पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
क्या आपने कभी गौर किया है कि शायद ही कोई गौरैया (sparrow) आजकल आपके घर में प्रवेश करती है, और शायद ही आपको पंखे को बंद करने के लिए दौड़ने की आवश्यकता होती है, ताकि वह घायल न हो?
लॉकडाउन के दौरान जब हम सब अपने अपने घरों में बंद थे, तब एक हास्यास्पद एक्शन फिल्म देखते हुए मुझे यह एहसास हुआ कि इस तरह की घटनाएं, जो मेरे बचपन में बहुत आम थी, अब बहुत ही दुर्लभ हो गई हैं। लेकिन, अगर हम केवल थोड़ा ज़्यादा अवलोकन करें, थोड़ा अधिक सुनें, तो पाएंगे कि हमारे आसपास एक अद्भुत नाटक खेला जा रहा है।
हालांकि मैं बर्ड वॉचिंग अक्सर करता हूं, वह आमतौर पर घर के बाहर होता है, कभी-कभार घर से कुछ पक्षी दिखाई देते हैं। लेकिन लॉकडाउन ने मुझे अपने घर के आसपास पक्षियों का विस्तृत निरीक्षण करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। उसका लाभ उठाते हुए, मैंने अपनी पसंद के हथियार- दूरबीन और मर्लिन बर्ड आईडी मोबाइल ऐप- थामे, और बालकनी बर्डिंग की यात्रा पर निकल गया।
मार्च के मध्य में, जब कोविड-19 देश में अपने पैर जमा रहा था और देश लॉकडाउन में प्रवेश कर रहा था, तब भी मैं सर्दियों के प्रवासी पक्षियों को देख सकता था । कुंज (demoiselle crane) के झुंडों का लालित्य मेरे सिर के ऊपर से रक्स करता सा गुजरता था।
कुछ झुंड महज चंद पक्षियों से बने हुए होते थे, तो कुछ सैकड़ों से, मगर सारे थर्मल कॉलम (उष्ण हवा की धारा) की मदद से मंडराते हुए ऊंचाई हासिल कर अपनी तीव्र ट्रम्पेटिंग (कलरव) से हंगामा मचाया करते थे। उनके साथ कभी कभी पेलिकन (pelican) के समूह भी होते था।
कुंजों की ट्रम्पेटिंग (कलरव) का कोलाहल मेरी छत पर अप्रैल के मध्य तक बना रहा। तत्पश्चात सारे कुंज हिमालय को पार करके मंगोलिया, चीन और उत्तरी एशिया के अन्य भागों में अपने प्रजनन स्थलों को चले गए। रात्रि अपने साथ पक्षियों का एक नया समाज लेकर आती है।
स्ट्रीट लाइट चालू होने के कुछ ही मिनटों बाद, एक खूसटिया (धब्बेदार उल्लू – spotted owlet) मेरे घर के ठीक सामने लैंप के ऊपर लगे बिजली के तार पर बैठ जाया करता था। जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता, पतंगे और झींगुर दीपक की ओर आकर्षित होते थे, जिन पर लपकने के लिए वह उल्लू तैयार रहता था।
उल्लू का हवा में कीड़े पकड़ कर तार पर वापस बैठ जाना, कभी कीट को पूरा ही निगल जाना, तो कभी खाने से पहले बेरहमी से उसके पंख तोड़ना और तार पर पटककर बेहोश करना- यह देखना मेरे लिए रोज़ शाम का अनुष्ठान बन गया।
जून की एक सुबह, अपने घर के पीछे एक छोटे से खेत में चलते हुए, मैंने एक टिटिहरी (red-wattled lapwing) की चिड़चिड़ी आवाज सुनी। आस पास ढूंढा तो पाया कि वह जमीन पर बने मिट्टी और कंकड़ के एक छोटे से टीले से दूर भाग रही थी। वह मिट्टी का टीला एक घोंसला था, जिसमें मिट्टी जैसे रंग के चार अंडे थे। उस दिन के बाद से, मैं प्रतिदिन जाकर उस घोंसले को देखा करता था।
मैंने देखा कि नर और मादा दोनों अंडों को बारी-बारी से सेते थे, यहां तक कि दोपहर की चिलचिलाती धूप में भी। उसी समय के आसपास, मुझे खेत के दूर कोने में एक पेड़ पर एक कौआ (house crow) का घोंसला भी मिला था, जिसे मैं अपने घर की छत से अपनी दूरबीन से देख सकता था।
