ जैसी सुपरहिट फिल्म के जरिए छा चुके थे। 

पृथ्वीराज कपूर पाकिस्तान के पंजाब के रहने वाले थे और 1928 में वह फिल्मों में काम करने के लिए बंबई आ गए थे। जब देश का बंटवारा हुआ तो पृथ्वीराज कपूर दिल खोलकर शरणार्थियों की मदद कर रहे थे। गांधी की हत्या में शामिल मदनलाल पहावा ने जब ये सुना तो वो भी पृथ्वीराज कपूर के पास पहुंच गया। 

कौन था मदनलाल पहावा?

 

मदनलाल पहावा पाकिस्तान से आया एक शरणार्थी था। बंटवारे के दौरान उसने अपने परिवारों के कुछ सदस्यों को खो दिया था, तब 20 साल का युवा रहा पहावा बंटवारे के लिए गांधी को दोषी मानता था। पहावा जब रोज़ी-रोटी की तलाश में मुंबई पहुंचा तो उसकी मुलाकात गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के कुछ साथियों से हो गई। इस तरह पहावा एक दिन गोडसे का करीबी बन गया।


गोडसे और उसके 6 साथियों ने 20 जनवरी 1948 (गांधी की हत्या के 10 दिन पहले) को बिड़ला भवन में गांधी की प्रार्थना सभा में बम फोड़ कर ग्रैनेड और गोलियां मार कर गांधी की हत्या का प्लान बनाया था।

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इस प्लान में गोडसे ने पहावा को बम फोड़ने का काम दिया था। 20 जनवरी को पहावा बम फोड़ने में कामयाब भी हो गया, लेकिन गोडसे और उसके बाकी साथी ग्रैनेड और गोलियां नहीं चला पाए और ये हमला विफल हो गया। इस घटना के दौरान मदनलाल पहावा को मौके पर ही पकड़ लिया गया था।

पहावा ने अपनी गिरफ्तारी के बाद पुलिस को गोडसे और उसके बाकी साथियों के बारे में सारे राज़ बता दिए थे लेकिन पुलिस 10 दिन तक गोडसे को गिरफ्तार नहीं कर पाई। पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक में पुलिस की इस गलती पर पूरा एक अध्याय लिखा है। 
 

मदनलाल पहावा पाकिस्तान से आया एक शरणार्थी था।
मदनलाल पहावा पाकिस्तान से आया एक शरणार्थी था। - फोटो : Amarujala

पृथ्वीराज से मिला मदनलाल पहावा 

इस पुस्तक के मुताबिक जब गांधी की हत्या हो गई तो मदनलाल पहावा का पुलिस ने एक बार फिर बयान लिया। इस बयान में मदनलाल पहावा ने बताया कि गांधी की हत्या के पहले जब वो आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था तो एक बार पृथ्वीराज कपूर ने उसकी मदद की थी। उसने पुलिस को बताया-
 
“मैं ऑपेरा हाउस सिनेमा गया जहां पृथ्वीराज कपूर का ऑफिस था। वहां 50-60 रिफ्यूजी लाइन में लगे हुए थे। मैं भी लाइन में लग गया। जब मेरा नंबर आया तो पृथ्वीराज कपूर ने खुद अपने हाथों से मुझे 8 रुपये दिए। लेकिन ये रुपये दो दिन में ही खत्म हो गए।”
 


पृथ्वीराज कपूर को फंसाने की कोशिश

पुलिस को दिए बयान में पाहवा ने बताया था कि पृथ्वीराज कपूर ने उसे 8 रुपये की मदद दी थी। पाहवा का इतना-सा बयान पुलिस ने पकड़ लिया। पुलिस ने सोचा कि वह इसके दम पर पृथ्वीराज कपूर को भी गांधी हत्याकांड में घसीट लेगी। पुलिस की इस साजिश का खुलासा खुद पाहवा ने अदालत को दिए एक लिखित बयान में किया था। उसने बताया-

“गांधीजी की हत्या के बाद दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर बालकिशन मुझ पर यह दबाव बनाने लगे कि मैं यह कहूं कि फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर और बंबई की शेर-ए-पंजाब होटल के मालिक अवतार सिंह ने मिलकर गांधीजी की हत्या की साजिश रची है और मैं भी इसमें शामिल था। इसी साजिश के सिलसिले में मैं इनसे मिलने के लिए गया था।” 

ऐसे में ये सवाल उठता है कि दिल्ली पुलिस सुपरस्टार पृथ्वीराज कपूर को गांधी हत्याकांड में क्यों फंसाना चाहती थीं? क्या पृथ्वीराज कपूर जैसे बड़े नाम को घसीटकर पुलिस अपनी नाकामियों पर पर्दा डालना चाहती थी? सवाल ये भी है कि दिल्ली पुलिस ने पृथ्वीराज कपूर को लेकर कभी कोई सफाई क्यों नहीं दी? 

गांधी की हत्या के आरोप में पुलिस पृथ्वीराज कपूर को गिरफ्तार करना चाहती थी?
गांधी की हत्या के आरोप में पुलिस पृथ्वीराज कपूर को गिरफ्तार करना चाहती थी? - फोटो : Amarujala

बाद में क्या हुआ?

गांधी हत्याकांड के बाद अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई थी। वहीं उसके बाकी साथियों गोपाल गोडसे (नाथूराम का छोटा भाई), विष्णु करकरे और मदनलाल पहावा को उम्र कैद की सज़ा दी गई। जबकि दिगंबर बड़गे को सरकारी गवाह बन जाने की वजह से माफी दे दी गई और शंकर किश्तैया को बरी कर दिया गया। 

1964 में जब मदनलाल पाहवा जेल से रिहा हुआ तो उसकी उम्र करीब 37 साल थी। सबसे पहले उसने पढ़ाई पर ध्यान दिया और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री हासिल की। 1966 में उसने मंजरी नाम की महिला से शादी की। पाहवा की पत्नी मंजरी ने ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ में हिस्सा लिया था। शादी के बाद पाहवा बंबई में बस गया और उसने यहां कई छोटे-मोटे कारोबार किए।
 
पाहवा ने एक इंटरव्यू में कहा था, “मुझे इस बात का हमेशा दुख रहेगा कि मैं अपने हाथों से गांधी को नहीं मार पाया।” पाहवा ने साल 2000 में आर्थिक तंगी में किडनी की बीमारी से जूझते हुए दम तोड़ दिया। 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदाई नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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