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वेक्टर जनित रोग: बचाव और प्रबंधन के लिए व्यापक प्रयास की जरूरत, एंटोमोलॉजी क्षेत्र को देना होगा बूस्ट

Dr. Aditya Prasad Dash डॉ आदित्य प्रसाद दाश
Updated Fri, 02 Jun 2023 06:54 PM IST
सार

2014 में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने उस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम वेक्टर जनित बीमारियों पर रखी थी ताकि पूरी दुनिया का ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित किया जा सके। तब इन बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कई देशों ने प्रतिबद्धता जताई, जिसका लाभ भी दिखा। हालांकि अभी भी इस दिशा में काम करना बाकी है। इन बीमारियों के पूर्ण उन्मूलन के लिए मेडिकल एंटोमोलोलॉजिस्ट की विशेषज्ञता की जरूरत है।

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एंटोमोलॉजी क्षेत्र को देना होगा बूस्ट - फोटो : iStock

विस्तार
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मलेरिया, डेंगू, काला अजार और लिम्फेटिक फाइलेरियासिस भारत के हजारों-लाखों परिवारों की जिंदगियों को प्रभावित करती है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुमानों के अनुसार, 2021 में दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में मलेरिया के 79% मामले और 83% मौतें भारत में हुई थीं। जनवरी से अक्टूबर 2022 के बीच भारत में एक लाख से ज्यादा डेंगू के केस सामने आए थे।



उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों- नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (NTDs) के वैश्विक बोझ का 54% हिस्सा दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र से सम्बंधित है। इन क्षेत्रों में लसीका फाइलेरिया (LF) और काला अजार को ख़त्म करने का लक्ष्य रखा गया है। लसीका फाइलेरिया, एक क्रोनिक और दुर्बल करने वाली बीमारी है। यह बीमारी भारत के 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 328 जिलों में फैल चुकी है। काला अजर या विसरल लीशमैनियासिसी दुनिया के कुछ वंचित तबकों को प्रभावित करने वाली एक घातक बीमारी है।


वेक्टर जनित रोगों का खतरा

इन बीमारियों में एक चीज जो कॉमन है वह यह है कि ये सभी बीमारियां वेक्टर द्वारा फैलती होती हैं। वेक्टर का मतलब  जानवर या कीड़े जो पैथोजन को एक जगह से दूसरी जगह फैलाते हैं। भारत का भौगोलिक और मानसून संरचना वेक्टर जनित बीमारियों को फैलाने में योगदान देती है। उदहारण के तौर पर भारत में मच्छरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इन मच्छरों की वजह से ये बीमारियां प्रमुख रूप से फैलती हैं।

इन बीमारियों को फैलाने वाले कीड़ों से मुकाबला करने के लिए वैज्ञानिकों ने कीटनाशकों, लंबे समय तक चलने वाले कीटनाशक जाल (LLINs) और लार्वाइसाइड्स जैसे समाधान विकसित किए हैं। हालांकि कीटनाशक प्रतिरोध और जलवायु परिवर्तन के कारण ये समाधान, जो पहले सही ढंग से काम करते हैं बाद में प्रभावी नहीं रह पाते हैं। 


इन बीमारियों के कारण जो क्षति होती है, वह बहुत ही भयावह होती है। इन बीमारियों से पीड़ित होने के कारण व्यक्ति कई बीमारी के प्रति संवेदनशील भी हो जाता है, उसमें अक्षमता आ जाती है, उत्पादकता में कमी आ जाती है। इन बीमारियों के इलाज से वह आर्थिक रूप से कमजोर भी हो जाता है। यहां तक कि इस तरह की बीमारियां व्यक्ति के लिए जानलेवा भी हो सकती हैं।

यह जरूरी है कि हम इन बीमारियों को खत्म करने के लिए एक लक्ष्य रखें और कीटों से पैदा होने वाली बीमारियों के नियंत्रण में सबसे बड़ी चुनौतियों को दूर करने के सबसे अच्छे और सस्ते तरीकों में से एक- कीटों की आबादी का सर्वे करने और इससे संबंधित समाधान प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक क्षमता में सुधार करें, ताकि रोग फैलाने की कीटों की क्षमता को ख़त्म किया जा सके। 
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वेक्टर कीड़ों के नियंत्रण से जुड़ी विज्ञान की शाखा को "एंटोमोलॉजी" के रूप में जाना जाता है। भारत में कीट विज्ञान की एक पुरानी और समृद्ध परंपरा रही है, जो 20वीं सदी की शुरुआत से चली आ रही है। गौरतलब है कि DDT-बेस्ड इनडोर रीसाइड्यूल स्प्रेयिंग (IRS) कार्यक्रमों को लागू करने से 1950 और 60 के दशक में भारत मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे था।
 

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हर साल बढ़ रहे हैं डेंगू-मलेरिया के केस - फोटो : istock

