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पंजाब पुलिस की एसआईटी बरगाड़ी बेअदबी कांड के मुख्य साजिशकर्ता डेरामुखी गुरमीत राम रहीम और अन्य आरोपियों को जल्द गिरफ्तार करेगी। इसके लिए अदालत में जल्द चालान पेश किया जाएगा। शनिवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सिख नेताओं को 467 पन्नों की अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें बेअदबी की पूरी घटना का शुरुआत से क्रमबद्ध विवरण दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक बेअदबी के तीन मामलों में डेरामुखी मुख्य साजिशकर्ता हैं। उनके साथ उनके अनुयायी हर्ष पुरी, प्रदीप कलेर, संदीप बरेटा की गिरफ्तारी बाकी है। वर्ष 2007 से पहले डेरा सच्चा सौदा और सिख समुदाय में कोई विवाद नहीं था, लेकिन मई 2007 में जब डेरामुखी ने गुरु गोबिंद सिंह जी जैसी पोशाक पहनकर डेरा प्रेमियों को जाम-ए-इंसां पिलाने और अमृत छकाने की नकल की तो पूरे पंजाब ही नहीं बल्कि भारत और विश्व भर में बसे सिखों ने कड़ा विरोध किया। इस दौरान कई खूनी झड़पें हुईं और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया गया।
उस दौरान श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से हुकमनामा जारी कर डेरा प्रेमियों के साथ रोटी-बेटी का संबंध न रखने के आदेश दिए गए। वहीं सिखों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में डेरामुखी के खिलाफ बठिंडा के थाने में केस भी दर्ज किया गया। हुकमनामे के बाद डेरामुखी ने माफी भी मांगी लेकिन सिंह साहिबान ने माफी मांगने के तरीके पर ऐतराज जताते हुए उन्हें माफ करने से इनकार कर दिया। उसके बाद से डेरा सच्चा सौदा और सिख धार्मिक नेताओं के बीच तनाव बढ़ने लगा। सिख धर्म के प्रचारक, जिनमें भाई रणजीत सिंह ढडरियांवाले, संत बलजीत सिंह दादूवाल, भाई पंथप्रीत सिंह खालसा, भाई दलेर सिंह खेड़ीवाले, भाई हरजिंदर सिंह माझी ने अपने दीवानों पर डेरे के खिलाफ खुलकर प्रचार करना शुरू कर दिया।
संत दादूवाल को मारने पर राजी नहीं हुए डेरा प्रेमी
रिपोर्ट में कहा गया कि सिख धर्म प्रचारकों द्वारा डेरे के खिलाफ प्रचार से डेरा प्रेमी भी भड़क गए और वह सिख धर्म प्रचारकों द्वारा जहां भी कार्यक्रम रखा जाता, उस इलाके में पहुंचकर नाम चर्चा शुरू कर देते। इससे दोनों पक्षों के बीच तनाव और बढ़ता गया और कई बार दोनों पक्षों के बीच टकराव की घटनाएं भी हुईं। संत दादूवाल के काफिले पर भी हमला हुआ, जिसे लेकर 2009 में थाना जैतो में मुकदमा दर्ज किया गया। 2014 में डेरा सच्चा सौदा सिरसा की ओर से पंजाब स्टेट कमेटी के सदस्यों- हर्ष पुरी, संदीप बरेटा और प्रदीप कलेर को संत दादूवाल के कथित दुष्प्रचार को रोकने की हिदायत दी। इसके बाद सुरिंदर पाल सिंह के घर पर इलाके के डेरा प्रेमियों की एक बैठक रखी गई, जिसमें गोपाल कृष्ण, प्रदीप कुमार, सुखजिंदर सिंह उर्फ सन्नी, रणजीत सिंह उर्फ नीला और शक्ति सिंह मौजूद रहे। इसी बैठक में संत दादूवाल को मारने की योजना बनी, जिसमें डेरा प्रेमियों को सिख संगत बनकर उनके दीवान में जाना था। हालांकि इस योजना पर कोई भी डेरा प्रेमी सहमत नहीं हुआ और मोहिंदरपाल की योजना असफल हो गई।
फिल्म से प्रेमियों और सिखों के बीच दरार बढ़ी
2015 में डेरामुखी की फिल्म एमएसजी-1 रिलीज हुई तो पंजाब में इसका जमकर विरोध हुआ। लोगों के विरोध को देखते हुए पंजाब सरकार ने फिल्म पर पंजाब में प्रतिबंध लगा दिया। सरकार के इस फैसले ने डेरा प्रेमियों और सिखों के बीच दरार को और बढ़ा दिया।
