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पर्यावरण दिवस: कभी इमली, अमलतास रोड, मरोड़ फली और महोगनी रोड से जाना जाता था चंडीगढ़

रिशु राज सिंह, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Mon, 05 Jun 2023 08:36 AM IST
सार

आजादी के बाद वर्ष 1952 से चंडीगढ़ का निर्माण शुरू हुआ। शहर में पेड़ लगाने के लिए सबसे बड़ा अभियान 1962 से शुरू हुआ, जो 1975 तक चला। इस दौरान शहर के अलग-अलग सड़कों पर अलग-अलग पेड़ लगाए गए, जैसे कि इमली, पलाश, अमलतास, मरोड़ फली, महोगनी, तुंग, बालम खीरा, पिलखन आदि।

Many years ago, streets of Chandigarh were known by names of trees lining them
chandigarh road

विस्तार
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चंडीगढ़ के निर्माताओं को पेड़ों से कितना लगाव था, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बहुत साल पहले चंडीगढ़ की सड़कों को उसके किनारे लगे पेड़ों के नाम से जाना जाता था। किसी सड़क को इमली, अमलतास रोड, मरोड़ फली और महोगनी रोड कहा जाता था। ये शहर के निर्माताओं की सोच थी कि उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से सड़क के किनारे पेड़ लगाए थे। जब वह पेड़ बड़े हुए तो उन्हीं के नाम पर सड़कों के नाम पड़ गए।


आजादी के बाद वर्ष 1952 से चंडीगढ़ का निर्माण शुरू हुआ। शहर में पेड़ लगाने के लिए सबसे बड़ा अभियान 1962 से शुरू हुआ, जो 1975 तक चला। इस दौरान शहर के अलग-अलग सड़कों पर अलग-अलग पेड़ लगाए गए, जैसे कि इमली, पलाश, अमलतास, मरोड़ फली, महोगनी, तुंग, बालम खीरा, पिलखन आदि। अलग-अलग पेड़ लगाने के पीछे सोच थी कि अगर किसी एक पेड़ की प्रजाति में कोई डिजीज आ भी जाए तो चंडीगढ़ की हरियाली पर कोई फर्क न पड़े। इस तरह ही, सेक्टर-26 से सेक्टर-7 की रोड को पहले इमली रोड कहा जाता था। सेक्टर-22 किरण सिनेमा वहां उसे भी इमली रोड के नाम से जाना जाता था। सेक्टर-28 और सेक्टर-29 को डिवाइड करने वाली रोड उसे महोगनी रोड के नाम से जाना जाता था लेकिन धीरे-धीरे समय का चक्र बदला, अधिकारी बदले और 1985 के दौरान चंडीगढ़ में चकरसिया के पेड़ लगाए जाने लगे। अब भी जो पेड़ काटे जाते हैं, उनकी जगह ज्यादातर चकरसिया के पेड़ ही लगाए जाते हैं।


दिखने में हरे-भरे और जल्दी बड़े होते हैं चकरसिया के पेड़
पर्यावरण विशेषज्ञ राहुल महाजन ने बताया कि चंडीगढ़ की सड़कों पर अब जो पेड़ दिखाई देते हैं उनमें से ज्यादा चकरसिया के पेड़ हैं। ये पेड़ साल 1985 के बाद लगाए गए थे और इन पेड़ों की औसत उम्र 50 साल के करीब है। इस पेड़ को लगाने के पीछे का सबसे बड़ा कारण ये था कि चकरसिया का पेड़ बहुत तेजी से बढ़ता है और दिखने में काफी हरा-भरा होता है लेकिन इस पर कोई फल होता है न ही कोई फूल। इनकी लकड़ियां भी ज्यादा अच्छी नहीं होती।

अंदर से खोखले हो रहे हैं पेड़
आज अगर आप चंडीगढ़ की हरियाली को देखकर खुश होते हैं तो आपको जरा इन पेड़ों को ध्यान से देखने की जरूरत है। सच्चाई ये है कि शहर से आधे से ज्यादा पेड़ों को दीमक लगे हुए हैं और वह बाहर से भले हरा-भरा दिखाई दे रहे हैं लेकिन वो अंदर से पूरी तरह से खोखले होते जा रहे हैं। यही वजह है कि अब जब भी तेज आंधी आती है तो उसके अगले दिन अखबारों में पेड़ों के गिरने की खबर दिखाई देती है। पिछले एक साल में पेड़ गिरने से दो लोगों की मौत भी हो चुकी है।

सड़कों पर लगे हैं यह पौधे
- सेक्टर-26 से सेक्टर-7 की सड़क को पहले इमली रोड कहा जाता था
- सेक्टर-28 और 29 को डिवाइड करने वाली सड़क को महोगनी रोड के नाम से जाना जाता था
- सेक्टर-27 और 28 की सड़क थी अर्जुन सड़क। अभी भी लगे हैं अर्जुन के पेड़।
- पेक वाली सड़क पर हैं मरोड़ फली के पेड़
- सेक्टर-22 और 23 की सड़क पर है बालम खीरा के पेड़
- सेक्टर-22 किरण सिनेमा, उसे भी इमली रोड के नाम से जाना जाता था। हालांकि अब वहां इमली के पेड़ नहीं बचे।
- सेक्टर-19, 18 और 7 की सड़क पर हैं पिलखन के पेड़
- राजभवन से पेक की तरफ जाने वाली सड़क पर हैं तून के पेड़
- सेक्टर-16 की अंदरूनी सड़कों पर लगे हैं अमलतास के पेड़

एक नजर में पेड़ों की स्थिति 
नगर निगम - 1.65 लाख पेड़
प्रशासन - 21 हजार 500 पेड़
स्कूल, कॉलेज व अन्य कैंपस - करीब 1.50 लाख पेड़
(पेड़ों की हुई वर्ष 2016 की गणना के अनुसार)
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