मैंने पाया कि कौए संवेदनशील और समर्पित माता-पिता होते हैं, और अंडों की रक्षा करने के लिए घोसले में हर वक्त एक कौआ रहता ही है। टिटिहरी के अंडों से 28 से 30 दिनों के भीतर चूजे निकल जाते हैं, और कौए के अंडे से 14 से 20 दिनों में। इसलिए, मैं बड़ी ही आतुरता से दोनों प्रजातियों के चूजों को बड़े होते और उड़ना सीखते हुए देखने के लिए इंतजार कर रहा था।
मुझे माता-पिता की चूजों के साथ के व्यवहार की भी तुलना करनी थी। लेकिन, अफसोस, एक आपदा आ गई। मानसून ने अचानक ही अपने तेवर दिखा दिए। दो दिनों तक अंधाधुन बरसात हुई, और पूरा खेत पानी में डूब गया।
मैं बरसात के दौरान एक कौए को पेड़ पर अपने घोंसले में बैठे हुए देख सकता था। वह बारिश में भीगते हुए अंडो की रक्षा कर रहा था। बारिश कम होते ही मैं टिटिहरी के घोंसले की जांच करने के लिए गया, लेकिन वह पानी में बह गया था। सिर्फ एक हफ्ते में ही उन अंडो से छोटे-छोटे मासूम चूजे निकल गए होते, मगर कुदरत को कुछ और मंज़ूर था।
मुझे बहुत दुःख हुआ। मगर वह आपदा कुछ के लिए एक अवसर था। खेत में एकत्रित पानी अन्य पक्षियों की एक पूरी फौज लेकर आई: आइबिस (ibis), बगुले (herons and egrets), काले पंखों वाले स्टिल्ट (black-winged stilts) और यहां तक की बतख (spot-billed duck) की एक जोड़ी भी। कुछ दिनों तक बरसाती मेंढकों और कीड़ों पर जमकर दावत उड़ाई गई।
मैं नही जानता कि टिटिहरी के उस जोड़े ने इस दावत में भाग लिया था या नहीं। उनकी प्रजाति के कुछ पक्षी जरूर आए थे, मगर उनमें से उस जोड़े को पहचान पाना नामुमकिन था। बहरहाल, मैंने कौए के एक चूज़े को अंडे से निकलकर बड़ा होते जरूर देखा। वह दोनों माता-पिता के परोसे अनगिनत कीड़ों और अनाज की खुराक से तेजी से बड़ा हो गया।
अगले तीन हफ्तों तक वह घोंसले के पास ही रहा। वह कभी एक शाखा से दूसरी शाखा पर कूदता था, तो कभी अपने कमजोर, विकासशील पंखों की मदद से छोटी सी उड़ान भर कर बाजू वाले पेड़ पर बैठ जाया करता था।
रोजाना इस प्रकार का अभ्यास करने के बाद एक दिन उसने आजादी की उड़ान भर ली। जीवन ऐसा ही है।
यहां एक असफल होता है तो दूसरा सफल, भले ही दोनों ने एक बराबर मेहनत की हो। मार्च से सितंबर तक पीछे मुड़कर देखूं तो मुझे एहसास होता है कि मुझे बर्ड वॉचिंग का बहुत समृद्ध अनुभव हुआ है, फिर चाहे वह मेरे घर की दीवार पर पानी के बर्तन में नहाते हुए कालासीर बुलबुल (red-vented bulbul) को देखना हो, या फिर एक शिकारा (shikra) से बचने के लिए रोमांचकारी हवाई करतब दिखाने वाले अबाबील (little swift) को देखना।
जैसे-जैसे देश लॉकडाउन के चंगुल से खुल रहा है और बर्ड वॉचिंग के लिए फिर से बाहर जाना संभव हो रहा है, प्रवासी पक्षी भी वापस आ रहे हैं। अभी से मैं गुलाबी मैना (rosy starling) के झुंड को संध्या के समय आकाश में हवाई पैटर्न बनाते हुए देख रहा हूं।
यह पक्षी हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं, यदि हमारे पास उन्हें देखने के लिए थोड़ा समय हो, फिर चाहे वह हमारे घर की बालकनी से ही क्यों न हो !
लेखक के बारे में -
हितार्थ रावल - जामनगर, गुजरात के मूल निवासी हैं। वे वर्तमान में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, भोपाल से वन प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर रहे हैं।
यह श्रंखला 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
[email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
क्या आपने कभी गौर किया है कि शायद ही कोई गौरैया (sparrow) आजकल आपके घर में प्रवेश करती है, और शायद ही आपको पंखे को बंद करने के लिए दौड़ने की आवश्यकता होती है, ताकि वह घायल न हो?
