चंडीगढ़। पीजीआई के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि बच्चों की बोली उनके परिजन ही बिगाड़ रहे हैं। संस्थान के स्पीच एंड हियरिंग सेंटर में आने वाले बच्चों की तोतली जुबान की समस्या पर अध्ययन करके पता चला है कि जब बच्चे बोलने की स्टेज में होते हैं, तो मां-पिता समेत अन्य परिजन प्यार में बच्चों से तोतली जुबान में बात करते हैं। नतीजा होता है कि बच्चे लंबे समय तक तुतलाते रहते हैं। कई बार तो ऐसी स्थिति बन जाती है कि उनको पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट केे पास तक ले जाना पड़ता है।
पीजीआई के ईएनटी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं स्पीच एंड हियरिंग सेंटर के प्रमुख डॉ. संजय मुंजाल कहते हैं कि उनके पास एक महीने में तकरीबन बीस से पच्चीस परिजन अपने बच्चों के सही ठंग से न बोलने की आदत को दूर कराने के लिए पहुंचते हैं। डॉ.मुंजाल कहते हैं कि उन्होंने अपने सेंटर में पिछले कई सालों से अध्ययन के दौरान पाया कि अस्सी फीसदी बच्चों का ढंग से न बोल पाना अपने परिजनों की ही वजह से होता है। उन्होंने स्पष्ट किया बच्चा जब बोलने की स्टेज में होता है तो परिजन उससे तुतला कर बोलते हैं, नतीजा होता है कि बच्चे भी तुतलाना सीख जाते हैं और यह उनकी आदत में शुमार हो जाता है। डॉ. मुंजाल ने इस दौरान बच्चों के परिजनों को जब बताया कि उनको अपने बच्चे से तुतला कर बात नहीं करनी चाहिए तो ऐसे बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। पीजीआई की पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट डॉ. आदर्श कोहली का कहना है कि ईएनटी विभाग से रेफर होकर दर्जनों बच्चे उनकी ओपीडी में पहुंचते हैं। तुतलाने और ढंग से न बोल पाने पर उनका आई क्यू स्तर भी कम हो जाता है।
3-5 वर्ष तक के बच्चे प्रभावित
जो बच्चे तुतलाने और बोलने की समस्या को लेकर स्पीच एंड हियरिंग सेंटर में पहुंच रहे हैं उनकी उम्र तीन से पांच साल तक की होती है।
क्या करें कि बच्चा न तुतलाए-
-बच्चों से नार्मल भाषा में बात करें।
-खासकर माताओं को अपनी भाषा को ज्यादा संयमित रखना चाहिए।
-बच्चे के साथ बोलचाल में सामान्य व्यवहार रखें।
-अगर बच्चा अपनी बोली में बात करता है तो उससे उसकी जुबान न बोलकर सही ढंग से उच्चारण कराकर बात करें।
-पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं तो काम से वापस आने के बाद बच्चे से खेलें और बात अवश्य करें।
-ऐसा न करने पर पता चला है कि बच्चों को बाद में बोलने में दिक्कत आती है।
चंडीगढ़। पीजीआई के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि बच्चों की बोली उनके परिजन ही बिगाड़ रहे हैं। संस्थान के स्पीच एंड हियरिंग सेंटर में आने वाले बच्चों की तोतली जुबान की समस्या पर अध्ययन करके पता चला है कि जब बच्चे बोलने की स्टेज में होते हैं, तो मां-पिता समेत अन्य परिजन प्यार में बच्चों से तोतली जुबान में बात करते हैं। नतीजा होता है कि बच्चे लंबे समय तक तुतलाते रहते हैं। कई बार तो ऐसी स्थिति बन जाती है कि उनको पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट केे पास तक ले जाना पड़ता है।
पीजीआई के ईएनटी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं स्पीच एंड हियरिंग सेंटर के प्रमुख डॉ. संजय मुंजाल कहते हैं कि उनके पास एक महीने में तकरीबन बीस से पच्चीस परिजन अपने बच्चों के सही ठंग से न बोलने की आदत को दूर कराने के लिए पहुंचते हैं। डॉ.मुंजाल कहते हैं कि उन्होंने अपने सेंटर में पिछले कई सालों से अध्ययन के दौरान पाया कि अस्सी फीसदी बच्चों का ढंग से न बोल पाना अपने परिजनों की ही वजह से होता है। उन्होंने स्पष्ट किया बच्चा जब बोलने की स्टेज में होता है तो परिजन उससे तुतला कर बोलते हैं, नतीजा होता है कि बच्चे भी तुतलाना सीख जाते हैं और यह उनकी आदत में शुमार हो जाता है। डॉ. मुंजाल ने इस दौरान बच्चों के परिजनों को जब बताया कि उनको अपने बच्चे से तुतला कर बात नहीं करनी चाहिए तो ऐसे बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। पीजीआई की पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट डॉ. आदर्श कोहली का कहना है कि ईएनटी विभाग से रेफर होकर दर्जनों बच्चे उनकी ओपीडी में पहुंचते हैं। तुतलाने और ढंग से न बोल पाने पर उनका आई क्यू स्तर भी कम हो जाता है।
3-5 वर्ष तक के बच्चे प्रभावित
जो बच्चे तुतलाने और बोलने की समस्या को लेकर स्पीच एंड हियरिंग सेंटर में पहुंच रहे हैं उनकी उम्र तीन से पांच साल तक की होती है।
क्या करें कि बच्चा न तुतलाए-
-बच्चों से नार्मल भाषा में बात करें।
-खासकर माताओं को अपनी भाषा को ज्यादा संयमित रखना चाहिए।
-बच्चे के साथ बोलचाल में सामान्य व्यवहार रखें।
-अगर बच्चा अपनी बोली में बात करता है तो उससे उसकी जुबान न बोलकर सही ढंग से उच्चारण कराकर बात करें।
-पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं तो काम से वापस आने के बाद बच्चे से खेलें और बात अवश्य करें।
-ऐसा न करने पर पता चला है कि बच्चों को बाद में बोलने में दिक्कत आती है।