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Interview of President of Sahitya Akademi Madhav Kaushik
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Chandigarh: साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक रोज पढ़ते हैं 100 पेज, कहा-बिना पढ़े साहित्यकार कैसे बनेंगे
कविता बिश्नोई, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Sun, 26 Mar 2023 11:46 AM IST
सार
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हिंदी में स्नातकोत्तर, बीएड, अनुवाद में पीजी डिप्लोमा और साहित्य वाचस्पति की डिग्री हासिल कर चुके माधव कौशिक का मानना है कि साहित्य में निखार लाने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है। बिना पढ़े कोई साहित्यकार नहीं बन सकता है।
एक सत्य के रूप अनेक लेकिन समय अंगूठा टेक, दिल का खुला हुआ आंगन भी निकला सिमटा-सिकुड़ा... मुखड़ा कब कहता है दुखड़ा। यह पंक्तियां हैं चंडीगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार माधव कौशिक की। कविता, गजल, कहानी, आलोचना, नवगीत समेत अनेक विधाओं के महारथी माधव कौशिक को हाल ही में साहित्य अकादमी का अध्यक्ष चुना गया है।
चंडीगढ़ के साहित्यकार के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इस पद को सुशोभित कर चुके हैं। पंडित नेहरू को साल 1963 में साहित्य अकादमी दिल्ली का पहला अध्यक्ष चुना गया था।
आइनों के शहर में, सारे सपने बागी हैं, किरण सुबह की, सपने खुली निगाहों के, हाथ सलामत रहने दो और नई सदी का सन्नाटा जैसे चर्चित गजल संग्रह देने वाले कौशिक के साहित्य का सफर भिवानी (हरियाणा) से शुरू हुआ और चंडीगढ़ होते हुए दिल्ली में साहित्य अकादमी के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद भी अनवरत जारी है।
हिंदी में स्नातकोत्तर, बीएड, अनुवाद में पीजी डिप्लोमा और साहित्य वाचस्पति की डिग्री हासिल कर चुके माधव कौशिक का मानना है कि साहित्य में निखार लाने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है। बिना पढ़े कोई साहित्यकार नहीं बन सकता है। बकौल कौशिक मेरे घर में हमेशा से साहित्य का माहौल रहा, बहुत सी किताबें होती थीं इसलिए शुरुआती दौर में ही किताबें और साहित्य से जुड़ाव हो गया। वहीं, मां को खोने के बाद काफी सदमा लगा था। उस दौरान मैं उदासी दूर करने के लिए पुस्तकालय में सुबह से शाम बैठा रहता था। उन दिनों जो पढ़ने की लत लगी आज तक नहीं छूटी। मुझे प्रतिदिन किताब के सौ पेज पढ़े बिना नींद नहीं आती। साहित्य मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है।
माधव कौशिक का जन्म हरियाणा के भिवानी शहर में 1 नवंबर, 1954 को हुआ था। शुरुआती दौर में साहित्य का माहौल भी उन्हें भिवानी में ही मिला। शहर में अच्छे पुस्तकालय थे। बकौल कौशिक बीए तक उन्होंने दुनिया के लगभग सभी क्लासिक उपन्यास आदि पढ़ लिए थे। दिलचस्प बात यह थी कि शिक्षकों को डर लगा रहता था कि माधव कोई सवाल न पूछ ले। बताया कि कॉलेज के दिनों से ही लिखना शुरू कर दिया था।
कौशिक कहते है कि मेरे लेखक बनने में पारिवारिक संस्कार का बड़ा योगदान है क्योंकि जब मैं पैदा हुआ तो किताबों के बीच ही आंख खुली। पिताजी हिंदी के शिक्षक और विद्वान थे और उर्दू के ज्ञाता। घर में बहुत सी किताबें होती थीं। चंडीगढ़ आने के बाद अखबारों और पत्रिकाओं में कविताएं-आलेख प्रकाशित होने लगे। साहित्य से जुड़े लोगों से जुड़ाव बढ़ा तो ज्ञान में इजाफा हुआ। माधव कौशिक चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के चेयरमैन भी हैं। देश-विदेश में कई साहित्य सम्मेलनों में हिस्सा ले चुके हैं। इसके अलावा लगभग दस से अधिक साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
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पिता से सीखी गजलों की बनावट
पिता उर्दू के ज्ञाता थे, उनसे स्क्रिप्ट नहीं सीख पाया लेकिन शब्दों के इस्तेमाल के साथ गजलों की बुनवट पिता ने सिखाई। साहित्य पूरी दुनिया का एक जैसा होता है। मेरी किस्मत अच्छी रही कि मुझे नौकरी भी साहित्य के क्षेत्र में मिली, इससे मुझे काफी मदद मिली। मेरी पहली किताब आइनों के शहर में चंडीगढ़ से ही वर्ष 1986 में प्रकाशित हुई थी हालांकि मैंने अपनी शुरुआती दौर की कविताओं को कभी प्रकाशित नहीं करवाया।
पिताजी से ही सीख मिली थी कि साहित्य के क्षेत्र में अगर अच्छा करना चाहते हो तो कभी अपरिपक्व और शुरुआती लेखन को प्रकाशित नहीं करवाना। पहली किताब के बाद लगातार साहित्य प्रकाशन का सिलिसला जारी रहा। वर्तमान में 40 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 19 गजल संग्रह, 2 खंड काव्य (अवार्ड विजेता सुनो राधिका और लौट आओ पार्थ), चार कविता संग्रह, तीन नवगीत संग्रह, तीन लघु कहानियां, दो बाल साहित्य व अन्य अनुवाद इत्यादि कार्य शामिल हैं। दस यूनिवर्सिटियों में उनके साहित्य के काम पर शोध कार्य हुआ है। वहीं उत्तर भारत के यूनिवर्सिटियों में पाठ्यक्रम में भी कई कविताओं को शामिल किया गया है।
पुरस्कार और सम्मान
- हंस कविता सम्मान (1996)
- रवींद्र नाथ वशिष्ठ सम्मान (1998)
- मिलेनियम अवार्ड (2000)
- राजभाषा रत्न, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (2003)
- बाबू बाल मुकंद गुप्त सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी (2005)
- अखिल भारतीय बलराज साहनी अवार्ड (2006)
- महाकवि सूरदास सम्मान (2010)
- शिरोमणि साहित्यकार सम्मान (2012)
- सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, केंद्रीय हिंदी संस्थान, भारत सरकार
- आजीवन साहित्य साधना सम्मान (2019)
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