अमर उजाला की अपील, वास्तविक स्थिति जाने बिना बहकावे में न आए
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 14 मार्च, 2011 को सुखना के कैचमेंट एरिया में निर्माण पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। इसके बाद सोमवार को कार्यकारी चीफ जस्टिस एमएम कुमार एवं जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे में तय कैचमेंट एरिया को मान्य करते हुए उस तारीख के बाद के निर्माण को बिना नोटिस गिराने के निर्देश देते हुए आम लोगाें को जागरूक करने के लिए मीडिया कैंपेन चलाने को कहा। अमर उजाला अपने दायित्व को समझते हुए आम लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि सुखना का वास्तविक कैचमैंट एरिया क्या है? अगर आप इस एरिया से बाहर रहते हैं तो न डरने की जरूरत न किसी बहकावे में आने की।
चंडीगढ़। सुखना कैचमेंट एरिया को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देश के बाद मंगलवार को मनसा देवी कांपलेक्स, सकेतड़ी, महादेवपुर, कैंबवाला, कांसल, नयागांव, खुड्डाअली शेर में अदालत के निर्देश के बाद कुछ भी निर्माण कर रहे लोगों में खलबली सी मच गई। कई जगह चल रहा निर्माण कार्य रुक गया। दरअसल कैचमेंट एरिया के बारे में हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी तनु बेदी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पंजाब सरकार कैचमेंट एरिया में राज्य की भूमि न होने की बात कर गुमराह कर रही है। उन्होंने कांसल फोरेस्ट और सुखना वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का 277 हेक्टियर एरिया पंजाब की भूमि में पड़ता है। उन्होंने इसके कैचमेंट एरिया के फोटोग्राफ भी हाईकोर्ट में पेश किए हैं।
इस बीच, हरियाणा के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव एसएस ढिल्लों ने बताया कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सुखना कैचमेंट एरिया में बने अवैध निर्माणों को तोड़ने को जो आदेश दिया है, उसके तहत हरियाणा क्षेत्र में एक भी निर्माण नहीं आता है। उन्होंने कहा कि सुखना कैचमेंट के हरियाणा क्षेत्र में पूरा प्लान पहले ही हाईकोर्ट में जमा करा रखा है और हुडा की प्लानिंग कैचमेंट क्षेत्र से बाहर है। हरियाणा के प्रधान मुख्य वन संरक्षक सीआर जोटरीवाल ने बताया कि सुखना कैचमेंट एरिया में पौधारोपण आदि पर दो करोड़ रुपये से ज्यादा का पैसा खर्च किया गया है, लेकिन कोई भी अवैध निर्माण नहीं है।
डॉ. बी सिंह ने करार दिया था डेथ वारंट
2003 में नयागांव निवासी डॉ. बी सिंह ने वक्त रहते ही सुखना के अस्तित्व के खतरे को उजागर कर दिया था। उन्होंने इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में सुखना के कैचमेंट एरिया में बेहिसाब बढ़ते निर्माण कार्य से सुखना के सूखने के खतरे को हाईकोर्ट के समक्ष रखा था। उन्हाेंने हरियाणा सरकार पर आरोप लगाया था कि प्रशासन विकास के नाम पर सुखना की तरफ जाने वाले बारिश के पानी और प्राकृतिक नालाें को रोक रहा है, जिस पर काबू नहीं पाया गया तो कुछ सालाें में ही सुखना पूरी तरह सूख जाएगी। उन्हाेंने याचिका में हरियाणा के डेवलपमेंट प्लॉन को डेथ वारंट करार दिया था।
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चंडीगढ़ प्रशासन जिम्मेवार
डॉ. बी. सिंह बनाम केंद्र सरकार के इस मामले में चंडीगढ़ प्रशासन ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दलील दी थी कि सुखना के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं है और कभी भी यह सुखना झील सूख नहीं सकती। प्रशासन ने हाईकोर्ट से आग्रह किया था कि सेव सुखना नाम की इस याचिका को खारिज कर दिया जाए, चूंकि इस याचिका कोई औचित्य नहीं है। हालांकि, तत्कालीन चीफ जस्टिस बीके राय ने इस मामले में स्ट्रक्चरल स्ट्रेंथ और पानी के डिस्चार्ज पर पूरी रिपोर्ट मांगी थी। ...........
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना
सर्वे ऑफ इंडिया के जिस नक्शे पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कैचमेंट एरिया का आधार बनाया है, उस नक्शे पर 2003 में खुद हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ अपनी सहमति दे चुके थे, लेकिन जैसे जैसे वक्त गुजरा सभी नक्शे से पल्ला झाड़ने लगे। इस पूरे मामले में स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) सुप्रीम कोर्ट में डाली गई थी, जिसके बाद 26 अप्रैल 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद निर्माण कार्य चलता रहा।
इन जगहों पर पड़ेगा असर
1. मोहाली का कांसल और नया गांव का कुछ हिस्सा
2. चंडीगढ़ का कैंबवाला और खुड्डा अली शेर
3. पंचकूला में महादेवपुर और सकेतड़ी का हिस्सा