लॉकडाउन के दौरान जब हम सब अपने अपने घरों में बंद थे, तब एक हास्यास्पद एक्शन फिल्म देखते हुए मुझे यह एहसास हुआ कि इस तरह की घटनाएं, जो मेरे बचपन में बहुत आम थी, अब बहुत ही दुर्लभ हो गई हैं। लेकिन, अगर हम केवल थोड़ा ज़्यादा अवलोकन करें, थोड़ा अधिक सुनें, तो पाएंगे कि हमारे आसपास एक अद्भुत नाटक खेला जा रहा है।
हालांकि मैं बर्ड वॉचिंग अक्सर करता हूं, वह आमतौर पर घर के बाहर होता है, कभी-कभार घर से कुछ पक्षी दिखाई देते हैं। लेकिन लॉकडाउन ने मुझे अपने घर के आसपास पक्षियों का विस्तृत निरीक्षण करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। उसका लाभ उठाते हुए, मैंने अपनी पसंद के हथियार- दूरबीन और मर्लिन बर्ड आईडी मोबाइल ऐप- थामे, और बालकनी बर्डिंग की यात्रा पर निकल गया।
मार्च के मध्य में, जब कोविड-19 देश में अपने पैर जमा रहा था और देश लॉकडाउन में प्रवेश कर रहा था, तब भी मैं सर्दियों के प्रवासी पक्षियों को देख सकता था । कुंज (demoiselle crane) के झुंडों का लालित्य मेरे सिर के ऊपर से रक्स करता सा गुजरता था।
कुछ झुंड महज चंद पक्षियों से बने हुए होते थे, तो कुछ सैकड़ों से, मगर सारे थर्मल कॉलम (उष्ण हवा की धारा) की मदद से मंडराते हुए ऊंचाई हासिल कर अपनी तीव्र ट्रम्पेटिंग (कलरव) से हंगामा मचाया करते थे। उनके साथ कभी कभी पेलिकन (pelican) के समूह भी होते था।
कुंजों की ट्रम्पेटिंग (कलरव) का कोलाहल मेरी छत पर अप्रैल के मध्य तक बना रहा। तत्पश्चात सारे कुंज हिमालय को पार करके मंगोलिया, चीन और उत्तरी एशिया के अन्य भागों में अपने प्रजनन स्थलों को चले गए।
रात्रि अपने साथ पक्षियों का एक नया समाज लेकर आती है।
स्ट्रीट लाइट चालू होने के कुछ ही मिनटों बाद, एक खूसटिया (धब्बेदार उल्लू – spotted owlet) मेरे घर के ठीक सामने लैंप के ऊपर लगे बिजली के तार पर बैठ जाया करता था। जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ता, पतंगे और झींगुर दीपक की ओर आकर्षित होते थे, जिन पर लपकने के लिए वह उल्लू तैयार रहता था।
उल्लू का हवा में कीड़े पकड़ कर तार पर वापस बैठ जाना, कभी कीट को पूरा ही निगल जाना, तो कभी खाने से पहले बेरहमी से उसके पंख तोड़ना और तार पर पटककर बेहोश करना- यह देखना मेरे लिए रोज़ शाम का अनुष्ठान बन गया।
जून की एक सुबह, अपने घर के पीछे एक छोटे से खेत में चलते हुए, मैंने एक टिटिहरी (red-wattled lapwing) की चिड़चिड़ी आवाज सुनी। आस पास ढूंढा तो पाया कि वह जमीन पर बने मिट्टी और कंकड़ के एक छोटे से टीले से दूर भाग रही थी। वह मिट्टी का टीला एक घोंसला था, जिसमें मिट्टी जैसे रंग के चार अंडे थे। उस दिन के बाद से, मैं प्रतिदिन जाकर उस घोंसले को देखा करता था।
मैंने देखा कि नर और मादा दोनों अंडों को बारी-बारी से सेते थे, यहां तक कि दोपहर की चिलचिलाती धूप में भी। उसी समय के आसपास, मुझे खेत के दूर कोने में एक पेड़ पर एक कौआ (house crow) का घोंसला भी मिला था, जिसे मैं अपने घर की छत से अपनी दूरबीन से देख सकता था।
मैंने पाया कि कौए संवेदनशील और समर्पित माता-पिता होते हैं, और अंडों की रक्षा करने के लिए घोसले में हर वक्त एक कौआ रहता ही है। टिटिहरी के अंडों से 28 से 30 दिनों के भीतर चूजे निकल जाते हैं, और कौए के अंडे से 14 से 20 दिनों में। इसलिए, मैं बड़ी ही आतुरता से दोनों प्रजातियों के चूजों को बड़े होते और उड़ना सीखते हुए देखने के लिए इंतजार कर रहा था।
