मैं रोज सुबह और शाम को घर से बाहर निकलकर पक्षियों को देखता, उनकी पहचान करता और फिर उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करता
- फोटो : अवनीश शुक्ल
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वो समय था हमारे इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद का, मैं अपने घर को छोड़कर एवं उस सुकून वाले ग्रामीण वातावरण से निकलकर स्नातक की पढ़ाई के लिए बेहद दौड़-भाग, तहजीब व अदब वाले शहर एवं प्रदेश की राजधानी लखनऊ जाना हुआ।
स्नातक के दो वर्ष तो ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला, अंतिम वर्ष में पहुंचने के बाद ऐसे ही एक दिन पता चला कि कैंपस के बाहर प्रकृति से संबधित एक सेमिनार है, मैं अपने एक पुराने दोस्त के साथ उस सेमिनार में सम्मिलित हुआ, वहां पर एक वक्ता ने बर्ड्स के बारे में काफी रोचक बातें बताईं।
तो वहां से वापिस लौटने के बाद उत्सुकतावश में इंटरनेट पर पक्षियों के बारे में सर्च करना शुरू किया तो थोड़ी रुचि और बढ़ी उसके बाद मैंने सोचा क्यों ना आसपास बर्ड्स को देखकर पहचाना जाए फिर धीरे -धीरे मैं ऐसे ही कोशिश करने लगा और मेरी रुचि बर्ड्स में बढ़ने लगी हालांकि मैं तब अपने दोस्तों से इस अंकुरित होते हुए रुचि का जिक्र नहीं करता था क्योंकि उनमें से ना तो कोई उस क्षेत्र का था और ना ही कोई रुचि रखता था।
फिर ऐसे ही व्यक्तिगत रुचि के साथ मैं परास्नातक के लिए दिल्ली गया और वहां हमें ऐसे दोस्त मिले जिनकी रुचि भी बर्ड्स में थी। इन्हीं दोस्तों के माध्यम से मुझे " बर्ड्स ऑफ इंडिया" किताब के बारे में जानकारी मिली और अगर सच में कहे तो इन्हीं दोस्तों कि वजह से मेरा बर्ड्स में और मन लगने लगा।
फिर इसी दास्तां के साथ शुरू हुआ हमारा बर्डिंग प्यार और अब तो मैंने इसी पर शोध करने की भी योजना रहा हूं बाकी देखते है आगे -आगे क्या होता है। इस साल जब में होली पर घर आया तो कोरोना महामारी कि वजह से लॉकडाउन लग गया तो इस लॉकडाउन के समय में जो मैंने अनुभव किया और जो विभिन्न बर्ड्स देखे, उसका कैसा अनुभव रहा वो भी में आपसे साझा करना चाहता हूं जो मैंने नीचे विधिवत तरीके से विस्तार में वर्णन किया है:
मार्च का महीना था, मैं होली की छुट्टी पर मां - पापा के पास घर पर त्योहार मनाने आया था, छुट्टी बिताने के बाद वापिस अपनी उच्चतर शिक्षा के लिए दिल्ली फिर से जा रहा था। हालांकि कोरोना के केस भारत में भी आने शुरू हो गए थे लेकिन समस्या इतनी गंभीर नहीं थी जितनी कि आज ये कहानी लिखते समय है, तो मैं ट्रेन से अपनी यात्रा के लिए निकल चुका था
रास्ते में ही पता चला की विश्वविद्यालय बंद हो चुका है तो पीतल नगरी मुरादाबाद से ही वापिस आ गया। खैर बाद में देश में लॉकडाउन भी लग गया। स्नातक पढ़ाई के दौरान से ही मुझे पक्षियों में बहुत आकर्षण था। पक्षियों को देखना उन्हें पहचानना फिर उनके बारे में और जानकारी इकट्ठा करना जैसे कि देश में उस पक्षी की कितनी जनसंख्या है, किस क्षेत्र में वो पाई जाती है,उनकी क्या विशेषताएं है और उनका आइयूसीएन स्तिथी क्या है ये सब पता करना मुझे काफी अच्छा लगता था, बाद में परास्नातक के लिए दिल्ली जाने के बाद वहां कई और दोस्तों से मिलना हुआ जिनका आकर्षण भी पक्षियों में था।
