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अब तक नहीं भूला गेड़ी रूट और पीजीआई के पराठे का स्वाद : सुनील ग्रोवर

Chandigarh Bureau चंडीगढ़ ब्यूरो
Updated Sun, 02 Apr 2023 01:26 AM IST
Haven't forgotten the taste of Gedi Root and PGI's Paratha: Sunil Grover
चंडीगढ़। डॉ. मशहूर गुलाटी, रिंकू भाभी और गुत्थी के किरदार के लिए मशहूर अभिनेता व कॉमेडियन सुनील ग्रोवर कभी पीजीआई के बाहर पराठे खाया करते थे और गेड़ी रूट पर घूमा करते थे। चंडीगढ़ से ही उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की है। अपनी नई वेब सिरीज के सिलसिले में वह इन दिनों शहर में हैं। अमर उजाला से खास बातचीत में उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए कई किस्से साझा किए। सुनील ग्रोवर ने बताया उन्होंने एसडी कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक करने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) से थिएटर में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान ठंड के दिनों में वह पीजीआई के बाहर पराठे खाने जाते थे। सुनील कहते हैं कि उसका स्वाद मैं अब तक नहीं भूला। बताया कि उन्होंने कॅरिअर की शुरुआत चंडीगढ़ से ही की थी। यहीं से उन्होंने लोगों को हंसाना सीखा। नाटक करने का सिलसिला भी यहीं से शुरू हुआ। उन्होंने बताया कॉलेज के दिनों में कॉमर्स उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं था। ऐसे में ज्यादातर समय वह संगीत की कक्षा में ही पाए जाते थे। कॉलेज के दिनों में सभी अध्यापकों से उन्हें खास प्यार मिला।

सुनील कहते हैं कि किसी को हंसाना आसान नहीं होता। लोगों को हंसाने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यह एक टीम वर्क है। पठकथा लेखक, अभिनेता, निर्देशक, वीडियो एडिटर से लेकर सेट पर उपलब्ध सभी सदस्यों की भागीदारी इसमें रहती है। जब सब साथ में काम करते हैं तब जाकर लोगों को हंसाने में कामयाब होते हैं। एक अच्छी कमीज बनाने के लिए केवल अच्छा कपड़ा होना काफी नहीं होता, उसके लिए उसे अच्छे बढ़िया सिलना भी पड़ता है। उसी तरह लोगों को हंसाने के लिए कलाकार के साथ टीम का होना भी जरूरी है।

एक सवाल के जवाब में सुनील ने कहा कि मुझे हमेशा नए किरदारों की तलाश रहती है ताकि मैं दर्शकों को कुछ नया देकर उनका मनोरंजन कर सकूं। चाहे वह रियलिटी शो हो या फिल्म, मुझे जहां भी रोचक किरदार करने को मिलेगा, करूंगा। मुझे अभी भी बहुत से किरदार निभाने हैं। आजकल मुझे काल्पनिक किरदारों को करने में मजा आ रहा है। पंजाब से विदेश जाने की ललक काफी लोगों में रहती है, इसी पर मेरी नई वेब सिरीज आधारित है। यह अवैध तरीके से विदेश जाने वालों की कहानी भी कहती है। आज चंडीगढ़ में विदेश भेजने वाली जितनी एजेंसियां हैं, उतनी शायद 10वीं के स्कूल भी नहीं होंगे। सुनील ने कहा कि नए शहर में बसना कठिन होता है। जब मैं यहां से मुंबई गया था तो मेरे सामने भी बहुत सी चुनौतियां आई थीं, पर जो लोग विदेश में रहते हैं उनकी चुनौतियां और अधिक बढ़ जाती हैं।

पुस्तकें खरीदने का शौक पर पढ़ने का नहीं
मुझे किताबें खरीदने का बहुत शौक है। जब भी एयरपोर्ट जाता हूं और अन्य जगहों पर भी किताबें खरीदता हूं, पर पढ़ता नहीं हूं। आज तक जितनी भी किताबें ली हैं, उनमें से बहुत कम को पढ़ा है। मैंने इसके बारे में सर्च भी किया था तो मुझे पता चला था कि इसे सूनडोकू कहते हैं जो एक जापानी टर्म है। इसका अर्थ है पढ़ने का सामान खरीद कर उसे इकट्ठा करना।
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