एंटोमोलॉजी क्षेत्र को देना होगा बढ़ावा

मेडिकल एंटोमोलोलॉजिस्ट की भारी कमी का मतलब है कि रोग पैदा करने वाले कीटों की निगरानी और जांच तथा इसके परिणामस्वरूप होने वाले प्रभावों को नियंत्रित करने की रणनीतियों की अनदेखी, जो पिछले कुछ दशकों में की गई है। एंटोमोलोलॉजिस्ट क्षमता निर्माण में गड़बड़ियां होने का मतलब यह भी है कि जो लोग एंटोमोलोजिकल रिसर्च में रुचि रखते हैं, वे वेक्टर जनित बीमारी के खतरे से समाज को सुरक्षा दिलाने के लिए आवश्यक उपकरण और जानकारी से लैस नहीं हैं।

कीटों से फैलने वाली बीमारियों को नियंत्रित करने में खतरों का मुकाबला करने के लिए क्षमता में बढ़ोतरी करना जरूरी है। इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण है कि हम एंटोमोलॉजिकल क्षमता और विशेषज्ञता हासिल करने के लिए निवेश ज्यादा करें।

एंटोमोलॉजी में ज्यादा बायोलॉजिस्ट को ट्रेनिंग देकर, रिसर्च फंड को बढ़ाकर और डिजीज मॉनिटरिंग सिस्टम (रोग निगरानी प्रणाली) और कीटनाशक प्रतिरोध का एक नेटवर्क स्थापित करके हम भारत में राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेनिंग तथा रिसर्च के लिए अच्छी तरह से लैस इको सिस्टम तैयार कर सकते हैं। 

2014 में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने उस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम वेक्टर जनित बीमारियों पर रखी थी ताकि पूरी दुनिया का ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित किया जा सके। तब इन बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कई देशों ने प्रतिबद्धता जताई, जिसका लाभ भी दिखा। हालांकि अभी भी इस दिशा में काम करना बाकी है। इन बीमारियों के पूर्ण उन्मूलन के लिए मेडिकल एंटोमोलोलॉजिस्ट की विशेषज्ञता की जरूरत है। 

एंटोमोलोलॉजिस्ट वेक्टर जनित बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए सबूत आधारित दृष्टिकोण का इस्तेमाल कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हीं के माध्यम से इन बीमारियों के समाधान में योगदान दिया जाए। इंटीग्रेटेड वेक्टर मैनेजमेंट एक समग्र दृष्टिकोण है जिसमें वेक्टर जनित बीमारियों को खत्म करने के लिए एक ऐसा विशेष माहौल तैयार करना होता है जिसमें रोकथाम से सम्बंधित कई हस्तक्षेप शामिल होते हों।


कीटों की आबादी रोकने के लिए प्रयास जरूरी

2030 तक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (NTDs) को खत्म करने के WHO के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन बीमारियों के फैलने की रफ्तार की समझ रखना महत्वपूर्ण है। इंटीग्रेटेड वेक्टर मैनेजमेंट जैसे उपाय वेक्टर आबादी को कम कर सकते हैं, जिससे मनुष्य इन कीटों के कम संपर्क में आएं और इस प्रकार से बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है।

इसके अलावा कीटों की आबादी बढ़ने से रोकने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना हो सकता है कि पानी कहीं रुकने न दिया जाए और अगर कहीं पानी रुका है उसमें कीटनाशक का छिड़काव किया जाए ताकि कीटों के पनपने का जरिया ही खत्म हो जाए। 

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी की वजह से देश के सरकारी स्वास्थ्य ढांचे पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ गया है। पिछले कुछ सालों में कीटों से होने वाली बीमारियों में इजाफा हुआ है। खोए हुए समय की भरपाई करने और देशभर की अधिकतम आबादी की सेहत को सुरक्षित करने के लिए हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भारत की एंटोमोलॉजिकल क्षमता के निर्माण में ज्यादा से ज्यादा निवेश किया जाए।

शिक्षा, रिसर्च और डेवलपमेंट को प्राथमिकता देकर और निवेश करके हम विशेष चुनौतियों का समाधान करने के लिए नए समाधानों को विकसित कर सकते हैं। इससे दक्षिण पूर्व एशिया में इन बीमारियों के प्रति रोकथाम की जा सकती है और भारत इस दिशा में वेक्टर उन्मूलन नवाचार में अग्रणी देश बन सकता है।

नई पीढ़ी के एंटोमोलोलॉजिस्ट को अत्याधुनिक तकनीक, उपकरणों और विशेषज्ञता से लैस करके हम भारत को कीट-जनित बीमारियों से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं।

भारत में घातक कीट-जनित बीमारियों को समाप्त करने के लिए सभी स्टेकहोल्डर-सरकार, समुदायों, रिसर्चर और इंडस्ट्री से निरंतर और संगठित प्रयासों की आवश्यकता है। हम अपनी एंटोमोलॉजिकल क्षमता का निर्माण करके, रिसर्च और इनोवेशन में निवेश करके और साथ मिलकर काम करके, हम सभी के लिए एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।


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नोट- लेखक प्रो. (डॉ) आदित्य प्रसाद दाश, सीनियर बायोलॉजी और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (एआईपीएच) के वाइस चांसलर हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदाई नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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