फिर हम साथ में देश के विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों में जाने लगे जिसमें भरतपुर बर्ड सेंचुरी प्रमुख पसंदीदा स्थानों में से एक था। लॉकडाउन हो जाने के बाद बाहर निकलना बंद हो गया, फिर ऐसे ही एक दिन भोर में उठना हुआ तो हमने अनुभव किया कि हमारे घर के आस पास कई प्रकार की प्रजाति की पक्षियां हैं फिर मैंने उस दिन के बाद रोज़ एकदम भोर में सूर्योदय से पहले उठना शुरु किया और निश्चय किया कि अब मैं रोज सुबह सूरज के उगते हुए उस बेहद आकर्षक लालिमा को रोज देखना है और साथ ही साथ सूर्योदय की उस लालिमा के बाद से ही शुरु होने वाले, मन को लुभाने वाली और अति कर्णप्रिय पक्षियों के कलरव को भी सुनना है, और फिर इसी प्रकृति सुंदरता कि चाह और पक्षियों में मेरा विशेष ध्यान ने बालकनी बर्डिंग की शुरुआत की।
मैं रोज सुबह और शाम को घर से बाहर निकलकर पक्षियों को देखता, उनकी पहचान करता और फिर उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करता। यही दिनचर्या मैं अभी भी अनुसरण करता हूं। अभी तक मैंने लगभग 30 से ज्यादा पक्षी के प्रजातियों को पहचान कर उनके बारे में जानकारी एकत्रित कर चुका है और करीब 5 से 6 ऐसी प्रजाति है जिनकी पहचान करने में अभी तक मैं असफल रहा।
जो मैंने अभी तक पक्षियों को अपने बालकनी से देखकर पहचान किया है उसमे निम्नलिखित पक्षी है: कठ्फोडवा (फ्लेमबैक), सतभाई (जंगल बैब्लर) , मैना, सनबर्ड, कबूतर, डोव,मुनिया (स्केली ब्रेस्ट्ड मुनिया), रेड व्हिस्करेड बुलबुल, एश्यी बुलबुल, मोर, रूफाउस ट्रीपी बर्ड, कौवा,बगुला,तोता, एशियाई कोयल, महोख या डुगडुगी (ग्रेटर कोकल) इत्यादि।
हालांकि मैंने जितने भी पक्षियों को देखा - पहचाना और जानकारी इकट्ठा की उन सभी पक्षियों को मैंने बिना दूरबीन और कैमरा का प्रयोग किए अपनी नग्न आंखो से देखा और मैंने जानकारी " बर्डस ऑफ इंडिया " किताब और कुछ बर्डस से संबधित सोशल साइट्स से एकत्रित की।
ऐसे ही एक सुबह मैं उठा तो मेरी एकाएक नजर सोलर लाइट पर पड़ी जहां सोलर पैनल के नीचे प्यारी सी मुनिया पक्षी का जोड़ा अपने घोंसले के निर्माण में लगा हुआ था, इस दौरान दोनों घास की पत्ती/तिनका और अन्य चीजें लाकर अपने ठिकाने को मूर्ति रूप देने में लगे हुए थे लेकिन जब भी वो कोई तिनका लाकर उसे अपने मन मुताबिक व्यवस्थित करने की कोशिश करते वो तिनका उस सोलर लाइट के खंभे से गिर जाता तब वो फिर नीचे आते वो तिनका वापिस लाकर वही प्रक्रिया फिर शुरू करते और फिर वो तिनका गिर जाता यही करते दोपहर हो गई और सूरज की तपिश भी बढ़ने लगी और अंतत: कई घंटो के अथक परिश्रम के बाद वो नन्ही मुनिया चिड़िया अपना आशियाना बनाने में सफल हो गई।
