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Raipur : बीजापुर का आईटीआर बना विलुप्त गिद्धों का बसेरा, इसलिए बढ़ी संख्या

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, छत्तीसगढ़ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Sun, 05 Feb 2023 12:51 AM IST
गिद्धों का बसेरा...
गिद्धों का बसेरा... - फोटो : अमर उजाला

दुनियाभर में पाए जाने वाले गिद्धों की संख्या अब मात्र 1 प्रतिशत बची हुई है। 99 प्रतिशत गिद्ध खत्म हो चुके हैं। विलुप्ति की कगार पर पहुंचे इन दुर्लभ गिद्धों की कुछ प्रजातियां इन दिनों छत्तीसगढ़ के बीजापुर स्थित इंद्रावती टाइगर रिजर्व क्षेत्र में देखी जा रही हैं। 



हिमालय का राजा, जिसकी बादशाहत काबुल से लेकर भूटान तक है, वो हिमालयन ग्रीफन वल्चर बीजापुर के इन्द्रावती टाइगर रिजर्व क्षेत्र में देखा जा रहा है। इसके अलावा वाइट रम्पड़ वल्चर जिसे बंगाल का गिद्ध कहा जाता है जो अफ्रीका और दक्षिण पूर्वी एशिया में पाया है उसका बसेरा भी इन दिनों  इन्द्रावती टाइगर रिज़र्व है।


बताते हैं कि वाइट रम्पड़ वल्चर की संख्या में 99.9% तक की कमी आई  है। लेकिन बीजापुर के टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में ये दोनों दुर्लभ प्रजातियां अपने प्राकृतिक आवास में हैं। यहां के जंगलो में इनके घोंसले भी पाए गये हैं। इसके अलावा इंडियन वल्चर भी यहां मौजूद हैं। ये दुर्लभ प्रजातियों के गिद्ध हैं। कुछ दशक पहले तक इनकी संख्या हजारों में थी लेकिन अब यह मात्र डेढ़ सौ से दो सौ के करीब है।

इंद्रावती टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में इतने गिद्धों के बचे रहने के पीछे यहां के आदिवासी अंचलों में जड़ी बूटियों के उपयोग को माना जाता है जिसका गिद्धों पर बुरा असर नही पड़ता। सबसे ज्यादा घातक डायक्लोफेनेक ड्रग है जिसके चलते किडनी फेल होने से गिद्धों की मौत का दावा जानकर करते हैं। इन्द्रावती टाइगर रिज़र्व बीजापुर के डिप्युटी डायरेक्टर, गणवीर धम्मशील बताते है कि भारत मे गिद्धों की संख्या लगभग विलुप्ति की कगार पर चली गई थी लेकिन इन दिनों बीजापुर के इंद्रावती टाइगर रिजर्व में विलुप्त हो रहे गिद्धों की तीन प्रजातियां हिमालयन वल्चर, वाइट रम्पड़ वल्चर व इंडियन वल्चर देखे जा रहे हैं।

यहां इनके घोंसले भी मौजूद हैं। इनकी संख्या 150 से 160 के करीब हैं। डिप्युटी डायरेक्टर धम्मशील ने आगे बताया कि इन गिद्धों की संख्या में वृद्धि करने लगातार ग्रामीणों से संपर्क साधा जा रहा है। उन्होंने बताया कि गिद्धों की विलुप्ति का मुख्य कारण डायक्लोफेनेक है। जिसे दवा के रूप में इस्तेमाल कर लोग मवेशियों को देते थे। जब गिद्ध मरे हुए जानवरों को खाते थे। उसके बाद से उनकी मृत्यु हुई और देश के कई प्रदेशों में इनकी संख्या कम हुई।

उन्होंने बताया कि गांव गांव प्रचार के माध्यम से यह पता लगाया जा रहा है कि कौन सी दवा इस्तेमाल किया जा रहा हैं। डिप्युटी डायरेक्टर धम्मशील के मुताबिक यहां गिद्धों के बचने का कारण ग्रामीणों द्वारा जड़ी बूटियों का उपयोग हैं। जिनकी वजह से वे बच रहे है और उनकी संख्या में भी वृद्धि हो रही है।

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