मैं बरसात के दौरान एक कौए को पेड़ पर अपने घोंसले में बैठे हुए देख सकता था
- फोटो : हितार्थ रावल
मुझे माता-पिता की चूजों के साथ के व्यवहार की भी तुलना करनी थी। लेकिन, अफसोस, एक आपदा आ गई। मानसून ने अचानक ही अपने तेवर दिखा दिए। दो दिनों तक अंधाधुन बरसात हुई, और पूरा खेत पानी में डूब गया।
मैं बरसात के दौरान एक कौए को पेड़ पर अपने घोंसले में बैठे हुए देख सकता था। वह बारिश में भीगते हुए अंडो की रक्षा कर रहा था। बारिश कम होते ही मैं टिटिहरी के घोंसले की जांच करने के लिए गया, लेकिन वह पानी में बह गया था। सिर्फ एक हफ्ते में ही उन अंडो से छोटे-छोटे मासूम चूजे निकल गए होते, मगर कुदरत को कुछ और मंज़ूर था।
मुझे बहुत दुःख हुआ। मगर वह आपदा कुछ के लिए एक अवसर था। खेत में एकत्रित पानी अन्य पक्षियों की एक पूरी फौज लेकर आई: आइबिस (ibis), बगुले (herons and egrets), काले पंखों वाले स्टिल्ट (black-winged stilts) और यहां तक की बतख (spot-billed duck) की एक जोड़ी भी। कुछ दिनों तक बरसाती मेंढकों और कीड़ों पर जमकर दावत उड़ाई गई।
मैं नही जानता कि टिटिहरी के उस जोड़े ने इस दावत में भाग लिया था या नहीं। उनकी प्रजाति के कुछ पक्षी जरूर आए थे, मगर उनमें से उस जोड़े को पहचान पाना नामुमकिन था। बहरहाल, मैंने कौए के एक चूज़े को अंडे से निकलकर बड़ा होते जरूर देखा। वह दोनों माता-पिता के परोसे अनगिनत कीड़ों और अनाज की खुराक से तेजी से बड़ा हो गया।
अगले तीन हफ्तों तक वह घोंसले के पास ही रहा। वह कभी एक शाखा से दूसरी शाखा पर कूदता था, तो कभी अपने कमजोर, विकासशील पंखों की मदद से छोटी सी उड़ान भर कर बाजू वाले पेड़ पर बैठ जाया करता था।
रोजाना इस प्रकार का अभ्यास करने के बाद एक दिन उसने आजादी की उड़ान भर ली। जीवन ऐसा ही है।
यहां एक असफल होता है तो दूसरा सफल, भले ही दोनों ने एक बराबर मेहनत की हो। मार्च से सितंबर तक पीछे मुड़कर देखूं तो मुझे एहसास होता है कि मुझे बर्ड वॉचिंग का बहुत समृद्ध अनुभव हुआ है, फिर चाहे वह मेरे घर की दीवार पर पानी के बर्तन में नहाते हुए कालासीर बुलबुल (red-vented bulbul) को देखना हो, या फिर एक शिकारा (shikra) से बचने के लिए रोमांचकारी हवाई करतब दिखाने वाले अबाबील (little swift) को देखना।
जैसे-जैसे देश लॉकडाउन के चंगुल से खुल रहा है और बर्ड वॉचिंग के लिए फिर से बाहर जाना संभव हो रहा है, प्रवासी पक्षी भी वापस आ रहे हैं। अभी से मैं गुलाबी मैना (rosy starling) के झुंड को संध्या के समय आकाश में हवाई पैटर्न बनाते हुए देख रहा हूं।
यह पक्षी हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं, यदि हमारे पास उन्हें देखने के लिए थोड़ा समय हो, फिर चाहे वह हमारे घर की बालकनी से ही क्यों न हो !
लेखक के बारे में -
हितार्थ रावल - जामनगर, गुजरात के मूल निवासी हैं। वे वर्तमान में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, भोपाल से वन प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर रहे हैं।
यह श्रंखला 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
[email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।