इस वाक्य को याद करते समय हमें बचपन का वो दोहा याद आ गया जो हमें "परिश्रम का फल मीठा होता है" और "कभी ना हार मानने" की सीख देता है, जोकि निम्नलिखित है "करत - करत अभ्यास से, जड़मत होत सुजान। रसरी आवत- जात से , पत्थर पर पड़त निशान।।"
ऐसे ही कई और सुंदर और प्रेरणा पूर्ण वाकय है जो मैंने इस लॉकडाउन के दौरान "Balcony Birding" और प्रकृति की खूबसूरती का आनंद लेते हुए अनुभव किया। इस पूरे 3-4 महीने के दौरान मैंने प्रकृति में ध्यान लगा कर महामारी के समय में भी मैंने अत्यंत आनंद और आंतरिक शांति का अनुभव किया। और ये मेरा आप विश्वास मानिए जोकि मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूं कि बर्डिंग और प्रकृति की सुंदरता का अनुभव एवं आनंद जितना आप अपने नग्न से आंखो से देख करके प्राप्त करेंगे उतना आप किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग करके नहीं पा सकेंगे।
मैं आज भी रोज भोर में उठकर प्रकृति की सुंदरता, पक्षिओं का कलरव, सूरज की लालिमा और सुबह की मंद -मंद हवा का आनंद लेता हूं। साथ ही आपको सलाह भी देना चाहता हूं कि आप भी इस दौड - भाग की जिंदगी में अपना रोज का कुछ समय प्रकृति के बीच में बिताए आपको आंतरिक खुशी भी मिलेगी और आपका प्रकृति से लगाव के साथ -साथ उसकी महत्ता का भी ज्ञान हो जाएगा।
लेखक वर्तमान समय में दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरणीय अध्ययन विभाग में द्वितीय वर्ष के छात्र हैंं। स्नातक की पढ़ाई लखनऊ विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और मानव विज्ञान विषयों के साथ की है।
यह श्रंखला 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
[email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
वो समय था हमारे इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद का, मैं अपने घर को छोड़कर एवं उस सुकून वाले ग्रामीण वातावरण से निकलकर स्नातक की पढ़ाई के लिए बेहद दौड़-भाग, तहजीब व अदब वाले शहर एवं प्रदेश की राजधानी लखनऊ जाना हुआ।
स्नातक के दो वर्ष तो ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला, अंतिम वर्ष में पहुंचने के बाद ऐसे ही एक दिन पता चला कि कैंपस के बाहर प्रकृति से संबधित एक सेमिनार है, मैं अपने एक पुराने दोस्त के साथ उस सेमिनार में सम्मिलित हुआ, वहां पर एक वक्ता ने बर्ड्स के बारे में काफी रोचक बातें बताईं।
तो वहां से वापिस लौटने के बाद उत्सुकतावश में इंटरनेट पर पक्षियों के बारे में सर्च करना शुरू किया तो थोड़ी रुचि और बढ़ी उसके बाद मैंने सोचा क्यों ना आसपास बर्ड्स को देखकर पहचाना जाए फिर धीरे -धीरे मैं ऐसे ही कोशिश करने लगा और मेरी रुचि बर्ड्स में बढ़ने लगी हालांकि मैं तब अपने दोस्तों से इस अंकुरित होते हुए रुचि का जिक्र नहीं करता था क्योंकि उनमें से ना तो कोई उस क्षेत्र का था और ना ही कोई रुचि रखता था।
फिर ऐसे ही व्यक्तिगत रुचि के साथ मैं परास्नातक के लिए दिल्ली गया और वहां हमें ऐसे दोस्त मिले जिनकी रुचि भी बर्ड्स में थी। इन्हीं दोस्तों के माध्यम से मुझे " बर्ड्स ऑफ इंडिया" किताब के बारे में जानकारी मिली और अगर सच में कहे तो इन्हीं दोस्तों कि वजह से मेरा बर्ड्स में और मन लगने लगा।