सिख धर्मप्रचारकों ने बढ़ा दी टकराव की स्थिति
फरीदकोट के गांव पक्का में हरजिंदर सिंह माझी के दीवान के समय दोनों पक्षों में टकराव की स्थिति बनी, जिसे पुलिस ने समय रहते सुलझा लिया। इसके बाद गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला में गुरुद्वारा साहिब सभा में मार्च में माझी के दीवान का डेरा प्रेमियों ने विरोध कर दिया। तब मामला थाना बाजाखाना तक पहुंचा और पुलिस ने दोनों पक्षों को बुलाकर सुलह करा दी। तब यह फैसला भी हुआ कि हरजिंदर सिंह माझी अपने दीवान में डेरे के बारे में गलत प्रचार नहीं करेंगे। इसकी जिम्मेदारी गुरुद्वारा साहिब की कमेटी ने ली थी। 20 से 22 मार्च 2015 तक शाम 7 से रात 10 बजे तक रोजाना दीवान लगाए गए औैर नजदीकी गांवों की संगत भी दीवानों में पहुंची। पहले दो दिन तो शांति से गुजर गए लेकिन 22 मार्च को माझी ने दीवान के आखिरी दिन फिर डेरे के खिलाफ बोलना शुरू किया। उन्होंने संगत से कहा कि जो भी गुरु साहिब का सच्चा सिख है, वही उनके दीवान में बैठे और जिन्होंने अपने गले में धागे-तावीज या डेरे के लॉकेट पहने हुए हैं, वे जा सकते हैं। तब कई लोगों ने अपने गले से लॉकेट उतार दिए और कुछ ने गोलक के निकट रख दिए। कुछ लोगों ने लॉकेट दरियों के नीचे छिपा दिए जो अगले दिन दरियां हटाने पर मिले। इस पूरे प्रकरण का डेरा प्रेमियों ने जमकर विरोध किया।
ऐसे बनी पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की भूमिका
अंतिम रिपोर्ट के अनुसार डेरे की 25 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों ने प्रधान गोपाल कृष्ण से शिकायत की, जिन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें 45 सदस्यीय कमेटी के सदस्य मोहिंदरपाल बिट्टू से मिलने की सलाह दी। मोहिंदरपाल ने यह मामला नेशनल कमेटी के सदस्यों- हर्ष पुरी, प्रदीप कलेर और संदीप बरेटा के ध्यान में लाया तो उन्होंने फोन पर योजना बनाई। तीनों ने सारी घटना की जानकारी सिरसा डेरे के ओहदेदारों को भी दी। डेरे ने भी उक्त घटना का बदला सिखों को गुरु ग्रंथ साहिब को मिट्टी में मिलाकर लेने की सलाह दी। इसके बाद गुरुद्वारा बुर्ज जवाहर सिंह वाला से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का स्वरूप चोरी करने की घटना को अंजाम दिया गया। इस बारे में थाना बाजाखाना में 2 जून, 2015 को मुकदमा दर्ज किया गया। बरगाड़ी और बुर्ज जवाहर सिंह वाला में इस संबंध में भड़काऊ पोस्टर भी लगाए गए, जिनमें श्री गुरु ग्रंथ साहिब का स्वरूप चोरी करने बारे और पावन स्वरूप को ढूंढने वाले को 10 लाख रुपये सलाबतपुरा डेरे में दिए जाने की चुनौती दी गई गई थी। इस बारे में भी 25 सितंबर 2015 को मुकदमा दर्ज किया गया। बाद में उसी पावन स्वरूप के अंगों को खंडित करके बरगाड़ी की गलियों में बिखेर दिया गया। इस बारे में भी गोरा सिंह ग्रंथी के बयान कलमबद्ध करके मुकदमा दर्ज किया गया, जिसके आधार पर फरीदकोट के एसएसपी ने डायरेक्टर ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन पंजाब चंडीगढ़ को लिखा गया। इस मुकदमे में हर्ष पुरी, प्रदीप कलेर, संदीप बरेटा और डेरामुखी गुरमीत राम रहीम को मुख्य दोषी ठहराया गया लेकिन इस मामले में इनकी अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई। इन्हें गिरफ्तार करने के लिए अदालत में अलग चालान पेश किया जाएगा।