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कारगिल शहीद परविंदर के माता-पिता परविंदर की फोटो दिखाते हुए
- फोटो : AMAR UJALA
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उन्हानी के शहीद प्रविंद्र का नाम करगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक है। प्रविंद्र ने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति दे दी। शहीद प्रविंद्र की शहादत के बाद उनके माता-पिता बेहद अकेले हो गए हैं। अकेला बेटा देश पर कुर्बान करने वाले यह माता- पिता दवाइयों के लिए भी मोहताज हो गए हैं। बीमार होने पर कोई देवा देने वाला तक नहीं। जिस घर में पौते पोतियों का शोरगुल गूंजना था अब वहां वीरानगी छाई है। प्रविंद्र की शहादत के बाद उसकी पत्नी भी छोड़कर चली गई। आंखों में आंसू लिए बुजुर्ग दंपति ने कहा बेटा नहीं हमारा तो पूरा परिवार ही शहीद हो गया। शहीद प्रविंद्र सिंह की मां संतरा ,पिता राजेंद्र सिंह ने बताया कि एक बेटा, दो बेटियां हुए। प्रविंद्र का जन्म एक अप्रैल 1977 में हुआ। वह बचपन से ही नटखट था। प्रविंद्र के पिता राजेंद्र ने कहा मैंने भी आर्मी में सेवाएं दी भी हैं। जब मैं छुट्टी आता था तब प्रविंद्र को सेना के बारे में बताया करता था। प्रविंद्र ने शुरुआती शिक्षा अपने नाना के घर से ली उसके बाद आठवीं नवीं कक्षा में कनीना में स्थित राजकीय स्कूल में पढ़ाई की। 1997 में दादरी बीआरओ की खुली भर्ती थी। उस खुली भर्ती में प्रविंद्र भर्ती के लिए गया। अपनी योग्यता के बल पर वह सेना में भर्ती हो गया। आर्मी में भर्ती होने पर प्रविंद्र बहुत खुश था। उसने अपने परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों में खूब मिठाइयां बांटी थी। दोनों बहन उर्मिला, मंजू को कहता था कि रक्षाबंधन आएगा तब आर्मी से छुट्टी लेकर आप लोगों के पास जरूर आऊंगा। भर्ती होने के बाद वह नासिक चला गया। उसे सेना में भर्ती हुए तकरीबन 2 वर्ष हो गए थे। तब वह 2 महीने की छुट्टी लेकर आया था। उसी वक्त उसकी शादी कर दी गई थी। तभी सेना से आर्डर आ गए कि प्रविंद्र की कारगिल युद्ध में ड्यूटी लगी है। प्रमेंद्र अपना बैग पैक करके सीधा ड्यूटी स्थल पहुंच गया। जाने से पहले कह कर गया था की मैं जल्दी ही लौट कर आऊंगा। बस हमें तो यह खबर मिली कि प्रविंद्र शहीद हो गया। बेटे के शहीद होने पर उसकी पत्नी अपने पिता के घर से केवल 1 दिन के लिए यहां पर आई थी। उसके बाद आज तक यहां कभी नहीं आई। उसकी पत्नी को एक पेट्रोल पंप भी मिला था। अब हमें पता चला है कि उसने दूसरी शादी कर ली उसके दो बच्चे भी हैं। हमारी देखरेख करने वाला यहां पर कोई नहीं है। प्रविंद्र की मां को पेंशन में 30 प्रतिशत मिलता है। बाकी सब कुछ सुख सुविधा उसकी पत्नी को मिलते हैं। हम लोग बुजुर्ग हैं कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं लगा सकते। प्रशासन -सरकार 15 अगस्त, 26 जनवरी पर भी शहीदों को याद नहीं करती। प्रशासन भी कभी शहीदों के परिजनों की सुध नहीं लेता।
उन्हानी के शहीद प्रविंद्र का नाम करगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक है। प्रविंद्र ने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति दे दी। शहीद प्रविंद्र की शहादत के बाद उनके माता-पिता बेहद अकेले हो गए हैं। अकेला बेटा देश पर कुर्बान करने वाले यह माता- पिता दवाइयों के लिए भी मोहताज हो गए हैं। बीमार होने पर कोई देवा देने वाला तक नहीं। जिस घर में पौते पोतियों का शोरगुल गूंजना था अब वहां वीरानगी छाई है। प्रविंद्र की शहादत के बाद उसकी पत्नी भी छोड़कर चली गई। आंखों में आंसू लिए बुजुर्ग दंपति ने कहा बेटा नहीं हमारा तो पूरा परिवार ही शहीद हो गया। शहीद प्रविंद्र सिंह की मां संतरा ,पिता राजेंद्र सिंह ने बताया कि एक बेटा, दो बेटियां हुए। प्रविंद्र का जन्म एक अप्रैल 1977 में हुआ। वह बचपन से ही नटखट था। प्रविंद्र के पिता राजेंद्र ने कहा मैंने भी आर्मी में सेवाएं दी भी हैं। जब मैं छुट्टी आता था तब प्रविंद्र को सेना के बारे में बताया करता था। प्रविंद्र ने शुरुआती शिक्षा अपने नाना के घर से ली उसके बाद आठवीं नवीं कक्षा में कनीना में स्थित राजकीय स्कूल में पढ़ाई की। 1997 में दादरी बीआरओ की खुली भर्ती थी। उस खुली भर्ती में प्रविंद्र भर्ती के लिए गया। अपनी योग्यता के बल पर वह सेना में भर्ती हो गया। आर्मी में भर्ती होने पर प्रविंद्र बहुत खुश था। उसने अपने परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों में खूब मिठाइयां बांटी थी। दोनों बहन उर्मिला, मंजू को कहता था कि रक्षाबंधन आएगा तब आर्मी से छुट्टी लेकर आप लोगों के पास जरूर आऊंगा। भर्ती होने के बाद वह नासिक चला गया। उसे सेना में भर्ती हुए तकरीबन 2 वर्ष हो गए थे। तब वह 2 महीने की छुट्टी लेकर आया था। उसी वक्त उसकी शादी कर दी गई थी। तभी सेना से आर्डर आ गए कि प्रविंद्र की कारगिल युद्ध में ड्यूटी लगी है। प्रमेंद्र अपना बैग पैक करके सीधा ड्यूटी स्थल पहुंच गया। जाने से पहले कह कर गया था की मैं जल्दी ही लौट कर आऊंगा। बस हमें तो यह खबर मिली कि प्रविंद्र शहीद हो गया। बेटे के शहीद होने पर उसकी पत्नी अपने पिता के घर से केवल 1 दिन के लिए यहां पर आई थी। उसके बाद आज तक यहां कभी नहीं आई। उसकी पत्नी को एक पेट्रोल पंप भी मिला था। अब हमें पता चला है कि उसने दूसरी शादी कर ली उसके दो बच्चे भी हैं। हमारी देखरेख करने वाला यहां पर कोई नहीं है। प्रविंद्र की मां को पेंशन में 30 प्रतिशत मिलता है। बाकी सब कुछ सुख सुविधा उसकी पत्नी को मिलते हैं। हम लोग बुजुर्ग हैं कोर्ट कचहरी के चक्कर नहीं लगा सकते। प्रशासन -सरकार 15 अगस्त, 26 जनवरी पर भी शहीदों को याद नहीं करती। प्रशासन भी कभी शहीदों के परिजनों की सुध नहीं लेता।
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