फिर इसी दास्तां के साथ शुरू हुआ हमारा बर्डिंग प्यार और अब तो मैंने इसी पर शोध करने की भी योजना रहा हूं बाकी देखते है आगे -आगे क्या होता है। इस साल जब में होली पर घर आया तो कोरोना महामारी कि वजह से लॉकडाउन लग गया तो इस लॉकडाउन के समय में जो मैंने अनुभव किया और जो विभिन्न बर्ड्स देखे, उसका कैसा अनुभव रहा वो भी में आपसे साझा करना चाहता हूं जो मैंने नीचे विधिवत तरीके से विस्तार में वर्णन किया है:
मार्च का महीना था, मैं होली की छुट्टी पर मां - पापा के पास घर पर त्योहार मनाने आया था, छुट्टी बिताने के बाद वापिस अपनी उच्चतर शिक्षा के लिए दिल्ली फिर से जा रहा था। हालांकि कोरोना के केस भारत में भी आने शुरू हो गए थे लेकिन समस्या इतनी गंभीर नहीं थी जितनी कि आज ये कहानी लिखते समय है, तो मैं ट्रेन से अपनी यात्रा के लिए निकल चुका था
रास्ते में ही पता चला की विश्वविद्यालय बंद हो चुका है तो पीतल नगरी मुरादाबाद से ही वापिस आ गया। खैर बाद में देश में लॉकडाउन भी लग गया। स्नातक पढ़ाई के दौरान से ही मुझे पक्षियों में बहुत आकर्षण था। पक्षियों को देखना उन्हें पहचानना फिर उनके बारे में और जानकारी इकट्ठा करना जैसे कि देश में उस पक्षी की कितनी जनसंख्या है, किस क्षेत्र में वो पाई जाती है,उनकी क्या विशेषताएं है और उनका आइयूसीएन स्तिथी क्या है ये सब पता करना मुझे काफी अच्छा लगता था, बाद में परास्नातक के लिए दिल्ली जाने के बाद वहां कई और दोस्तों से मिलना हुआ जिनका आकर्षण भी पक्षियों में था।
फिर हम साथ में देश के विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों में जाने लगे जिसमें भरतपुर बर्ड सेंचुरी प्रमुख पसंदीदा स्थानों में से एक था। लॉकडाउन हो जाने के बाद बाहर निकलना बंद हो गया, फिर ऐसे ही एक दिन भोर में उठना हुआ तो हमने अनुभव किया कि हमारे घर के आस पास कई प्रकार की प्रजाति की पक्षियां हैं फिर मैंने उस दिन के बाद रोज़ एकदम भोर में सूर्योदय से पहले उठना शुरु किया और निश्चय किया कि अब मैं रोज सुबह सूरज के उगते हुए उस बेहद आकर्षक लालिमा को रोज देखना है और साथ ही साथ सूर्योदय की उस लालिमा के बाद से ही शुरु होने वाले, मन को लुभाने वाली और अति कर्णप्रिय पक्षियों के कलरव को भी सुनना है, और फिर इसी प्रकृति सुंदरता कि चाह और पक्षियों में मेरा विशेष ध्यान ने बालकनी बर्डिंग की शुरुआत की।
मैं रोज सुबह और शाम को घर से बाहर निकलकर पक्षियों को देखता, उनकी पहचान करता और फिर उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करता। यही दिनचर्या मैं अभी भी अनुसरण करता हूं। अभी तक मैंने लगभग 30 से ज्यादा पक्षी के प्रजातियों को पहचान कर उनके बारे में जानकारी एकत्रित कर चुका है और करीब 5 से 6 ऐसी प्रजाति है जिनकी पहचान करने में अभी तक मैं असफल रहा।
मैं आज भी रोज भोर में उठकर प्रकृति की सुंदरता...
कुछ समय प्रकृति के बीच में बिताए आपको आंतरिक खुशी भी मिलेगी और आपका प्रकृति से लगाव के साथ -साथ उसकी महत्ता का भी ज्ञान हो जाएगा
- फोटो : अवनीश शुक्ल
जो मैंने अभी तक पक्षियों को अपने बालकनी से देखकर पहचान किया है उसमे निम्नलिखित पक्षी है: कठ्फोडवा (फ्लेमबैक), सतभाई (जंगल बैब्लर) , मैना, सनबर्ड, कबूतर, डोव,मुनिया (स्केली ब्रेस्ट्ड मुनिया), रेड व्हिस्करेड बुलबुल, एश्यी बुलबुल, मोर, रूफाउस ट्रीपी बर्ड, कौवा,बगुला,तोता, एशियाई कोयल, महोख या डुगडुगी (ग्रेटर कोकल) इत्यादि।
हालांकि मैंने जितने भी पक्षियों को देखा - पहचाना और जानकारी इकट्ठा की उन सभी पक्षियों को मैंने बिना दूरबीन और कैमरा का प्रयोग किए अपनी नग्न आंखो से देखा और मैंने जानकारी " बर्डस ऑफ इंडिया " किताब और कुछ बर्डस से संबधित सोशल साइट्स से एकत्रित की।
ऐसे ही एक सुबह मैं उठा तो मेरी एकाएक नजर सोलर लाइट पर पड़ी जहां सोलर पैनल के नीचे प्यारी सी मुनिया पक्षी का जोड़ा अपने घोंसले के निर्माण में लगा हुआ था, इस दौरान दोनों घास की पत्ती/तिनका और अन्य चीजें लाकर अपने ठिकाने को मूर्ति रूप देने में लगे हुए थे लेकिन जब भी वो कोई तिनका लाकर उसे अपने मन मुताबिक व्यवस्थित करने की कोशिश करते वो तिनका उस सोलर लाइट के खंभे से गिर जाता तब वो फिर नीचे आते वो तिनका वापिस लाकर वही प्रक्रिया फिर शुरू करते और फिर वो तिनका गिर जाता यही करते दोपहर हो गई और सूरज की तपिश भी बढ़ने लगी और अंतत: कई घंटो के अथक परिश्रम के बाद वो नन्ही मुनिया चिड़िया अपना आशियाना बनाने में सफल हो गई।
इस वाक्य को याद करते समय हमें बचपन का वो दोहा याद आ गया जो हमें "परिश्रम का फल मीठा होता है" और "कभी ना हार मानने" की सीख देता है, जोकि निम्नलिखित है "करत - करत अभ्यास से, जड़मत होत सुजान। रसरी आवत- जात से , पत्थर पर पड़त निशान।।"
ऐसे ही कई और सुंदर और प्रेरणा पूर्ण वाकय है जो मैंने इस लॉकडाउन के दौरान "Balcony Birding" और प्रकृति की खूबसूरती का आनंद लेते हुए अनुभव किया। इस पूरे 3-4 महीने के दौरान मैंने प्रकृति में ध्यान लगा कर महामारी के समय में भी मैंने अत्यंत आनंद और आंतरिक शांति का अनुभव किया। और ये मेरा आप विश्वास मानिए जोकि मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूं कि बर्डिंग और प्रकृति की सुंदरता का अनुभव एवं आनंद जितना आप अपने नग्न से आंखो से देख करके प्राप्त करेंगे उतना आप किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग करके नहीं पा सकेंगे।
मैं आज भी रोज भोर में उठकर प्रकृति की सुंदरता, पक्षिओं का कलरव, सूरज की लालिमा और सुबह की मंद -मंद हवा का आनंद लेता हूं। साथ ही आपको सलाह भी देना चाहता हूं कि आप भी इस दौड - भाग की जिंदगी में अपना रोज का कुछ समय प्रकृति के बीच में बिताए आपको आंतरिक खुशी भी मिलेगी और आपका प्रकृति से लगाव के साथ -साथ उसकी महत्ता का भी ज्ञान हो जाएगा।
लेखक वर्तमान समय में दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरणीय अध्ययन विभाग में द्वितीय वर्ष के छात्र हैंं। स्नातक की पढ़ाई लखनऊ विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और मानव विज्ञान विषयों के साथ की है।
यह श्रंखला 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
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